Sunday, January 5, 2020

कैसा था 2019?



अगर 2019 को एक उक्ति या दोहे में समाहित किया जाए तो मैं कबीर दास जी का यह दोहा कहूंगा :
धीरे धीरे रे मना, सब कछु धीरे होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।।
इसका अर्थ है कि सारी चीजें समय के अनुसार होती हैं। हमारे मन में कितनी भी जल्दी क्यों न हो, चीजें अपना नियत वक्त लेती ही हैं। जैसे, माली एक पेड़ में कितना ही पानी क्यों ना दे, पेड़ में फल तो तभी लगेगा जब उसका मौसम होगा। माली के ज्यादा पानी देने से फल जल्दी नहीं लग सकता। इसको दूसरी तरह से भी देखा जा सकता है। जब हम कोई नई इमारत खड़ी करते हैं - कोई नया भवन बनाते हैं तो शुरू शुरू में उसमें बहुत सारा सामान लगता है। मेहनत लगती है। शुरू में वैसा दिखाई भी नहीं देता कि जैसा वो भवन बाद में बनेगा। ये इमारत अगर आप पुरानी इमारत के ऊपर बना रहे हैं तो और भी मुश्किल होती है। जब पुरानी इमारत के ऊपर नई इमारत बनती है तो कुछ तोड़फोड़ होती है। कुछ मलबा गिरता है। कुछ शोर-शराबा होता है। गर्द गिरती है। धूल उड़ती है। उसमें समय लगता है। उसके बाद ही एक नया भवन - एक नई इमारत खड़ी होती है।  2019 के साल को ऐसे ही देखा जाना ठीक होगा। 

इस दौरान कुछ मूल बातों की आधारशिला रखी गई। ये नींव है समाज में सभी के लिए संविधान सम्मत सम्मान, न्याय, इंसाफ, बराबरी पर आधारित व्यवस्थाओं की। ऐसा नहीं है कि 2019 से पहले ऐसा  नहीं था। लेकिन 70 साल पुरानी जो हमारे देश की व्यवस्थागत इमारत थी उसमें वक़्त और व्यवहार के साथ साथ खामियां आ गयीं थी।  उनमें सही बदलाव की जरूरत थी। इसके लिए 2019 में जो उपाय किए गए उनपर हलचल होना सहज और स्वाभाविक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया है। जिसकी प्रतिध्वनि हमें  मीडिया में दिखाई देती है। इसे यदि राजनीतिक चश्में और सियासी बहस से देखें तो रंग अलग नज़र आएगा। असली बात यह है कि 2019 का साल नई इमारत की नींव और नई व्यवस्था की इबारत लिखने का साल था। इसे आप राजनीतिक दृष्टिकोण और विचारधाराओं की दृष्टि को दूर रखकर, भारत के नजरिए से देखेंगें तब ही आप सही निष्कर्ष पर पहुँच पायेंगे।

इस बुनियादी  बदलाव की प्रक्रिया शुरू हुई  2019 के आम चुनाव से। एक लम्बे अर्से  बाद ऐसा हुआ कि केंद्र में एक सरकार को अपने काम के आधार पर सकारात्मक वोट मिला। अपने बलबूते पर एक पार्टी को बहुमत मिला। एक साल के भीतर सरकार ने जो फैसले लिए - सामाजिक व्यवस्था, आर्थिक व्यवस्था,  प्रशासनिक तंत्र,  राजनीतिक ढांचे को लेकर - वे खासे बुनियादी हैं। भारत की पुरानी पड़ी समस्याओं को उठाये गए कदम और फैसले  बड़े दूरगामी हैं। इनकी राजनीतिक मीमांसा में जाए बिना यह तो कहा जा सकता है कि इन फैसलों ने यथास्थितवाद यानी 'स्टेटस को' को तोड़ा है।

सबसे पहले जम्मू कश्मीर के फैसले की बात करते हैं। जम्मू कश्मीर में भारत 70 साल से सिर्फ एक रक्षात्मक मुद्रा में था। हमारी कश्मीर नीति सिर्फ पाकिस्तान का जवाब देने की थी। चाहे वो 1948 या 1965 के आक्रमण हों या फिर पिछले दो दशक से चल रहा आतंकी खेल। हम सिर्फ पाकिस्तान की हरकतों से अपने को बचाने की जुगाड़ में ही लगे रहे हैं। इस यथास्थितवाद से निकल कर नया सोचने की ज़रूरत थी जो इस बार  सरकार ने किया। इस बार एक बुनियादी परिवर्तन करके धारा सिंह 370 को समाप्त किया गया।  जम्मू कश्मीर राज्य का पुनर्गठन किया गया। लद्दाख को उसके हक दिए गए। जम्मू और कश्मीर  पुनर्गठन करने पर विरोधी यह कहते रहे कि इसके बाद न जाने क्या हो जायेगा ?

