कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यह कहकर देश की जनता का ही मजाक उड़ाया है कि भारत का लोकतंत्र फर्जी है। अपनी तमाम कमियों और कमज़ोरियों के बावजूद भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था पूरे विश्व में सम्मान की पात्र है। देशवासियों को इस पर गर्व है। पर शायद राहुल गांधी के लिए भारत के लोकतंत्र का मतलब उनके और उनके परिवार के विशेषाधिकार सुरक्षित रखने तक ही सीमित है। अन्यथा वे ऐसा हास्यास्पद और मूर्खतापूर्ण बयान देकर देश और देशवासियों का अपमान नहीं करते।
यह बयान उन्होंने उस समय दिया जब कृषि कानूनों के खिलाफ वे अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा और कांग्रेस के कई सारे नेताओं के साथ राष्ट्रपति भवन की तरफ कूच करना चाहते थे। कांग्रेस पार्टी से पूछा जाना चाहिए कि इतने सारे लोग ले जाकर क्या उनका मकसद राष्ट्रपति भवन का घेराव करना था ? क्या बे उसी तरीके से राष्ट्रपति भवन की घेराबंदी करना चाहते थे जैसे कि कुछ किसान नेताओं ने दिल्ली की है ? राहुल गाँधी और कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल तो राष्ट्रपति से मिला। मगर बिना इजाजत के पुलिस ने बाकी नेताओं को पैदल मार्च करने से मना कर दिया और उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा सहित अन्य को आगे जाने से रोक दिया , तो क्या यही प्रमाण है कि देश से लोकतंत्र खत्म हो गया ? शायद राहुल गाँधी का लोकतंत्र अपने परिवार से शुरू होकर वहीँ खत्म हो जाता है।
वैसे भी राहुल गांधी को लोकतंत्र का ककहरा शुरू से पढ़ने की ज़रुरत है। लोकतंतंत्रिक व्यवस्था और मर्यादाओं की अगर उन्हें रत्तीभर भी समझ होती तो वे भारतीय लोकतंत्र पर ऐसा मजाकिया बयान देने से पहले अपने अंदर झांक लेते। अगर ऐसा होता तो वह उस दिन अपने आप से ये सवाल पूछते जब उन्होंने सितम्बर 2013 में अपनी ही सरकार के एक अध्यादेश को एक प्रेस कांफ्रेंस में फाड़ फेंका था। उस समय उन्हें यह याद नहीं रहा कि वह देश के प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद और लोकतांत्रिक व्यवस्था का कितना गंभीर उल्लंघन कर रहे हैं।
कुछ नहीं तो वे अपनी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी से ही पूछ लेते कि उन्होंने जब जून 1975 में देश में इमरजेंसी लगाई थी तो क्या वह लोकतंत्र के भले के लिए लगाई थी। वैसे इतना दूर भी जाने की जरूरत नहीं है। अगर लोकतांत्रिक मर्यादाओं और मूल्यों को वे किंचित भी मान देते हैं तो वे कहीं बाहर नहीं बल्कि अपनी पार्टी में इसे लागू कर सकते हैं। कांग्रेस तो अब उनके परिवार की जेबी पार्टी ही है। और कुछ नहीं तो वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात मानकर कांग्रेस शासित पुदुचेरी में पंचायतों के चुनाव क्यों नहीं करवा लेते ?
असल में राहुल गांधी की चिंता भारत के लोकतंत्र को लेकर नहीं है। उन्हें चिंता सिर्फ अपनी बहन और अपने परिवार के विशेष अधिकारों को लेकर है। उनका गुस्सा सिर्फ अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को हिरासत में लिए जाने से है अन्यथा दुनिया के सबसे बड़े भारतीय लोकतंत्र को फर्जी नहीं बताते।
राहुल गांधी अपनी पार्टी के नेताओं के साथ राष्ट्रपति को एक ज्ञापन देने के लिए जाना चाहते थे। यह ज्ञापन था कृषि कानूनों को लेकर। कृषि कानूनों की ही बात की जाये तो इनके बहाने उनकी सरकार उनके मुख्यमंत्री पंजाब में जो कर रहे हैं वह क्या किसी भी तरीके से लोकतांत्रिक है? यह सही है कि लोकतंत्र में विरोध करने का अधिकार सब रखते हैं। लेकिन विरोध का ये अधिकार जब गुंडागर्दी और अराजकता में बदल जाए तो इसे लोकतंत्र नहीं भीड़तंत्र कहते हैं।
इस बहस में जाए बिना की कृषि कानूनों के साथ क्या होना चाहिए, क्या उनकी पार्टी की सरकार पंजाब में लोगों के जानमाल की रक्षा कर पा रही है? कोरोना के इस नाज़ुक समय में पंजाब की सरकार आम जनता की ऑनलाइन दिनचर्या, कामकाज और संपत्ति को सुरक्षित नहीं रख पा रही।
पंजाब के कुछ इलाकों में तोड़फोड़, गुंडागर्दी, उद्योगों, दूरसंचार उपकरणों और निजी संपत्तियों को क्षति करने का जो तमाशा चल रहा है क्या वह लोकतांत्रिक है? राहुल गाँधी और उनकी पार्टी हिंसा की इस आग में रोज़ घी डालने का काम कर रहे हैं। क्या ऐसा करके वे किसानों, पंजाब और देश का भला कर रहे हैं? यह सवाल राहुल गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से पूछा जाना निहायत ही जरूरी है।
पंजाब के लोग और खासकर सिख हमेशा तरक्की पसंद रहें हैं। उन्होंने दुनिया में अपनी इस प्रगतिशील सोच से हमेशा नाम कमाया है। राहुल गांधी के उलजुलूल बयानों के बाद पंजाब में हिंसा का दौर चल रहा है। आम जनजीवन ठप्प करके उद्योगों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। ये लोकतान्त्रिक तो कतई नहीं है। जिस सरकार को सम्पत्तियों की रक्षा करनी चाहिए वह तो हाथ पर हाथ धरकर बैठी है। गुंडागर्दी करने वाले जानते हैं कि जब 'सैयां भये कोतवाल तो फिर डर काहे का।' कृषि, उद्योग और शिक्षा के क्षेत्र में हमेशा तरक्की का परचम लहराने वाले पंजाब को ये सब दूसरी दिशा में ले जाने का काम कर रहे हैं।
ये तो तय है कि आम पंजाबी कुछ लोगों की अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने की इन हरकतों को आखिरकार नकार ही देंगे। लेकिन डर है कि तब तक बहुत देर न हो चुकी हो। ऐसा न हो कि राजनीतिक रोटियों के चक्कर में राहुल गांधी और कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब को हिंसा और विद्वेष की ऐसी डगर पर डाल दें जहां से पीछे लौटना मुश्किल हो। किसानों सहित पंजाब के तरक्कीख्याल लोग तो आखिरकार अवसरवाद की इस भँवर में से अपनी किश्ती निकाल ही लेंगे। लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व की हरकतें अगर ऐसी ही रही तो वे अपने हाथ से पंजाब जैसा प्रदेश हमेशा के लिए खो देंगे। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि राहुल गांधी देश गौरवपूर्ण प्रजातांत्रिक व्यवस्था को कोसने के स्थान पर खुद अंदर झांकने की कोशिश करें। इसी से पंजाब के किसानों, उनकी पार्टी का और खुद उनका भला होगा।