Tuesday, April 14, 2020

कोरोनावायरस का फैलाव : तबलीग और आम मुसलमान


ये एक निर्विवाद तथ्य है कि भारत में कोरोना के जो मामले हैं उनमें से तकरीबन एक तिहाई निजामुद्दीन के तबलीगी मरकज़ के इस्तिमा से जुडे  हैं। यही नहीं, दुनिया के कई अन्य देशों में भी  तबलीगी जमात के लोगों ने कोरोना संक्रमण को आगे फ़ैलाने में बड़ी भूमिका निभाई है। लेकिन ये भी सही है कि तबलीग़ जमात ऐसा करने बाला दुनिया का एकमात्र मजहबी संगठन नहीं है। दक्षिण कोरिया में शिन्चियोजी चर्च और इस्राइल में कट्टरवादी यहूदी पंथों ने भी ऐसा ही किया। कुछ और देशों में भी कई पुरातनपंथी मजहबी संगठन जाने अनजाने कोरोना फ़ैलाने में आगे रहे हैं।  मगर हैरानी की बात है कई लोग भारत में इसके बहाने इस्लामोफोबिया का काल्पनिक भूत खड़ा कर रहे हैं।

कोरोना वायरस को लेकर दिल्ली स्थित निज़ामुद्दीन मरकज की हरकतों पर पूरे देश की निगाहें है। देश में कोरोना संक्रमण का आंकड़ा 10000 को पार कर चुका है। देखने की बात है कि पिछले कुछ दिनों में जो नए मामले आये हैं उनमें ज़्यादातर तबलीगी जमात से जुड़े हुए मामले ही है। उदाहरण के लिए सोमवार 13 अप्रेल को दिल्ली में संक्रमण के 356 नए केस मिले। इनमें से 325 तबलीगी जमात से जुड़े पाए गए। इस दिन तक राजधानी में कुल मामलों की संख्या 1510 थी। इनमें से 1071 यानि कोई 71 प्रतिशत को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ये बीमारी तबलीगी जमावड़े के कारण लगी। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और हरियाणा आदि राज्यों में भी कोरोना के अधिसंख्य मरीज़ तब्लीगी मरकज़ से जुड़े पाए गए है। ये तथ्य कोई कपोलकल्पना बल्कि सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध आंकड़ों से निकलते हैं।

बार-बार यह कहा जा रहा है कि मरकज का मतलब सभी मुसलमान नहीं है। यह बात सही भी है। पर अहम् सवाल है कि सारे मुसलमानों को तब्लीगी जमात से जोड़ कौन रहा है? इसी सोमवार को जमीयते उलेमाए हिन्द ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आग्रह किया कि मीडिया द्वारा इस तरह से तबलीगी मरकज़ की रिपोर्टिंग पर रोक लगायी जाये। न्यायाधीशों ने ये कहकर इस पर रोक लगाने से इंकार किया कि रोक लगाने का मतलब होगा मीडिया की आज़ादी को खत्म करना। इस मामले में सुनवाई अब आगे होगी। दिलचस्प बात है कि  तबलीगी जमात से फैले संक्रमण की पहचान के लिए पहले कोरोना के ऐसे मामलों के आगे 'टीजे' लिखा जाता था। इससे  ऐसे मामले 'ट्रेस  करने' यानि ढूंढने में आसानी होती थी। मगर राजनीतिक दबाव के कारण कई राज्यों ने कोरोना मरीज़ों की सूची से ये कॉलम ही हटा दिया। दिल्ली के अल्पसंख्यक आयोग के कहने पर दिल्ली की सरकार ने कोरोना वायरस के संक्रमित लोगों की सूची से मरकज का नाम हटाकर उसे स्पेशल ऑपरेशन कहना शुरू किया। तमिलनाडु तथा कई अन्य सरकारों ने तो ये कॉलम हटा ही दिया।

