Saturday, November 20, 2021
कृषि कानून वापसी - यथार्थ पर भारी पड़ा मिथ्या प्रचार / कोई भी कृषि सुधार सिख-हिन्दू भाईचारे से महत्वपूर्ण नहीं
Saturday, September 11, 2021
कामकाजी औरतों और वेश्याओं में फ़र्क़ नहीं करते तालिबानी प्रवक्ता ?
कामकाजी औरतों और वेश्याओं में फ़र्क़ नहीं करते तालिबानी प्रवक्ता ??
तालिबान 0.2 - बोतल भी वही शराब भी वही !
पाकिस्तान और कुछ हद तक चीन को छोड़कर किसी भी अन्य देश ने अंतरिम अफगानिस्तान सरकार को लेकर संतोष नहीं जताया है। पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी की आई एस आई के प्रमुख जनरल फैज़ हामिद तो सरकार बनवाने के लिए काबुल में बैठे ही थे, चीन ने भी अफ़ग़ानिस्तान को 3.1 करोड़ डॉलर की फौरी मदद देने की घोषणा की है। हालाँकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी ब्रिक्स देशों के दिल्ली घोषणापत्र पर दस्तखत किये है। भारत की अध्यक्षता में हुए बृहस्पतिवार को हुए ऑनलाइन ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति को लेकर चिंता जाहिर की गयी । इसमें तालिबान का नाम लिए बगैर ये भी कहा गया कि ये सुनिश्चित करना चाहिए कि अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल दूसरे देशों में आतंक और उग्रवाद फ़ैलाने के लिए नहीं हो।
अफ़ग़ानिस्तान के पडोसी ईरान ने तो सबसे कड़ी प्रतिक्रिया दी है। ईरान के विदेश मंत्रालय ने पंजशीर घाटी में तालिबान द्वारा नॉर्दन अलायंस को कुचलने की कोशिशों में बाहरी ताकतों यानि पाकिस्तान की भूमिका की कड़ी निंदा की है। उसने ये भी कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में चुनाव होने चाहिए ताकि वहां एक वास्तविक प्रतिनिधित्व वाली सरकार बने। मौजूदा तालिबान सरकार में पख्तूनों और तालिबान का वर्चस्व है। अफगानिस्तान के अन्य वर्गों जैसे ताजिक और उज़बेकों की इसमें अनदेखी की गयी है। शिया सम्प्रदाय को मानने वाले हज़ाराओं को तो प्रतिनिधित्व तक नहीं मिला है। तालिबान और महिला अधिकारों का सांप छछूँदर का रिश्ता है सो किसी महिला को मंत्रिमंडल में जगह न मिलना तो तकरीबन तयशुदा ही था।
यों भी तालिबान के प्रवक्ता जेकरुल्ला हाशिमी ने कहा है कि औरतों का मंत्रिमंडल में क्या काम? उन्होने कहा कि औरतों का असल काम बच्चे पैदा करना है। बृहस्पतिवार को काबुल स्थित तोलो न्यूज़ में प्रसारित इस इंटरव्यू में हाशिमी ने कहा कि औरतों को बस ज़्यादा से ज़्यादा अफगानी बच्चे पैदा करने के काम में लगना चाहिए न कि मंत्रिमंडल पद जैसी जिम्मेदारी लेना चाहिए जो वो निभा नहीं सकतीं। हाशिमी ने अपने इंटरव्यू में कहा "पिछले 20 साल के दौरान आपके इस मीडिया, अमेरिका और उसकी कठपुतली सरकार ने जो कहा, जो औरतें दफ्तरों में काम करतीं थीं वो वेश्यावृत्ति नहीं तो और क्या है।" तोलो न्यूज़ के एंकर ने इस पर उन्हें टोका कि वे सभी अफगानी औरतों को वेश्या कैसे कह सकते हैं। इसका मतलब क्या है? क्या घर से बाहर काम करने वाली सभी औरतें वेश्या होतीं हैं। तालिबान और भारत में उनके पक्ष में बोलने वालों को इसका उत्तर देना चाहिए। इस साक्षात्कार के हिस्से इस ट्वीट में देखे जा सकते हैं।
