Thursday, April 25, 2019

लंका विस्फोट: चन्द सवाल आम मुसलमानों से






श्रीलंका में हुए बम विस्फोटों ने दुनिया को दहला दिया है। ईस्टर के दिन हुए बम धमाकों में तीन सौ से ज्यादा लोग मारे गए हैं और कई सौ घायल हुए हुए हैं। बताया जाता है कि ये धमाके एक #मुस्लिम अतिवादी संगठन नेशनल तौहीद जमात के #मुजाहिदीन ने किए है। और अब तो इसकी जिम्मेदारी इस्लामिक इस्टेट ने भी ले ली है। कहा जा रहा है कि ये हत्याएं न्यूजीलैंड में #मुसलमानों की मौत का बदला लेने के लिए की गई हैं। 

पिछले कई सालों में दुनिया का कोई ही हिस्सा ऐसा बचा होगा जहां बेगुनाह लोगों को #कोलम्बो जैसी सामूहिक हिंसा का निशाना न बनाया गया हो। 2018 से लेकर अब तक ही कोई तीस ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। ये खूनखराबा कहीं संगठित इस्लामी संगठनों ने किया है तो कहीं अकेले किसी धर्मान्ध पागल ने ''इस्लाम को बचाने '' के नाम पर किसी की जान ले ली है। इस्लाम के नाम पर ये मारकाट तकरीवन हर जगह हुई है - रूस, ईराक, अफगानिस्तान, सोमालिया, फ्रांस, भारत, ब्रिटेन , आस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, स्वीडन, नीदरलैंड, कीनिया, मोरक्को , जार्डन वेल्जियम, श्रीलंका, स्पेन, मिस्त्र, तुर्की..... एक लंबी सूची है।

सवाल है कि #इस्लाम के नाम पर मारकाट करने वालों के मन में ऐसा क्या है जो दूसरी सोच रखने वालों को जिन्दा ही नहीं देखना चाहते? ऐसा क्या गुस्सा है जो इस तरह कि बहशियाना हरकतों में में तब्दील हो रहा हैंये भी सही है कि ये वारदातें उन देशों में भी हुईं है जो अपने आप को इस्लामी कहते हैं। यानि ये #आतंकवादी स्वधर्मियों को भी नहीं छोड़ रहे हैं। उनका ये सच्चा इस्लामदरअसल क्या है? ये लंम्बी बहस का मुद्दा है और इसे धर्मगुरूओं के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। ये सवाल मन में जरूर आता है कि वो कैसा #मजहब है जो आपको हर उस इंसान को  मारने की इजााजत देता है जो आपके तौर तरिको को नहीं मानता



परंतु   सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इन वारदातों को लेकर  दुनिया भर के आम #मुसलमानों का रवैय्या क्या है?   क्या इन हत्यारों को वो #मुसलमान मानते है? क्या वे ये समझते हैं कि खूनखराबा करने वालें उनके मजहब के नाम को बदनाम कर रहे है? जाहिर है कि वे ऐसा ही सोचते होगें। तो फिर उनके खिलाफ वे खड़े क्यों नहीं होते? आवाज बुलंद क्यों नहीं करते? क्या उनका ये फर्ज नहीं है कि वे ऐसे लोगों को अपने मज़हब से बाहर का रास्ता दिखाएं? दुनिया को बताएं कि सच्चा इस्लाम ये नहीं है। 

15 मार्च को न्यूजीलैंड के क्राईस्टचर्च  में एक सिरफिरे ईसाई ने दो मस्जिदों पर हमला करके 50 को मार डाला था। लेकिन उसके बाद तकरीबन पूरे न्यूजीलैंड में इसकी निंदा ही नहीं हुई  बल्कि वहां की सरकार, स्वंयसेवी संगठनों, ईसाई संगठनों और आम लोगों ने सड़क पर आकर मारे गए लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की थी। हत्यारे ब्रेंटन तारेंट को ईसाइयों के किसी वर्ग ने भी अपनाया नहीं था। किसी देश और वर्ग ने उसे ''मुजाहिदीन '' बताकर महिमामंडित नहीं किया था। मेरा मूल प्रश्न है कि जैसा न्यूजीलैंड के समाज ने किया, ऐसा मुस्लिम समाज क्यों नहीं करता? मेरा मानना है कि आम मुसलमान भी इन घृणित अपराधों पर उतना ही उद्वेलित होता होगा जितना कि अन्य किसी मजहब को मानने वाला। पर उनकी ये सोच सार्वजनिक क्यों नहीं होती? क्या दुविधा है जो उन्हें सामने आकर अपनी बात जोरदार तरिके से कहने से रोकती है? मुस्लिम समाज को इस दुविधा से उबरना ही  होगा। 

याद करने की बात है कि 2005 में जब डेनमार्क के अखबार जिलैंडस पोस्टन ने कार्टून में मुहम्मद साहब को दर्शाया था तो दुनिया भर में मुसलमान सड़को पर आ गए थे। भारत में भी उग्र प्रदर्शन हुए थे। मुस्लिम समाज का तर्क था कि ये असंवेदनशील कार्टून उनके मजहब की मर्यादा को खत्म करते थे और इससे इस्लाम का अपमान हुआ। दुनिया ने इसका वैचारिक विरोध होने के बाद भी उनके इस तर्क को माना। परंतु यह संवेदनशीलता एकतरफा ही क्यो लगती है

ये सही है कि '' #आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता। परंतु ये तथ्य भी निर्विवाद है कि पिछले दशक में आतंक की जितनी घटनाएं दुनिया भर में हुई हैं उनमें से  कुछ अपवादों को छोड़कर सारी की सारी कथित इस्लामी जिहादियों ने की है। हैरानी की बात है कि ''सच्चे इस्लाम''  के नाम  पर ये खूनखराबा मुस्लिम देशों में भी जारी है। ये मारकाट इस्लाम के नाम पर हो रही है इससे कौन इंकार कर सकता है? तो फिर दुनिया के गैर मुस्लिम लोग इस्लाम को लेकर अपने-अपने नतीजे निकालेंगे ही।सवाल हैइस दोषारोपण  से इस्लाम और उसके मानने वाले कैसे बच सकते है

इसका एक ही तरीका है कि दुनिया के हर देश में बसने वाले शान्तिप्रिय आम #मुसलमान अपने मजहब की कमान अपने हाथ में लें। वे बाहर निकले और जोर से कहें कि मासूमों का खून बहाने वाले मुसलमान है ही नहीं। ऐसे हत्यारों और उनसे किसी किस्म का वास्ता रखने वालों का सामाजिक बहिष्कार करें। उनसे रोटी बेटी का रिश्ता तोड़े। डर कर  अगर आप मौन बनें रहेंगे तो फिर आप भी उस पाप से नहीं बच सकते जो आपके नाम पर ये दरिंदे कर रहें है। 
हमें याद रखना चाहिए कि द्रौपदी के चीरहरण के दोषी उतने ही द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह और घृतराष्ट्र भी थे जितने कि  दुशासन और दुर्योधन। 
सही कहा है:-
 ''जो तटस्थ थे इतिहास लिखेगा उनकी भी अपराध कथा।''