इसमें एक तार्किक विसंगति लगती है। यह तार्किक विसंगति क्या है ? अगर तबलीग सारे मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करती और वो मुसलमानों के अंदर की सिर्फ एक जमात ही है तो फिर उसके कारनामों को छुपाने की आवश्यकता क्या है? तबलीगी जमात  लिखने से सभी मुसलमानों की प्रतिध्वनि क्यों मानी जा रही है? ये सही है कि कोई भी संप्रदाय या पंथ पूरे मजहब के लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। अगर एक कोई संप्रदाय या पंथ कुछ गलती करता है तो उसी तक सीमित रखना चाहिए। इसके बहुत से उदाहरण मौजूद है। 2017 में जब हरियाणा में डेरा सच्चा सौदा के मुखिया की गिरफ्तारी को लेकर हिंसा हुई तो किसी ने उसे पूरे हिन्दू समाज से नहीं जोड़ा। इसी तरह पिछले हफ्ते पटियाला में कुछ सिरफिरे निहंगों ने पुलिस वालों पर हमला लिया तो किसी ने उसे पूरे सिख समाज से नहीं जोड़ा। तो फिर तबलीगी जमात का नाम लेने पर उसे सारे मुसलमानों को निशाना बनाना कैसे और क्यों माना जा रहा हैये तर्क कि मरकज के नाम पर मुसलमानों को टारगेट किया जा रहा है, सही कैसे हो सकता है?

होना तो ये चाहिए कि मुस्लिम समाज का नेतृत्व सामने आकर कहे की तब्लीग़ियों ने जो किया वह गलत था। अल्पसंख्यक समाज के हितो के लिए जरा सी बात पर आवाज़ उठाने वाले राजनीतिक नेताओं, बुद्धिजीवियों और सामाजिक नेताओं को सामने आकर कड़े शब्दों में इसकी निंदा करनी चाहिए थी। इससे ये सवाल ही खड़ा नहीं होता। असल बात तो ये है कि तबलीगी मरकज के जमावड़े ने सबसे ज़्यादा परेशानी अपने अनुयाइयों के लिए ही खड़ीं की हैं। दिल्ली सरकार की रोक के बावजूद मार्च के महीने में हज़ारों लोगों को निजामुद्दीन स्थित अपने मुख्यालय में इकट्ठा करके आपने उनकी ज़िन्दगियों को सबसे ज़्यादा खतरे में डाला है। जो लोग मुसलमानों के हितैषी होने का दावा करते हैं वही तार्किक रूप से तब्लीग़ियों और आम मुसलमानों में फर्क नहीं कर रहे। जबकि आवश्यक है के इन लोगों और आम मुसलमानों में फर्क किया जाए।

इसलिए जब कोई यह कहता है कि मरकज के रहनुमाओं की मूर्खतापूर्ण गतिविधियों के कारण देश के कई हिस्सों में कोरोना बड़ी बुरी तरह से फैल गया तो इसमें गलत क्या  है? सरकारें जब कोरोना वायरस के मामलों में 'टीजे' का कॉलम लिखते हैं तो  वो यह बताने के लिए है कि यह संक्रमण कहां से आया है। संक्रमण का स्रोत जानने से उसके निराकरण की तथा उससे जो लोग प्रभावित हुए हैं उनकी खोजबीन करने में मदद मिलती है। ये लड़ाई अल्पसंख्यक बहुसंख्यक की लड़ाई नहीं है। ये पूरे भारत का कोरोना वायरस से युद्ध है जो दुनिया में एक लाख से ज़्यादा लोगों की मौत का जिम्मेदार है। 