https://twitter.com/natiqmalikzada/status/1435928332718067718?s=20
ये सोच निकलती है इस्लाम की घोर कट्टरपंथी व्याख्या से जो हक्कानी नेटवर्क जैसे कई तालिबानी मानते हैं। नयी अफ़ग़ान सरकार में हक्कानी नेटवर्क को ज़रुरत से ज़्यादा जगह मिली है। हक्कानी यानि पाकिस्तान परस्त इस्लामिक कट्टरपंथी गुट जिसे आईएसआई ने लगातार आतंक के लिए पाला पोसा है। चार हक्कानियों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। मालूम हो कि अफ़ग़ानिस्तान के नए गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक़्क़ानी संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी हैं। उनके सर पर एक करोड़ डॉलर का इनाम है। इसी तरह मंत्रिमंडल में शामिल उनके चाचा खलीउर्रहमान हक्कानी के तार अल कायदा से जुड़े रहे हैं। वे भी घोषित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी है। मंत्रिमंडल में शामिल दो अन्य हक्कानी हैं - नजीबुल्ला हक्कानी और शेख अब्दुल बकी हक्कानी। नजीबुल्ला संयुक्त राष्ट्र द्वारा तो अब्दुल बकी यूरोपीय संघ द्वारा नामित आतंकी हैं।
अबतक अंतरराष्ट्रीय जनमत के सामने एक नया मुखौटा पहन कर आने वाले तालिबान ने अपने असली तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। आम माफ़ी के घोषणा के बावजूद आत्मसमर्पण करने वाले अफ़ग़ान सेनाकर्मियों को क़त्ल किये जाने की खबरें हैं। खोर प्रान्त के फ़िरोज़कोह इलाके में एक गर्भवती महिला पुलिसकर्मी को उसके बच्चों के सामने ही बर्बरता के साथ मार डाला गया है। मारने से पहले उसके परिवार के सामने ही उसके चेहरे और शरीर को क्षत-विक्षत किया गया। बताया जाता है कि निगारा नाम की इस पुलिसकर्मी को आठ महीने का गर्भ था।
इस हफ्ते काबुल में होने वाले शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को बेरहमी से कुचल दिया गया है। इन प्रदर्शनों को कवर करने गए कई पत्रकारों को गिरफ्तार कर तालिबान ने क्रूर यातनाएँ दी हैं। इत्तिलातेरोज़ नामके स्थानीय अफगानी अखबार के कर्मियों और संपादक को कोड़े मारे गए हैं। खबर है कि रॉयटर के प्रतिनिधि एवं अन्य पत्रकारों की भी कवरेज करने के कारण पिटाई की गई है।
कुल मिलाकर अफ़ग़ानिस्तान को एक नयी तालिबानी सरकार नहीं मिली बल्कि 20 साल पहले के तालिबान अपने दुर्दांत रूप में फिर से काबुल में काबिज़ हो गए हैं। तालिबान की इस नई पारी का कोच पाकिस्तान है जो नहीं चाहता कि अफ़ग़ानिस्तान कट्टरवाद और इस्लामिक धर्मान्धता की अँधेरी खाई से बाहर निकले। अफ़ग़ानिस्तान में 'नियंत्रित अस्थिरता' और कट्टरवाद पाकिस्तान की नीति का हिस्सा है। उसे लगता है कि इससे वह भारत और मध्य एशिया में अपने हितों को साध लेगा। लेकिन इसमें एक ही अड़चन है वो है कि ये इंटरनेट के ज़माने का अफ़ग़ानिस्तान है। काबुल एवं अन्य अफगानी शहरों में हो रहे प्रदर्शन इसका एक नमूना भर है। यों भी आतंक, धर्मान्धता और 'नियंत्रित अस्थिरता' एक ऐसे शेर की सवारी है जो संतुलन खोने पर सवार को ही खा जाता है।
