Sunday, February 2, 2020

नींव की नई ईंटें लगाता भारत

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जब नीव की ईट लगाई जा रही होती है तो उस पर बहुत लोग ध्यान नहीं देते। पर असली बात तो यह है कि जिस नीव की ईट को जमीन के अंदर दफन कर दिया जाता है उसी की मजबूती पर ही कोई भवन टिका रह सकता है। जो कंगूरे हमें भवन की प्राचीर पर दिखाई देते हैं उनकी सुंदरता, उनकी रमणीयता और उनका टिकाऊपन निर्भर करता है कि नीव की ईट कितनी मजबूत और कितनी गहरी है। ये बात सिर्फ एक इमारत पर ही नहीं बल्कि एक राष्ट्र पर भी लागू होती है। कोई देश कितना कितना मजबूत होगा और वह कितना आगे जायेगा यह निर्भर करता है कि उसकी बुनियाद के सिद्धान्त और निर्णय कितने ठोस और साहसपूर्ण हैं।

इस देश की आजादी के 70 साल बाद आज कुछ बुनियादी और आमूल परिवर्तन हो रहे हैं। इन परिवर्तनों की गंभीरता और उनका दूरगामी प्रभाव शायद आज हमें उसी तरह से दिखाई नहीं दे जैसे कि नींव की ईंटें होती हैं। लेकिन भारत की दुनिया में जो हैसियत है और जो आगे भी छवि देश की बनेगी उसके लिए ये परिवर्तन बेहद दूरगामी हैं। असल में देखा जाए तो एक बिल्कुल नया भारत उभरता हुआ दिखाई देता है। पिछले कोई 5 -6  बरस के सरकार के फैसलों और अंतर्राष्ट्रीय कदमों को हम लें तो उनमें एक निरंतरता और नई सोच नज़र आती है। इन क़दमों ने भारत की विदेश और रक्षा नीति की यथास्थितपरक जड़ता को तोड़ा है। इस कारण कई बार इसकी प्रतिक्रिया में कुछ उद्वेलन सा भी दिखाई देता है जो स्वाभाविक ही है। नागरिकता कानून में संशोधन के बाद अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और अंदरूनी शोर को इसी नज़रिये से देखा जा सकता है। 

पहले भारत को माना जाता था एक सॉफ्ट देश है। ऐसा देश जिसके खिलाफ कुछ भी कहा जा सकता था और  कुछ भी किया जा सकता था। पहले यह देश कुछ बयान देकर चुप हो जाता था। उन बयानों को भी दुनिया सुना अनसुना कर देती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है।  एक के बाद एक उदाहरण आप देखें तो आपको नज़र आएगा कि देश अपने आप को नए तरीके से परिभाषित करने की कोशिश कर रहा है। मानो, ये दुनिया को कह रहा है कि भारत को हल्के में मत लेना। बात सिर्फ सर्जिकल स्ट्राइक या बालाकोट के हमलों की ही नहीं है । जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35 ए को निष्प्रभावी बनाने से लेकर नागरिकता कानून में संशोधन और रूस से एस 400 मिसाइल सिस्टम को खरीदने तक के कदम बताते हैं कि भारत अपनी एक नई इबारत लिख रहा है। 

यहाँ नागरिकता कानून को लेकर मौजूदा उदाहरण को देना आवश्यक होगा। अचानक से यूरोपीय यूनियन की संसद में भारत के नागरिकता कानून पर एक प्रस्ताव आया। ये प्रस्ताव पाकिस्तान समर्थक वामपंथी विचारधारा वाले यूरोपीय सांसदों ने यूरोप की संसद में रखा। इस प्रस्ताव में भारत के नागरिकता कानून के बारे में सचमुच अनर्गल प्रलाप  किया गया था। इस प्रस्ताव पर बहस के बाद मतदान का प्रावधान था। पहले का भारत होता तो इस पर शायद विदेश मंत्रालय कुछ बयान देकर रह जाता।  इस बार ऐसा नहीं हुआ। सबसे पहले लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने यूरोपीय संसद के अध्यक्ष डेविड सिसौली को ने एक पत्र लिखा। उन्होंने इस पत्र में  कहा कि आप इस पर बहस करके मतदान करेंगे तो फिर समझ लीजिए एक नई और खतरनाक परिपाटी की शुरुआत होगी। इसका अर्थ हुआ कि कोई भी देश दूसरे देश की संसद के प्रस्तावों पर बहस कर सकता है। श्री बिड़ला ने लिखा कि यह लोकतंत्र के सिद्धांतों और मर्यादाओं का उल्लंघन होगा।  लोकसभाध्यक्ष को इस न्यायोचित, तर्कसंगत, लोकतान्त्रिक समझदारी से परिपूर्ण इस पत्र के लिए धन्यवाद दिया जाना चाहिए। लेकिन भारत इस पत्र पर ही नहीं रुका। देश के राजनयिकों ने यूरोपीय संसद के मुख्यालय ब्रुसेल्स में कूटनीतिक दबाव बनाया और यूरोप की संसद को यह बात समझ में आई कि इस पर मतदान करना उचित नहीं होगा। इस उलजलूल प्रस्ताव पर मतदान टाला गया। 