आज दुनिया के अंदर 20 लाख से ज्यादा लोग इससे पीड़ित हैं।  इसलिए उसके स्रोत को छुपाने से या उसके स्रोत को या उसके स्रोत के बारे में भ्रम पैदा करने से इस बीमारी के साथ लड़ाई कमजोर पड़ती है। यहाँ दक्षिण कोरिया का उदाहरण देना भी ठीक होगा। दक्षिण कोरिया में  जो कोरोना के के शुरू के मामले आये उन्हें फैलाया एक ईसाई पंथ चिनशियोजी ने। फ्रांस में भी कुछ ऐसा ही हुआ। वहां की सरकारों ने यह छुपाने की कोशिश नहीं की कि बीमारी के फैलाव का स्रोत कहां है। बल्कि दक्षिण कोरिया ने चिनशियोजी कल्ट के मुखिया ली मैन ही को इसका जिम्मेदार ठहराया। ली मैन ही ने सार्वजनिक रूप से अपने अपराध की क्षमा मांगी। जिस तरीके से  चिनशियोजी दक्षिण कोरिया में सारे ईसाइयों का प्रतिनिधित्व नहीं करता बल्कि एक कल्ट का  प्रतिनिधित्व करता है। उसी तरीके से तबलीगी जमात पूरे मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करती। इसलिए ये बताना कि संक्रमण का स्रोत निजामुद्दीन में हुए तबलीगी मरकज से है किसी भी तरीके से मुसलमानों को टारगेट करना नहीं माना जा सकता।

ऐसा करके जो लोग मुसलमानों को और तबलीगी मरकज को मिला रहे हैं। वे भारत के आम मुसलमानों के साथ अन्याय कर रहे है। असल में मुद्दा मुसलमानों का है ही नहीं।    तबलीगी जमात के मलेशिया, इंडोनेशिया और पाकिस्तान में हुए विभिन्न इस्तिमा से इन देशों भी कोरोना तेज़ी से फैला। वहां पर किसी ने इसे पूरे इस्लाम का का सवाल नहीं बताया। सुन्नी मुसलमानों में तबलीगियों को  में काफी दकियानूसी, पुरातनपंथी और मजहबी कटटरपंथी माना जाता है। इस्लाम की जो व्याख्या तबलीगी करते हैं उससे सभी सुन्नी मुसलमान भी एकमत नहीं है। इनके कट्टरवाद को   लेकर भी अक्सर सवाल उठते रहे है। असल में तो कई देशों में आतंकवादी हिंसा में भी तबलीग़ी पाए गए है। पर ये एक अलग लेख का विषय है। 

दरअसल अपने यहाँ दिक्कत अल्पसंख्यक हितों के नाम पर अपनी रोटी सेंकने वालों की है। ये तत्व किसी भी तरीके से अल्पसंख्यकों को अलग करके दिखाना चाहते हैं। वे जानते हैं कि तबलीगी जमात का एक बड़े वर्ग में प्रभाव है। इसलिए तबलीग और मुसलमानों का घालमेल उन्हें राजनीतिक रूप से फायदेमंद दिखाई देता है। ऐसा करके वे अपने वोट बैंक को पक्का करना चाहते हैं। इस समय जबकि पूरा देश एक आपदा की स्थिति में है, ऐसा करके वे जघन्य अपराध कर रहे हैं। ये अपराध पूरे देश के साथ साथ देश के आम मुसलमानों के साथ भी हैं। उन लोगों के साथ ये घोर अन्याय है जिनका  तबलीगी जमात की पुरातनपंथी, दकियानूसी और अवैज्ञानिक सोच से कोई लेना देना नहीं है। मुस्लिम समाज के नेतृत्व को स्पष्टता और दृढ़ता के साथ यह कहना चाहिए तबलीगी जमात मुसलमानों का एक संप्रदाय भर है। तबलीग ने गलती की है और उस गलती के लिए संप्रदाय के रहनुमाओं को सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगनी चाहिए। साथ ही सरकारों को तबलीगी जमात के नेतृत्व के साथ कड़ाई से पेश आना चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की हरकतें करके कोई भी नासमझ लोगों को अंधविश्वास की बेड़ियों में डालकर मौत के मुंह में न डाल पाए।