तालिबान और पाकिस्तान एक ऐसे बबंडर की ओर बढ़ रहे हैं जो उनसे संभाले नहीं संभलेगा। तालिबान में हक्कानियों के दबदबे के बाद मध्य एशिया में कट्टरवाद और भारत में इस्लामी आतंकवाद बढ़ने की गंभीर आशंका हैं। इस सबके बीच भारत को सक्रियतापूर्ण धैर्य और सतर्कता की आवश्यकता है। लेकिन असली संकट में अफ़ग़ान जनता है क्योंकि अमेरिका ने उसे तकरीबन तश्तरी में रखकर हैवानों के सामने परोस दिया है। दुनिया इन आसन्न संकटों से बेखबर नहीं है। इसीलिए ब्रिटेन की गुप्तचर संस्था एम्आई 6 के प्रमुख, अमेरिकी गुप्तचर संस्था सीआईए के प्रमुख और रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इस हफ्ते नई दिल्ली में थे। रूस और अमरीका इस मामले पर अलग-अलग राय रखने के बावजूद भारत के महत्व को समझते है। सब देख चुके हैं कि कट्टरपंथी इस्लाम से प्रेरित आतंकवाद की आग से कोई भी अछूता नहीं रहता।
Monday, August 30, 2021
तालिबान और भारत : आशंका नहीं संकल्प लेकर फ्रंटफुट पर खेलने का समय
Wednesday, June 30, 2021
मंदे पड़ते पाकिस्तानी सेना के #इस्लामी #आतंक के धंधे के बीच जम्मू में ड्रोन के जरिये #आतंकवाद फ़ैलाने की साज़िश
सीमा पर ड्रोन आतंकी हमले और कश्मीर पर राजनीतिक पहल
आज सुबह भारत पाक सीमा पर तीन ड्रोन को भारतीय एजेंसियों ने खदेडा है। ड्रोन के जरिये आतंक फ़ैलाने की ये नयी साजिश बेहद संगीन और खतरनाक है। इससे पहले रविवार को जम्मू कश्मीर पर केंद्र की राजनीतिक पहल के 4 दिन के भीतर ही जम्मू के वायुसेना अड्डे पर ड्रोन के दो हमले हुए। इन आतंकी कार्रवाई में कोई अधिक नुकसान तो नहीं पहुंचा पर इसका मतलब ये कतई नहीं लगाया जा सकता कि ये हमले खतरनाक नहीं हैं। इस पूरे घटनाक्रम की गहरी पड़ताल बहुत ज़रूरी है।
जम्मू के वायुसेना अड्डे पर 27 जून को तड़के अचानक दो ड्रोन आए थे। इनमें प्रत्येक में कोई 2 किलो विस्फोटक पदार्थ थे जो इन्होने वहां गिरा दिए। हवाई अड्डे में इनसे छोटे विस्फोट हुए। उसके बाद बताया जाता है कि ड्रोन वापस चले गए। जिस जगह हमला हुआ वह भारत पाक सीमा से बहुत दूर नहीं है। इसी तरह सोमवार और मंगलवार को भी भारत पाक सीमा के कुछ हिस्सों में ड्रोन के जरिये आतंक फ़ैलाने की नाकाम कोशिश हुई है। क्या ये नए किस्म का हमले आतंकवादियों, अलगाववादियों इस्लामी कट्टरपंथियों और पाकिस्तान की गंभीर हताशा का परिणाम है? या फिर ये जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को फिर से एक नया रंग देने की कोशिश है ?