यह तो पता नहीं कि आगे क्या होगा पर ये फैसला अगस्त में हुआ था। 5 महीने बाद अगर आप देखें तो वहां की स्थिति पहले से बेहतर है। अभी पिछले दिनों ही  खबर आई कि वहां से सुरक्षाबलों की 72 कंपनियां हटाई जा रहीं हैं। इसका मतलब जमीन पर हालात नियंत्रण में हैं। उम्मीद है कि इससे जम्मू कश्मीर के तीनों हिस्से - जम्मू , कश्मीर और लद्दाख - में समुचित विकास होगा। हर वर्ग को तरक्की के अवसर मिलेंगे। वहां जो पिछड़े लोग हैं उनके साथ अन्याय हो रहा था - उनको बराबरी के अधिकार मिलेंगे। मैं यह नहीं कहता कि जम्मू कश्मीर से आतंकवाद तुरंत समाप्त हो जाएगा। ये एक लंबी लड़ाई है जो भारत को आगे शायद एक दशक तक और लड़नी पड़ेगी। परन्तु आज पाकिस्तान के हाथ से निकलकर पहल भारत के हाथ में आ गयी है। जम्मू कश्मीर में एक नई इबारत लिखी गई है। दशकों से रिस रहे घाव का एक ऑपरेशन हुआ है जिसके अच्छे परिणाम होने की उम्मीद है।

अब हम दूसरे फैसले पर जाते हैं।  वह फैसला आया तो न्यायपालिका लेकिन जल्दी फैसला लेने के लिए सरकार ने गुहार लगाई। अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मामले का फैसला दूरगामी निर्णय है। वह फैसला विवादों की एक बड़ी श्रृंखला पर विराम लगाता है। अदालत में यह स्थापित हुआ कि जहां रामलला विराजमान है वहीँ पर श्री राम का जन्म हुआ था। अदालत ने सही फैसला किया कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो।  ये विवाद कई सौ साल से चल रहा है। इसके लिए कई संघर्ष हुए और लाखों लोग बलिदान हुए।  सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद पर न्यायोचित,  तथ्य सम्मत,  ऐतिहासिक/पुरातत्व संदर्भों पर आधारित और साथ ही  सभी पक्षों के लिए सम्मानजनक  फैसला दिया। यह फैसला समाज को आगे ले जाने वाला है।

एक और फैसला संसद ने किया और वह था तीन तलाक की कुप्रथा को समाप्त करने का। यह महिला अधिकारों का सवाल था। सोचिये देश की लाखों महिलाओं को ऐसे भेदभाव पूर्ण कानून के सहारे छोड़ दिया गया था जो ज़्यादातर इस्लामी देशों में भी लागू नहीं है। संविधान प्रदत्त इस समानता को लागू करने के लिए एक दृढ राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत थी। कठमुल्लापन के ब्लेकमैल से बिना दबे केंद्र सरकार ने एक साहसपूर्ण फैसला किया। ऐसी ख़बरें हैं हैं कि बहुत सारी मुस्लिम महिलाएं अपने हक और सम्मान के लिए अब अदालतों में जा रही हैं।

एक फैसला जिस पर खून चर्चा और विवाद किया जा रहा है वह है  नागरिकता कानून में संशोधन का। इसका ज़्यादा विरोध भ्रम और नासमझी के कारण हो रहा है। ये भ्रम भी जानबूझकर कर  फैलाया जा रहा लगता है।  संशोधन के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में मज़हबी कारणों से प्रताड़ित हिन्दू, जैन, सिख, बौद्ध, ईसाई और पारसी मत मानने वालों को भारत की नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है। इन तीनों ही देशों का सरकारी मजहब इस्लाम है। इस कारण वहां गैर इस्लामी लोगों के साथ  अन्याय, अत्याचार, प्रताड़ना और धर्म परिवर्तन सामान्य बात है।  यह कानून कहीं नहीं कहता कि इन देशों के सारे अल्पसंख्यक भारत आ जाएं और उन्हें नागरिकता दी जाएगी। इस कानून में व्यवस्था यह है कि वहाँ सताए हुए जो अल्पसंख्यक भारत आ चुके हैं और जिन्हें नागरिकता के अधिकारों से वंचित रखा गया है, उन्हें नागरिकता दी जाए। अब ये भ्रम फैलाया जा रहा है कि भारत में रहने वाले मुसलमानों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। जो भी आज भारतीय नागरिक हैं चाहे वे किसी मजहब  क्यों न मानते हों, उनका इस कानून से कोई  लेना देना नहीं है। मुझे लगता है कि थोड़े दिनों बाद ये मौजूदा हंगामा ख़त्म हो  जाएगा। लोगों को समझ आएगा कि  यह संशोधन भेदभाव पूर्ण नहीं है बल्कि हमारे पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों के साथ जो भेदभाव हो रहा है उनके अधिकारों संरक्षण के वास्ते है।

