Friday, June 23, 2017

कश्मीर: जल्दबाज़ी नहीं धैर्य की ज़रूरत! #Kashmir


भारत को कश्मीर पर कोई जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए जो समस्या 1948 से शुरू हुई और जिसकी जड़ में आपका पड़ोसी पाकिस्तान है वह कोई सरकार अपने कार्यकाल के तीसरे साल में हल नहीं कर सकती उसे ऐसा करने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए 1948 से लेकर 2017 की गर्मी तक इस देश ने कश्मीर में घाटी में आतंकवाद और उन्माद के कई रूप देखे और झेले हैं आतंक के उन्माद का ये दौर भी उसी तरह निकल जाएगा जिस तरह अलगाववाद की की अन्य आगों को देश ने सफलता से बुझाया है 

दरअसल जब-जब भी दिल्ली में बैठी सरकारों ने कश्मीर समस्या के हल की कोशिशें की है तो पाकिस्तान में बैठे आका और कश्मीर घाटी में बैठे उनके पैरोकार सक्रिय हो गए हैं उन्होंने घाटी के नौजवानों के दिलो दिमाग में नफरत के जहर के इंजेक्शन को और अधिक तीव्रता के साथ समय डाला है इस समय भी ऐसा ही हो रहा है 

दिल्ली में जब से मोदी की सरकार आई है तभी से उसने कश्मीर की समस्या- जिसकी जड़े पाकिस्तान में है- को सुलझाने की कोशिश की है पाकिस्तान के साथ रिश्ते ठीक करने की कोशिशें और प्रधानमंत्री मोदी का कश्मीर पर लगातार ध्यान देना इसी का एक अंग है मगर कश्मीर और दिल्ली में बैठी पाकिस्तान परस्त ताकतों के लिए ये दौर जीवन मरण का समय है उनकी कल्पना में भी ये कभी नही आया था कि श्री नगर में जो सरकार होगी उसमें बीजेपी भी कभी हिस्सेदार हो सकती है इस मायने में इस बार की गर्मियाँ महत्वपूर्ण हैं क्योंकि अगर पीडीपी-बीजेपी की सरकार इस बार के आतंक के तूफान को झेल गयी तो फिर पाकिस्तान परस्त नेताओं/जमातों की बुनियाद ही हिल जाएगी इसीलिए आप देख सकते हैं कि फारूख अब्दुल्ला जैसे लोग अपने खोल से बाहर अब अपने असली रूप में गए हैं सांप सीढ़ी का खेल खेलते हुए फारूख और उन जैसे नेता भूल चुके हैं किे कट्टर इस्लाम से पोषित आतंक के जिस सांप को वे पालते आए हैं वह अब उन्हे ही डसेगा 

पाकिस्तान परस्त लोग सिर्फ घाटी में नहीं हैं, दिल्ली के सत्ता प्रतिष्ठान, मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग में भी उनके समर्थक और पैरोकार गहरे घुसे हुए हैं भारत के थल सेनाध्यक्ष को ''गली का गुंडा'' कहने की हिमाक़त रखने वाले इन्हीं तत्वों ने कश्मीर में अलगाव की भावनाओं को लगातार हवा दी है? संदीप दीक्षित जैसे जाने कितने पाकिस्तान परस्त लोग हमारे सत्ता प्रतिष्ठान का लम्बे समय तक हिस्सा रहे हैं उन्ही लोगों की वजह से कश्मीर की समस्या आज इतनी विकराल और गंभीर है इसलिए सरकार और देश को ध्यान रखना है कि कश्मीर को लेकर भारत के अंदर और भारत के बाहर दोनों तरफ हमलें और बढ़ेंगे 

जब भी आप आतंकवाद का टेटुआ दबाएंगे तो उसकी चीखें जोर से सुनाई पड़ेंगी शायद ऐसा ही आज घाटी में हो रहा है भारत को इसी दृढ़ता और मजबूती के साथ कश्मीर में अपनी नीतियों को लागू करना है मगर साथ ही उसे धीरज भी रखना है कश्मीर की समस्या का पेड़ उस विषबीज से उत्पन्न हुआ है जो आजादी के समय पाकिस्तान ने बोया था कांग्रेस की गलत नीतियों ने उस पौधे को बड़ा किया है कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम कर उन्हे घाटी से निष्कासित करने वाला जेहादी इस्लामिक आतंकवाद उसे आज भी लगातार पोषित कर रहा हैं इसलिये कश्मीर में दृढ़ता के साथ असीम धैर्य भी चाहिए 

भारत को कश्मीर के हल में जल्दी नहीं करनी जिस शरीर से 70 साल से रक्त रिस रहा हो उसे आप अगर जल्दबाज़ी में खड़ा करने की कोशिश करेंगे तो वह लड़खड़ा कर गिर जाएगा इसलिए मोदी सरकार को सीमापार से समर्थित आतंक के इस पेड़ की जड़ में धीरे-धीरे मट्ठा डालना है ये पेड़ धिरे-धिरे ही सूखेगा-मगर सूखेगा जरूर- यह विश्वास भी रखना है 
तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है-
"धीरज, धरम, मित्र अरु नारी आपद काल परखिहहि चारी।।
यानि आपत्ति काल में ही आपके धैर्य और धर्म की सही परीक्षा होती है कश्मीर के संकट का ये दौर हम सबके  धीरज और राष्ट्रधर्म के इम्तिहान का ही वक़्त है 

उमेश उपाध्याय