पाकिस्तान की आई एस आई अगस्त 2019 में धारा 370 के खात्मे के बाद से कश्मीर घाटी में अपना असर खोती ही जा रही है। पिछले हफ्ते बृहस्पतिवार यानि 24 जून को जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों से केंद्र की जो बातचीत हुई उससे ऐसा लगा कि राज्य का माहौल पूरी तरह बदल सकता है। क्या जम्मू में ड्रोन के जरिये किये गए विस्फोट ये बताते हैं कि पाकिस्तान अब आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए कश्मीरी युवक नहीं जुटा पा रहा इसीलिये अब उसने मानव रहित ड्रोन के इस्तेमाल खूनखराबा फैलाने का जिम्मा खुद अपने हाथ में ले लिया है। ये ड्रोन कहाँ से उड़ाए गए और इसके पीछे कौन आतंकवादी संगठनहै? इसकी जांच एजेंसियों के हाथ में है। देर सबेर वे इस साजिश का पता लगा ही लेंगी। लेकिन आतंकवाद के इस नए और खतरनाक हथियार के अंतर्निहित कारणों का विश्लेषण बेहद ज़रूरी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बुलावे पर 24 जून को नई दिल्ली में जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों- पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस, बीजेपी, पैंथर्स पार्टी, पीपुल्स कांफ्रेंस, सीपीएम और जेके अपनी पार्टी के नुमाइंदों और केंद्र के साथ बातचीत हुई। बातचीत के बाद जो बयान आये वे काफी आशाजनक लगते हैं। इससे जो संकेत निकले वह बड़े स्पष्ट है। पहला, किसी भी राजनीतिक दल ने इस बातचीत का बहिष्कार नहीं किया। दूसरा, सभी पार्टियों ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की इस राजनीतिक पहल का आमतौर पर स्वागत किया। तीसरा, जम्मू कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया शुरू करने और उसमें शामिल होने में सभी ने अपनी सहमति जताई।
बैठक से एक बात और भी निकली कि सभी राजनीतिक दल वहाँ चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया में भाग लेने के लिए भी राजी हो गए। कुल मिलाकर इस बैठक में 370 को हटाने को लेकर कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया। यानी इन राजनीतिक दलों ने यह मान लिया है कि अब धारा 370 का समाप्त होकर जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म होना अब इतिहास की बात हो गई है। 370 का हटाया जाना अब राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की निरर्थकता को अब इन पार्टियों ने परोक्ष रूप से तो स्वीकार कर ही लिया लगता है।
यह स्वाभाविक ही है कि राजनीतिक दल जब बात करेंगे तो उनमें कई मतभेद भी होंगे लेकिन बुनियादी राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा लेने की हामी भर के सभी राजनीतिक दलों ने जम्मू कश्मीर में आगामी चुनावों के लिए एक जमीन तैयार की है। इस बैठक का सबसे सकारात्मक परिणाम यही है।
हालांकि कई विशेषज्ञ कह रहे हैं कि बातचीत का न्योता देकर केंद्र सरकार झुक गई है। उनका तर्क है कि धारा 370 हटाने के बाद सरकार ने कड़ा रुख अपनाया था। वहाँ के नेताओं को गिरफ्तार भी किया गया था। प्रधानमंत्री अगर अब उन्हीं नेताओं से बातचीत कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि उन्हें झुकना पड़ा है। हालांकि यह तर्क समझ में नहीं आता। क्योंकि धारा 370 हटाने के बाद राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने के लिए केंद्र सरकार की तत्परता को उसका झुकना कैसे बताया जा सकता है? असलियत में तो यह उसकी नीतियों की सफलता का ही द्योतक है। इस बैठक में कई पूर्व मुख्यमंत्री शामिल थे जो धारा 370 को लेकर पहले बड़े बड़े बयान देते रहे हैं। वे ताल ठोक कर कहते रहे हैं कि अगर धारा 370 हटी तो वे ईंट से ईंट बजा देंगे। धारा 370 हट गई तो वे ईंट तो क्या घाटी में एक कंकड़ भी नहीं हिला पाए।