इसी तरह मलेशिया का मामला भी लिया जा सकता है जहाँ भारत ने अपने हितों की रक्षा के लिए अपने बाज़ार की ताकत का कुशलता के साथ उपयोग किया। मलेशिया के 94 वर्षीय प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद आजकल पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं। मलेशिया, तुर्की और पाकिस्तान मिलकर एक नया इस्लामिक गुट बनाना चाहते हैं। इसके लिए जम्मू कश्मीर और नागरिकता संशोधन कानून पर  महातिर मोहम्मद ने भारत को निशाना बनाया। पहले वाला भारत शायद  इस मामले में बयानबाज़ी तक सीमित रहता।  इस बार भारत ने दिखाया कि वह अपने खिलाफ किए जाने वाले किसी भी दुष्प्रचार दूर करने के लिए किसी भी हद तक जाएगा। मलेशिया से बड़ी मात्रा में पाम आयल हमारे देश में आता है। भारत ने अनौपचारिक तौर से मलेशिया से आने वाले पाम ऑयल के आयात पर कटौती कर दी इससे मलेशिया की गहरी आर्थिक हानि हुई। पाम आयल का बाज़ार टूट गया। परिणाम हुआ कि मलेशिया घुटनों पर आ गया। जो महातिर मोहम्मद कल तक बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे अब कहने लगे हैं कि हम भारत जैसे बड़े देश से पंगा नहीं ले सकते। इसी तरह हमें याद रखना चाहिए कि जब डोकलाम में चीन ने हमारे धैर्य की परीक्षा लेने की कोशिश की तो हमने आंख में आंख मिलाकर  चीन को बताया कि इस तरह की दादागिरी नहीं चलेगी।

और तो और व्यापार के मामले में हमने अमेरिका से भी साफ-साफ बात की। रूस से हथियार मंगाने के मुद्दे पर अमेरिका ने हमें चेतावनी दी हमें कहा कि अगर हम रूस से मिसाइल सिस्टम मनाएंगे तो हमें नुकसान होगा। अमेरिका से दोस्ती भारत लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इस मामले पर उसे भारत ने बता दिया कि हमारे राष्ट्रीय हित में जो फैसला होगा हम करेंगे। इस पर हम किसी की नहीं सुनेंगे।  अमेरिका को इस पर पीछे हटना पड़ा।   

इसके अलावा भी बहुत से कदम ऐसे हैं लगता है कि यह भारत एक नया भारत है जिसकी बुनियाद में आत्मविश्वास है, अपनी शक्ति के प्रति जिम्मेदारी है, अपने स्वाभिमान का आभास है और दुनिया में अपनी भूमिका क्या होने वाली है इसकी सजग अनुभूति है। लेकिन देश किसी मुगालते में नहीं रह सकता।  भारत के इन नये क़दमों का विरोध होगा। हो भी रहा है। परन्तु इस विरोध के भय से देश उन क़दमों को पीछे नहीं खींच सकता जो भविष्य के नए भारत की भव्य इमारत की आधारशिला हैं। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तिया यहाँ खूब सटीक बैठती हैं:
स्वातंत्र्य गर्व उनका, जिनपर संकट की घात न चलती है,
तूफानों में जिनकी मशाल कुछ और तेज़ हो जलती है ।
लक्षमण-रेखा के दास तटों तक ही जाकर फिर जाते हैं,
वर्जित समुद्र में नाव लिए स्वाधीन वीर ही जाते हैं ।