
13 साल
पहले फुटपाथ पर
सोया हुआ नूरुल्लाह
कार से कुचल
कर मार दिया
गया। चार
अन्य लोग भी
घायल हो गए। इस
मामले में मुंबई
हाई कोर्ट ने
सिने स्टार सलमान खान को
संदेह का लाभ
देते हुए हर
आरोप से बरी
कर दिया। निचली
अदालत ने हालांकि
सात महीने पहले
सलमान खान को
सभी धाराओं में
दोषी मानते हुए
उन्हें पांच साल
की सजा सुनाई
थी। अब
हाई कोर्ट का
कहना है कि
सलमान के खिलाफ
पर्याप्त सबूत नहीं
हैं और उन्हें
संदेह का लाभ
देते हुए हर
आरोप से बरी
किया जाता है।
कानूनी
नुक्ताचीनी में जाए
बगैर सिर्फ एक
ही सवाल यहाँ
हाई कोर्ट से
पूंछा जाना ज़रूरी
है कि न्याय
का मायने क्या
है? यह मुकदमा
सलमान के इर्दगिर्द
ही क्यों घूमा
? सवाल तो एक
बेगुनाह की मौत
का है। अदालत ने यह
जानने और बताने
की ज़रुरत क्यों
नहीं समझी कि
आखिर नूरुल्लाह को
जिस गाड़ी ने
कुचल कर मार
दिया उसे कौन
चला रहा था ? क्या
इन्साफ का मकसद
एक मुक़दमे का
निपटान है या
फिर ये पता
करना कि एक
बेक़सूर की हत्या
का ज़िम्मेदार कौन
है? ऊंची अदालत
को तो इस
सवाल पर गौर
करना ज़रूरी था।
निचली
अदालत ने माना
था कि सलमान
खुद कार चला
रहे थे और
उन्होंने शराब पी
रखी थी। इस बात
की गवाही इस
पूरे मामले के
मुख्य गवाह कांस्टेबल
रवींद्र पाटिल ने दी
थी। रवींद्र
पाटिल वी
आई पी सुरक्षा
में लगे कमांडो
थे और उस
रात सलमान के
बॉडीगार्ड के नाते
उस कार में
मौजूद थे जिस
कार से ये
हादसा हुआ। हादसे के फ़ौरन
बाद सलमान तो
मौकाए वारदात से
रहस्यमय तरीके से गायब
हो गए मगर
एक ज़िम्मेदार पुलिसकर्मी और
नागरिक होने के
नाते रवींद्र पाटिल
ने बांद्रा पुलिस
थाने जाकर बयान
दिया। उनके बयान
के आधार पर
ही एफ आई
आर लिखी गयी
और सलमान पर
मुक़दमा चला।
बताया
जाता है की
रवींद्र पाटिल पर गहरा
दवाब था कि
वे अपना बयान
बदलें। पर
सतारा के एक
गरीब परिवार से
आये रवींद्र ने
अपना बयान नहीं
बदला और उन्हींके
बयान के आधार
पर निचली अदालत
ने सलमान को
दोषी करार फिया। लेकिन
वक़्त का सितम
देखिये दवाब, मानसिक तनाव
और टीबी के
कारण रवींद्र पाटिल
की 2007 में मौत
हो गयी। सलमान को हाई
कोर्ट द्वारा बरी
किये जाने के
बाद रवींद्र पाटिल
की माँ का
बयान मर्मस्पर्शी है
"न्याय सिर्फ अमीरों को
मिलता है गरीब
लोगों को न्याय
नहीं मिलता।" रवींद्र
की माँ ने एक
अखबार को ये
भी बताया कि
"अगर उस रात
मेरा बेटा ड्यूटी
पर नहीं होता
और ये एक्सीडेंट
नहीं हुआ होता
तो आज वह
ज़िंदा होता।"
न्याय
होना जितना ज़रूरी
है, उससे भी
ज़्यादा ज़रूरी है न्याय
होते हुए दिखाई
देना। सलमान
खान के मामले
में मुंबई हाईकोर्ट
के फैसले में
ऐसा होता दिखाई
नहीं दिया। यहाँ ये
बिलकुल भी महत्वपूर्ण नहीं
है
कि सलमान के
साथ क्या हुआ।
महत्वपूर्ण ये है
कि एक आम
भारतीय नागरिक नूरुल्लाह शरीफ जिसे
एक कार ने
सोते हुए कुचल
दिया को इन्साफ
नहीं मिला। इसी तरह
एक पुलिस कमांडो
रवींद्र पाटिल जिसने तमाम
दवाबों के एक
बड़ी हस्ती के
खिलाफ गवाही देने की
हिम्मत दिखाई, उसके परिवार
को भी इस
फैसले से निराशा
हाथ लगी।
अफ़सोस
है कि इस मामले में जिसकी मौत हुई वह नहीं बल्कि सलमान खान ही केंद्र में रहे। इससे
लोगों में ये सन्देश
भी गया कि
अगर आप बड़े
रसूख वाले हैं
और आपके पास
पैसा है तो
आप बड़े वकीलों
को खड़े कर ' संदेह
का लाभ' ले
सकते हैं। सचाई क्या
है हम नहीं
जानते पर एक
मौत के बावजूद
उसके ज़िम्मेदार को
सज़ा नहीं मिलना
क्या हमारे पूरे
न्याय तंत्र और
उसकी प्रक्रिया को
कठघरे में
नहीं खड़ा करता
?
उमेश
उपाध्याय12 दिसंबर
2015