उनका इस बैठक में आना और आगे होने वाली राजनीतिक प्रक्रिया मेँ भाग लेने को सहमति देना बताता है कि ये नेता भी समझ चुके हैं कि अब जम्मू कश्मीर का खास दर्ज़ा दोबारा वापस नहीं आने वाला। ये विश्लेषक भारत की इस बड़ी कूटनीतिक विजय को शायद पचा नहीं पा रहे। उन्हें लगता नहीं ही नहीं था कि जम्मू कश्मीर से हिंसा, राजनीतिक मारामारी, आतंकवाद और विदेशी हस्तक्षेप को खत्म भी किया जा सकता है।
वैसे देखा जाए तो धारा 370 समाप्त होने के बाद जम्मू कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया का शुरू होना यह नई बात नहीं है। इससे पहले केंद्र सरकार ग्राम पंचायतों के चुनाव करवाकर यह सिद्ध कर चुकी है कि जम्मू कश्मीर के अंदर एक नया जमीनी नेतृत्व तैयार हो रहा है।
इन पंचायत चुनावों में 51.7 % से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। कुल 280 जिला पंचायत सदस्य चुने गए जिनमें 100 महिलाएं भी चुनी गई। वहां बिना हिंसा के चुनाव भी हो सकते हैं पहले ऐसा कभी सोचा नहीं गया था। इस सफलता से वहां राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत तो हो ही चुकी थी। इसलिए चाहे वह पीडीपी हो चाहे वह नेशनल कॉन्फ्रेंस अथवा अन्य राजनीतिक दल वे समझ चुके हैं कि अगर इसमें उन्होंने हिस्सा नहीं लिया तो वह वहां पर अप्रासंगिक हो सकते हैं।
ध्यान देने की बात है कि धारा 370 समाप्त होने के बाद जम्मू कश्मीर के अंदर कोई बड़ा बवाल नहीं पैदा हुआ। जो राजनीतिक नेता धारा 370 की ओट में यह कहते थे की उनकी लाश पर ही जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा समाप्त किया जा सकता है, उन्हें भी अब एहसास हो गया है कि वे अलगाववाद, हिंसा, आतंकवाद और इस्लामी कट्टरवाद की जो फसल राज्य के अंदर पिछले कई दशकों से बोई जा रही थी वह सूखने लगी है।
इन गर्मियों में कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी का प्रायः नदारद हो जाना क्या बताता है? पाकिस्तान की तमाम कोशिशों के बावजूद वहाँ कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं हो पाने के संकेत बड़े स्पष्ट है। कुल मिलाकर वहाँ हिंसा और आतंक के मामलों में भी कमी आने का मतलब है कि जम्मू कश्मीर के लोग देश के अन्य हिस्सों की तरह जमीनी लोकतंत्र और विकास की राह देख रहे थे। जम्मू कश्मीर के कुछ दलों और परिवारों ने वहां हिंसा और आतंकवाद की आड़ लेकर अपनी मठाधीशी कायम की हुई थी। हिंसा और आतंक का चक्र उन्हें खूब रास आता था। वहां का अवसरवादी राजनीतिक नेतृत्व इस दुश्चक्र को ढाल की तरह इस्तेमाल कर भारत सरकार और भारत की जनता को तकरीबन ब्लैकमेल करते रहे हैं।
24 जून की बैठक के संकेत बहुत साफ है यह कि अब जनता के साथ वहां के राजनीतिक दल भी जम्मू कश्मीर के इस नए अध्याय में देश की ताल से ताल मिलाने को तैयार हैं। 27 जून को जम्मू के वायुसेना अड्डे पर ड्रोन के हमलों को कश्मीर घाटी में तेज़ी से चल रही इस सामान्यीकरण की प्रक्रिया से जोड़कर देखा जा सकता है। पिछले कई दशकों से चल रहा आतंकवाद, इस्लामी कट्टरवाद और अलगाववाद का घातक खेल पाकिस्तान और कुछ स्थानीय तत्वों ने मिलकर चला रखा था। इसी षड्यंत्र के तहत पाकिस्तान से हथियार और पैसा आता रहा और घाटी में कट्टरपंथी इस्लामिक सोच को पानी मिलता रहा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने और गृह मंत्री अमित शाह ने दूरंदेशी और साहस दिखाते हुए धारा 370 को समाप्त करने का अकल्पनीय फैसला अगस्त 2019 में लिया था। जिस तरह से पूरे देश ने उनका साथ दिया इससे अब पाकिस्तान में घोर निराशा है। पाकिस्तान सेना की आतंकवाद की फैक्ट्री के ढांचे को इससे गहरी चोट पहुंची है। दुनिया में भी इस पर कोई खास हलचल नहीं हुई थी क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय जनमत भी समझ गया है कि कश्मीर के नाम पाकिस्तान पर पूरी दुनिया में इस्लामी #कटटरवाद और आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है।
