Wednesday, January 13, 2016

प्रशांत पर सुप्रीम कोर्ट क्यों हुआ अशांत ? #ProxyPIL

                                         Picture courtesy +Neelabh Banerjee  #ProxyPIL
सुप्रीम कोर्ट ने आदतन और इरादतन जनहित याचिका दायर करने वाले वकील प्रशांत भूषण और उनकी संस्था सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन के तौरतरीकों पर कड़े सवाल उठाये हैं. मंगलवार को 4जी स्पेक्ट्रम मामले में प्रशांत भूषण की याचिका पर सुनवाई के दौरान देश के मुख्या न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने कई ऐसे सवाल खड़े किये जिनसे भूषण और उनके सहयोगियों का पसीना छूट गया.
मुख्य न्यायाधीश ने जो मुद्दे अपने सवालों के दौरान उठाये वे इतने महत्वपूर्ण और बुनियादी हैं जिनसे ऐसी जनहित याचिकाओं के वजूद पर ही सवाल उठते हैं. अभी तक ऐसी जनहित याचिकाओं को आलोचक पब्लिसिटी लूटने और राजनीतिक खेल करने का जरिया ही मानते थे. लेकिन कल उच्चतम न्यायालय ने अपनी गंभीर टिप्पड़ियों से इसमें व्यावसायिक हित (Commercial Interests), बेनामी (Proxy), पेशेवर मुकदमेबाज़ (Professional Litigant) जानकारी की विश्वशनीयता (Credibility of information) और बदला लेने के लिए न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग (Misuse of judicial process to settle score) जैसे नए बिंदु और जोड़ दिए.
वकील, राजनेता और सत्ता के गलियारों में घूमने वाले लोग देश की बड़ी अदालतों में दायर जनहित याचिकाओं के बारे में इस तरह की बातें अबतक कानाफूसी के ज़रिये ही किया करते थे. भरी अदालत में सुप्रीमकोर्ट, वो भी देश के मुख्य न्यायाधीश द्वारा इन संदेहों को उठाना बेशक एक बहुत बड़ी न्यायायिक घटना है.
सबसे बड़ा सवाल जो सुप्रीम कोर्ट ने खडा किया है वो है ऐसी जनहित याचिकाओं का आधार और उसके पीछे का इरादा. मुख्य न्यायाधीश ने बिना लागलपेट के सीधे प्रशांत भूषण से कहा कि “ जब आप हमारे पास आते हैं, हम आपको गंभीरता से लेते हैं. लेकिन जब कोई व्यावसायिक प्रतिस्पर्धी हमारे पास आता है, तो हम शायद ऐसा न करें. प्रतिस्पर्धी भी ये सब जानता है. (इसलिए) वह ऐसे कागजातों और जानकारियों के साथ आपके पास एक बेनामी (Proxy) को भेज सकता है जो आपको आमतौर से हासिल नहीं होते होंगे.”
मुख्य न्यायाधीश ये जानना चाहते थे कि ऐसा तो नहीं कि आपकी जनहित याचिका किसी ऐसे पक्ष के इशारे पर दायर की गयी है जो किसी से अपना बदला लेना चाहता है. ऐसा नहीं हो पाए इसके लिए जाँच की कोई व्यवस्था क्या सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने की है?
जब प्रशांत भूषण ने इसके जवाब में कहा कि जब उनके पास व्यावसायिक हितो से जुड़ा ऐसा कोई मामला आता है तो एक कमेटी उसकी जांच करती है. इस पर सुप्रीमकोर्ट की प्रतिक्रिया बहुत गौर करने लायक है. मुख्य न्यायाधीश ने तुरंत कहा कि, “ तो सिर्फ कामिनी जायसवाल और आप चैम्बर में बैठकर सबकुछ तय कर लेते हो ? हमें तो ये लगता है कि (आपके पास आने वाली) सूचना की विश्वशनीयता को परखने की आपके पास कोई व्यवस्था नहीं है,”
सुप्रीम कोर्ट के रुख को अगर देखा जाए तो उसने प्रशांत भूषण और उनकी संस्था की नीयत, विश्वसनीयता, काम करने के तौर तरीकों पर कुछ बुनियादी सवाल उठाये है. जाहिर है कि जिस तरीके से जनहित याचिकाओं का पिछले कई सालों में कुछ वकील और एक खेमा इस्तेमाल करता रहा है उससे सुप्रीमकोर्ट खुश नहीं है. देश की न्यायिक प्रक्रिया व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा  के लिए इस्तेमाल हो ये देश की सबसे बड़ी अदालत नहीं चाहती.
ये कोई छुपी बात नहीं है कि कुछ पहले तक प्रशांत भूषण जन हित याचिकाओं का इस्तेमाल एक पार्टी के लिए करते रहे है. जनहित याचिका इसलिए बनी थीं ताकि आम हिन्दुस्तानी सार्वजनिक हित से जुड़े मुद्दों को सीधे बड़ी अदालतों तक पहुंचा सके. मगर पिछले कई सालों से पेशेवर मुकदमे बाजों ने इसका इस्तेमाल व्यावसायिक हितों और राजनीतिक फायदे के लिया किया है. इससे देश का बड़ा नुक्सान हुआ है. सुप्रीम कोर्ट की इस लताड़ के बाद उम्मीद है कि निहित स्वार्थों के लिए हो रही इस तरह की बेनामी मुकदमेबाजी पर रोक लगेगी.

उमेश उपाध्याय ,
13 जनवरी 2016



1 comment:

  1. बिलकुल सही कहा उमेशजी, जनहित याचिका इन दिनों व्‍यवसाय हो गया है... कई बार लगता है कि ये व्हिसल ब्‍लोअर किसी और के कहने पर सीटी बजाते हैं, या तो उनमें मुंह में लगी सीटी किसी और की होती है या फिर उसमें फूंकी जाने वाली हवा

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