2019 का साल राजनीतिक दृष्टि से भी मुझे लगता है कि महत्वपूर्ण साल है एक तो यह कि आम चुनावों में नरेंद्र मोदी सरकार दोबारा से सत्ता में आ गई। कई राज्यों में भी सत्ता का परिवर्तन हुआ।  झारखंड, महाराष्ट्र , असम, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि अनेक राज्यों में नयी सरकारें आईं। राजनीतिक दलों के नज़रिये से अगर बाहर निकल कर आप देखें तो आपको लगेगा कि यह भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता और भारत के मतदाताओं के आत्मविश्वास को दिखाता है।  आम चुनावों के दौरान और उसके बाद भी चुनाव प्रक्रिया को लेकर एक भ्रम पैदा करने की शरारतपूर्ण कोशिश की गयी। भ्रम पैदा किया गया। यह भ्रम फैलाया गया कि  ईवीएम सही नहीं है और चुनाव बैलेट से होना चाहिए। मुझे तो इसको देखकर हंसी ही आती है कि हम इंटरनेट के जमाने में यह बात कह रहे हैं कि पुराना लैंडलाइन जिसमें उंगली से नंबर घुमाया जाता था उस पर दोबारा वापस जाया जाए। जानबूझकर कर ये भ्रम फैलाने की कोशिश की गई ताकि भारत की जो परिपक्व लोकतांत्रिक प्रक्रिया है उस पर संदेह किए जा सके। ये शक सिर्फ प्रक्रिया पर ही नहीं बल्कि जनादेश पर खड़ा किया गया। ये शक पैदा करने वाले भारत तोड़ो गैंग के हाथ में ही खेल रहे थे। लेकिन उसके बाद एक के बाद एक राज्यों में हुए चुनावों ने झूठ के इस गुब्बारे की हवा हमेशा के निकाल के रख दी। 

एक चीज से और प्रसन्नता मिलती है वह है  चुनावी राजनीतिक प्रक्रियाओं के दौरान देश में नए खून का आगे आना। ये नया नेतृत्व अगले 40 50 सालों तक भारत को आगे ले जायेगा। पिछले दिनों लद्दाख के युवा सांसद जम्यांग नामग्याल का अद्भुत भाषण सुना। इसी लोकसभा में चन्द्राणी मुर्मू, तेजस्वी सूर्या, मिमी चक्रवर्ती, नुसरत जहाँ और रेखा खड़से जैसे युवाओं का चुनकर आना बहुत अच्छा है। ऐसे ही आगे आये राज्यों में सत्ता संभालने वाले महाराष्ट्र के आदित्य ठाकरे, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, असम के मुख्यमंत्री  सोनोवाल, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देव, हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला - एक के बाद एक एक युवा नेतृत्व अलग-अलग पार्टियों में उभरता दिखाई देता है। यह देश को आगे ले जाने वाले लोग हैं। इनका ध्यान रखना, इनकी सही ट्रेनिंग होना बहुत आवश्यक है। एक ही चीज थोड़ी खलती है वो ये कि देश की  सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस प्रक्रिया में थोड़ा पीछे रह गयी लगती है। ये पार्टी मध्यप्रदेश और राजस्थान में नए प्रयोग कर सकती थी।

जब नया खेत तैय्यार होता है तो पहले उसमें हल चलाया जाता है। खरपतवार निकाला जाता है। जमीन को मुलायम बनाया जाता है। फिर उसमें बीज डाले जाते हैं। और वह बीज अगर अच्छे हैं तो बड़ी अच्छी फसल होती है। शुरू में किसान को नयी पौध की रखवाली भी करनी होती है। इस नाते 2019 का साल नया खेत तैयार करके उसमें नए बीज डालने का साल था।  अर्थतंत्र,  राजनीतिक तंत्र, प्रशासनिक तंत्र, सैन्य तंत्र इत्यादि हर व्यवस्था में नए-नए बीज डाले गए है। आगे आने वाले साल इन बीजों के पुष्पन-पल्लवन के होंगे। 2019 का साल देश के लिए एक बड़ा अर्थपूर्ण साल था।  2020 का साल खेत की रखवाली और नव पादपों की देखरेख का साल होगा। उम्मीद है कि 2020 के बाद देश और अधिक ऊर्जावान, क्षमतावान, समतायुक्त, समरस, सशक्त तथा संपन्न होकर निकलेगा। नए साल का यही संकल्प और कामना है।