पाकिस्तानी सेना, इस्लामी कट्टरवाद और आतंक की दूकान चलने वालों का धंधा अब मंदा पड़ने लगा है। आतंक की इसी बुझती हुई आग को हवा देने की कोशिश थी जम्मू के ये ड्रोन हमले।भारत सरकार और देश के लोगों को अभी काफी समय तक सतर्क रहना होगा ताकि इस्लामिक कट्टरपंथी विचार से प्रेरित आतंकवादी संगठन और पाकिस्तान की सेना फिर से जम्मू कश्मीर में नफरत की फसल को न बो पाए।
Sunday, June 6, 2021
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को हिंदू मुस्लिम रंग देने की शरारत
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को हिंदू मुस्लिम रंग देने की शरारत
प्रधानमंत्री को औरंगज़ेब, हिटलर और तालिबानी कहना निंदनीय
सर्वोच्च न्यायालय और दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिए जाने के बाद अब इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की भोंडी शरारत हो रही है। पहले सुप्रीम कोर्ट और एक हफ्ते पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय महत्व का प्रोजेक्ट बताते हुए इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने तो इस प्रोजेक्ट को रोकने की याचिका करने वालों पर ₹100000 का जुर्माना भी लगाया था। लेकिन प्रोजेक्ट का विरोध करने वाले यहीं पर रुके नहीं हैं ।
अब इसे हिंदू मुस्लिम का रंग देकर सांप्रदायिकता भड़काने की कोशिश हो रही है। एक तरफ आम आदमी के चर्चित विधायक अमानुल्लाह खान ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के इलाके की 3 मस्जिदों को नुकसान पहुंचने पर चेतावनी भरा पत्र लिखा है। दूसरी ओर ब्रिटेन से छपने वाले 'द गार्डियन अखबार' में सेंट्रल विस्टा को 'हिन्दू तालिबानी' प्रोजेक्ट बताया गया है। अखबार के 5 जून के अंक में छपे इस लेख में सारी पत्रकारीय मर्यादाएं तोड़ते हुए प्रधानमंत्री मोदी को आज का औरंगजेब, हिटलर और तालिबानी जैसा बताया है।
पहले बात अमानुल्लाह खान की चिट्ठी की। आम आदमी पार्टी के विधायक अमानुल्लाह खान अपनी गुंडागर्दी के लिए जाने जाते हैं। आपको बताना जरूरी है कि इन्हीं पर 2018 की फरवरी में दिल्ली के तत्कालीन मुख्यसचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट इल्जाम है। इस बहुचर्चित केस में दिल्ली के मुख्य सचिव के साथ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास में रात को 12:00 बजे बुलाकर मारपीट की गई थी। अंशु प्रकाश की लिखित शिकायत में इस मामले में अमानुल्लाह खान को नामजद किया गया था।
इन्हीं अमानुल्लाह खान ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है। 03 जून की तारीख वाली इस चिठ्ठी में उन्होंने चेतावनी दी है कि सेंट्रल विस्टा में आने वाली तीन मस्जिदों को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से 10 दिन में इस पर जबाव माँगा है। आम आदमी पार्टी से पूछना बनता है कि अगर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में पड़ने वाले धार्मिक स्थलों के बारे में चिंता है तो फिर पार्टी विधायक को वहाँ के मंदिरों, गुरुद्वारों और गिरजाघरों का भी जिक्र करना चाहिए था। क्या धार्मिक भावनाएं सिर्फ मुसलमानों की होती हैं? राष्ट्रीय महत्व के इस प्रोजेक्ट को हिन्दू और मुसलमान के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। सवाल है कि यह चिट्ठी अमानुल्लाह खान जैसे कुख्यात विधायक से क्यों लिखवाई गई? अगर आम आदमी पार्टी को इस प्रोजेक्ट से शिकायत है तो पार्टी दूसरे तरीके से भी इस मामले को उठा सकती थी।
