Friday, July 14, 2017

मोदी की इजरायल यात्रा:मगर काशी और येरूशलम में दूरी क्यों? #ModiInIsrael



प्रधान मंत्री मोदी की इसरायल यात्रा से दिल्ली और तेल अवीब तो नजदीक गए हैं मगर सवाल है कि काशी और येरूशलम कब करीब होंगे? नयी दिल्ली और तेल अवीब की दूरियां प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी यात्रा से काफी कम कर दी है 1992 में तबके प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने इजरायल के साथ राजनीतिक संबंध स्थापित करके एक महत्वपूर्ण पहल की थी लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री को वहाँ जाने में 25 साल लग गए?  दोनों देशों के सामरिक, रणनीतिक, आर्थिक और राजनीतिक हितों में कई चीजें साझा होने के बावजूद भारत ने अपनी तरफ से एक झिझक बना रखी थी झिझक और संकोच का भारतीय पर्दा मोदी ने अपनी यात्रा से गिरा दिया है

उधर इजरायल की ओर से प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ''अपने मित्र'' के लिए पलक पांवड़े बिछाने में कोई और कसर नहीं छोड़ी प्रधानमंत्री मोदी का ऐसा स्वागत किसी और देश में नहीं हुआ है उनकी भाव भंगिमा से ऐसा लगा मानो बृजभाषा में बेंजामिन नेतन्याहू मोदी के बहाने समूचे भारत से कह रहे हो:
''तुम आएं इतै, कितै दिन खोऐ?

सचमुच में भारत ने इजरायल के साथ अपने हितों में इतनी समानता होने के बावजूद शीर्ष स्तर पर संबंध बनाने में जो झिझक दिखाई है उसका कोई अर्थ नहीं था
भारतीय नेतृत्व के मन में दो भय हो रहे हैं - एक तो इससे अरब और इस्लामी देश नाराज हो जाते और दूसरा उन्हें डर था कि कही देश के मुसलमान इसरायल जाने से नाराज हो जाएं पर मुझे लगता है कि उन दोनो मुद्दों पर इतनी झिझक दिखाना जरूरी नहीं था जहाँ तक बात थी अरब और इस्लामी देशों सो अमेरिका इजरायल का सबसे पक्का दोस्त है मगर ईरान को छोड़कर तकरीबन सभी देशों ने अमेरिका से बहुत करीबी संबंध हैं तो फिर भारत को इस बात से बेकार डरना नहीं चाहिए था

इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्रियों को देश के मुसलमानों के मन में इजरायल को लेकर पूर्वाग्रहों के कथित डर की बात भी बेबुनियाद ही है कश्मीर के मामले पर देश में मुसलमानों का रूख साफ इंगित करता है कि इस तर्क में भी कोई दम नहीं था  अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री मोदी इसे संकीर्ण सोच के दायरे से बाहर आकर इजरायल गए और दोनों देशों के संबंधों को एक नये धरातल पर ले जाने का संकल्प किया

इजराइल के साथ सामरिक, आर्थिक, कृषि और वैज्ञानिक क्षेत्र में समझौते तो ठीक है मगर मेरा सवाल दूसरा है क्या दोनों देशों की नजदीकी क्या महज राजनीतिक ही होगी? क्या तेल अबीव और नई दिल्ली ही साथ-साथ होंगे? क्या हमारी सभ्यताएं, हमारी संस्कृतियां और हमारे वृहत समाज एक दूसरे के नजदीक नहीं आएंगे?

सोचिए, भारत से कितने लोग हर साल विदेश भ्रमण पर जाते हैं उसी तरह कितने इजरायली यात्राओं पर निकलते है? मगर कितने भारतीय इसरायल और कितने इसरायली भारत की यात्रा करते हैं? ये संख्या बहुत कम है क्या दोनों देशों के बीच आवागमन नहीं बढऩा चाहिए? इजरायल वैज्ञानिक अनुसंधान, कृषि की नयी तकनीकों पर होने वाले शोध और संचार टेक्नोलॉजी के मामले में दुनिया में बहुत आगे है उसके विश्वविद्यालयों में कितने भारतीय छात्र जाते है? दोनों देशों के बीच में वैज्ञानिक अनुसंधान और शोध को लेकर कितना संपर्क है?

कोई तीन हजार साल पहले हिब्रू में जो बाईबल लिखी गई उसमें संस्कृत के कई शब्द है ज़ाहिर है कि हमारी दोनों सभ्यताओं के बीच आदान-प्रदान का एक गहरा आधार और प्राचीन नाता है मगर आज हम इजरायल के खान-पान उसके रीति-रिवाजों, साहित्य और त्यौहारों के बारे में कितना कम जानते है  दूसरे देशों के साथ संबंधों की जिम्मेदारी सिर्फ सरकारों या राजनयिकों पर नहीं छोड़ी जा सकती दोनों देशों के समाजों को भी एक दूसरे के बारे में जानना चाहिए

ये दायित्व है हमारे शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों, सांस्कृतिक संस्थानों और साहित्यिक प्रतिष्ठानों का कि अब हर स्तर पर इजरायल और भारत को करीब लाएं जरूरी है कि सिर्फ तेल अबीब और दिल्ली ही नहीं बल्कि काशी और येरूशलम भी एक दूसरे को अच्छी तरह से पहचानें, परखें,  समझें और एक दूसरे से सीखें विश्व के बदलते राजनीतिक सामरिक परिदृश्य में आज यह जरूरी ही नहीं बल्कि एक तरह से अनिवार्य भी है

#IndiaIsrael #ModiInIsrael +Narendra Modi  


उमेश उपाध्याय