दंगल फ़िल्म में एक्टिंग करने वाली जाइरा वसीम को आखिरकार माफी मांगनी पड़ी। उनकी गलती महज इतनी थी कि उन्होंने दंगल की सफलता के बाद जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती से मुलाकात की थी। इस मुलाकात पर ही
16 साल की जाइरा वसीम को तमाम आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा। उन्होंने फेसबुक पर एक माफी लिखी जिसे उन्होंने डिलीट कर दिया। उसके बाद उन्होंने एक और पोस्ट लिखी इसे भी जाइरा ने बाद में फेसबुक से हटा दिया।
बता दे कि जाइरा जम्मू-कश्मीर की है और उन्होंने आमिर खान की नई फिल्म दंगल में अभिनय किया है। फिल्म में जाइरा ने हरियाणा की धाकड़ पहलवान लड़की की भूमिका अदा की है। फेसबुक पर जाइरा का माफीनामा दुखःद है और दिखाता है कि जम्मू-कश्मीर उन्माद, असहिष्णुता और कठमुल्लेपन भी किस हद तक जा पंहुचा है। उन्होंने इस पोस्ट में लिखा है कि
'' वे जम्मू-कश्मीर में युवा वर्ग की रोल मॉडल नहीं हैं और उन्होंने जो कुछ भी किया है उस पर उन्हें कोई गर्व नहीं है।" जब १६ साल की लड़की को अपने प्रदेश की मुख्यमंत्री से मिलने भर के लिए शर्मिंदा महसूस होने को मजबूर कर दिया जाय तो समझा जा सकता है कि कश्मीर की मानसिकता क्या हो गयी है ?
महशहूर फिल्म लेखक जावेद अख़्तर के शब्दों में कहा जाय तो '' जो रोज जोर शोर से आजादी के नारे लगाते है वे दूसरे को इंच मात्र आजादी देने को तैयार नहीं है। शर्मनाक है कि जाइरा को अपनी सफलता के लिए माफी मांगनी पड़ी। '' हरियाणा की पहलवान गीता फोगाट ने ठीक ही कहा ''धाकड़ लड़कियों का रोल करने वाली को डरने या शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं।''उन्होंने कहा कि हम भी बेहद तकलीफों और रुकावटों के बाद यहाँ पहुचे है तो जाइरा डरे नहीं। पूरा देश उसके साथ है।
देश तो जाइरा वसीम के साथ है ही, जो आमिर खान, उमर अब्दुल्लाह, बबिता फोगट, केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और अनुपम खेर की ट्वीट और करोड़ों भारतीयों की भावनाओं से साफ़ जाहिर है। मगर जम्मू-कश्मीर की जो हालात हुई है उस पर चिंता लाजमी है।
देश इस साल आचार्य अभिनव गुप्त की सहस्त्राब्दी यानि
1000 वी जयंती मना रहा है। कश्मीर के इस महान चिंतक ने दर्शन, आध्यात्म, नाट्यशाष्त्र को नए आयामों से परख उसकी अन्यतम व्याख्या प्रस्तुत की। विश्लेषण, अध्ययन, तर्क, विवाद, और नाट्य की एक अभिनव परंपरा कश्मीर में रही है। अफ़सोस, कि इस संपन्न विरासत की धनी कश्मीर की घाटी आज दुराग्रह , असहिष्णुता, संकीर्णता और कठमुल्लेपन की पर्याय हो गयी है।
कुछ देशद्रोही तत्व 'धरती के इस स्वर्ग' को धर्मान्धता की एक गहरी सुरंग की तरफ ले गए है। जहाँ दूसरी ऒर कुछ और नहीं बल्कि गहरा अँधेरा है । धार्मिक कट्टरपन, अतिरेक और उन्माद से प्रेरित आतंक ने वहां आमजन के भीतर एक अनूठा डर बैठा दिया है। यह डर अब वहां लोगों की सोच में दिखने लगा है। आतंक से उपजा यह भय
इस सुंदर भूमि को कहां ले जाएगा मालूम नहीं। एक बात साफ़ है कि
सीमापार से प्रेरित आतंकवाद का सामना करने में यह देश सक्षम और समर्थ है। परन्तु कश्मीर के मानस में कट्टरता का जो जहर लगातार भरा जा रहा है उसका तोड़ कहाँ से आएगा?
जाइरा की जबरन माफी इस विनाशकारी सोच को ही जाहिर करती है। अगर जाइरा जम्मू-कश्मीर के युवक-युवतियों के लिए एक आदर्श नहीं तो फिर सवाल ये है कि उनके आदर्श क्या हैं? ये सोचने की जरूरत पूरे हिन्दुस्तान के साथ कश्मीर के जाग्रत समाज को भी है। वरना ये मानसिक संकीर्णता उसे सोच की एक ऐसी काली कोठरी में ले जाएगी जहां से निकल पाना बेहद मुश्किल होगा।
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उमेश उपाध्याय
18 जनवरी 2017