आम आदमी पार्टी को खैर दिल्ली में हिंदू मुसलमान वोटों की राजनीति करनी है। पर 'द गार्डियन' जैसे ब्रिटेन से छपने वाले अंग्रेजी अखबार को क्या हो गया कि उसके लेख में सारी पत्रकारीय लक्ष्मण रेखाएँ लाँघ दी गयीं। इंग्लैंड की नागरिकता रखने वाले आर्किटेक्ट अनीश कपूर का ये लेख कई अनर्गल तर्क और झूठ परोसता है। इस तर्क को आप क्या कहेंगे कि मोदी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट इसलिए बनवा रहे हैं क्योंकि वे मुसलमानों से घृणा करते है। बहुत ही बचकाना तरीके से इस लेख में मौजूदा संसद भवन और राजपथ की अन्य सभी इमारतों को इस्लामी बताया गया है। इन्हें "दुनिया की इस्लाम प्रभावित सबसे महत्वपूर्ण निशानी" बताते हुए वे लिखते हैं कि "मोदी भारत की सभी इस्लामिक इमारतों और 20 करोड़ मुसलमानों को नेस्तनाबूद करने से कम कुछ भी नहीं चाहते।"
उनका झूठ यहीं नहीं रुकता। वे कहते है कि "हमें नहीं भूलना चाहिए कि उन्होंने (मोदी ने ) ज़ोर ज़बरदस्ती से लाखों भारतीय मुसलमानों की नागरिकता छीनकर उन्हें राज्य-विहीन बना दिया है।" ये झूठ छापने से पहले गार्डियन को इसकी पुष्टि करनी चाहिए थी। समझ में नहीं आता कि अपने को प्रतिष्ठित करने वाले द गार्डियन जैसे 200 साल पुराने अखबार ने ये सफ़ेद झूठ अपने यहां क्यों छपने दिया। या फिर ये माना जाये कि ये अखबार और इसके संपादक भी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को सांप्रदायिक रंग देने के इस राजनीतिक खेल में शामिल हैं?
ध्यान देने की बात है कि इसी व्यक्ति ने 12 मई को एक खुला पत्र लिखकर भारत सरकार से सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को रोकने की मांग की थी। उनके साथ कोई 76 कथित बुद्धिजीवियों ने इस पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इस पर हताक्षर करने वालों में अधिकतर रोमिला थापर जैसे वामपंथी विचार वाले लोग ही थे। इस पत्र में कहा गया था कि कोरोना के कारण दिल्ली में कई खतरे हैं। कोरोना को देखते हुए सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट को फिलहाल रोक देना चाहिए। इसी तर्क के आधार पर दायर अन्या मल्होत्रा और सोहेल हाशमी की याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुनवाई की। इन मुद्दों को सिलसिलेवार ढंग से निपटाते हुए हाई कोर्ट के निर्णय में स्पष्ट कर दिया गया कि राष्ट्रीय महत्व के इस प्रोजेक्ट को रोकना ठीक नहीं होगा। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे ही चुका था।
लगता है प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों के लिए भारत की न्यायपालिका का कोइ मोल नहीं है। क्योंकि गार्डियन के लेख में अदालतों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर अवमानना पूर्ण टिप्पड़ी की गयी है। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को 'मूर्खतापूर्ण' कहते हुए लिखा गया है कि " भारतीय अदालतों पर दबाव डालकर इस मूर्खतापूर्ण योजना (सेंट्रलविस्टा ) पर हामी भरवाई गई है..."
उच्च न्यायालय के फैसले को एक हफ्ता भी नहीं बीता है कि जो लोग कोरोना के नाम पर सेंट्रलविस्टा का विरोध कर रहे थे, उन्हीं ने अब इसे हिंदू-मुस्लिम का रंग देना शुरू कर दिया है। शक पैदा होता है कि क्या प्रोजेक्ट का विरोध करने वाले भारत के लोकतंत्र में सचमुच में आस्था रखते हैं ? आप प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों से सहमत नहीं है, इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। प्रजातंत्र में ऐसा होता ही है। परंतु आप एक प्रोजेक्ट के विरोध के बहाने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे प्राचीन विरासत वाले राष्ट्र के चुने हुए प्रधानमंत्री को तकरीबन गाली गलौज देने पर उतर आये है। यह बात अशोभनीय, अमर्यादित और अलोकतांत्रिक है। इसे हिंदू मुस्लिम का रंग देने वाले भारत की स्वतंत्र और निष्पक्ष न्याय प्रणाली का अपमान तो कर ही रहे हैं, वे इस देश की लोकतांत्रिक मर्यादाओं, परंपराओं, आत्मसम्मान और गौरव का भी मज़ाक उड़ा रहे हैं। शायद इससे अधिक साम्प्रदायिक और निंदनीय कुछ और नहीं हो सकता।
#NarendraModi #CentralVista