2017
का ये साल केन्द्र सरकार के लिए अग्नि परीक्षा का साल रहने वाला है। पिछले दो साल में देश ने नीतियों में जो बदलाव किए उसके राजनैतिक परिणाम सामने आने लगेंगे, जिसका असर सीधे 2019 में होने वाले आम चुनावों की तस्वीर पर पड़ेगा। आगे
आने
वाले भारत की इबारत के लिहाज से इस मायने में ये साल बेहद महत्वपूर्ण है।
चलिए आज बात करते हैं देश की आन्तरिक राजनीति की। नरेन्द्र मोदी लीेक से हटकर चलने वाले और अपने आग्रहों को जुनून की हद तक निभाने वाले राजनेता हैं। पिछले दो साल में उन्होंने देश की नीतियों में बेहद साहसिक और अभूतपूर्व बदलाव किये हैं।
मोदी सरकार के नीतिगत बदलाव महज रस्मी नहीं रहे हैं बल्कि उनका ज़ोर लोगों के सोचने के तरीके और आदतों के बदलाव पर रहा है।हम जानते हैं कि ये दोनों ही चीजें बेहद कठिन और कष्टपूर्ण होती है। उदाहरण के लिए नरेन्द्र मोदी के दो बड़े बदलावों को देखें। एक नोटबंदी और दूसरा स्वच्छ भारत। ये दोनों ही नीतियां राष्ट्र्र और समाज जीवन में फ़ैली गन्दगी को दूर करने के लिए हैं। एक कचरा जो हमारे घर, मोहल्ले और शहर के आसपास फैला है और दूसरी गन्दगी है कालेधन और भ्र्ष्टाचार की। लेकिन दोनों की सफाई आम आदमी की रोजमर्रा की आदतों में अमूल बदलाव की मांग करती है। इसके अलावा इनका एक राजनीतिक पक्ष भी है जो विरोध की लोकतंत्रीय राजनीति पर आधारित है । इनके राजनैतिक विरोध को अगर एकबारगी परे रख भी दिया जाए
तो भी इन दोनों ही फैसलों को पूरे तरह से सफल
होने की शर्त है कि लोग अपने रहने के तरीके, ज़िंदगी जीने के तरीके, खर्च करने के तरीके और व्यापार करने के तरीके में आमूल बदलाव करें।
नरेन्द्र मोदी ने इस लिहाज से एक बेहद मुश्किल काम अपने हाथ में लिया है और इसके लिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत और राजनीतिक पूंजी साख पर लगा दी है। बदलाव की ये नीतियां अन्ततोगत्वा कितनी सफल होती हैं यह तो वक्त ही तय करेगा। परन्तु फौरी तौर
पर देखा जाए तो लगता है कि पहले राउंड में प्रधानमंत्री अपना सन्देश नीचे तक पहुंचाने में एक बड़ी हद तक कामयाब रहे हैं। मोदी के राजनैतिक विरोधियों की बौखलाहट और आम हिन्दुस्तानी नागरिक द्वारा उनकी स्वीकार्यता के पैमाने बताते हैं कि इन नीतियों का शुरुआती असर काफी गहरा हुआ
है। मगर
सवाल है कि क्या सिर्फ यही इनकी अन्तिम सफलता की गारंटी है?
भ्रष्ट व्यवस्था, अफसरशाही, राजनीतिक स्वार्थ, लालच और बंदरबाट पर आधारित हमारे बैंकिंग, प्रशासनिक और स्थानीय तंत्र से क्या मोदी की सरकार इन बड़े बदलावों को लागू कर पाएगी यह २०१७ तय करेगा ? आज इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि ये काम इतना सरल नहीं रहने वाला। जिस
तरह
देश
के हर गली कूचे में कूड़े के ढेर दिखाई देते हैं और जिस भांति उसके उसके खून में रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और कालाधन घुलमिल गया है, यह असंभव सा काम लगता है। बीजेपी समेत कोई
भी दल इस दोष से अछूता नहीं है। बड़ा
सवाल है कि क्या मोदी कालेधन के खिलाफ अपने अभियान को उसके वांछित परिणाम तक ले जा सकेंगे ?
पाँच राज्यों - उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में
चुनाव की घोषणा हो गयी हैं। अगले दो महीनों में होने वाले इन चुनावों के परिणाम एक तरीके से इस शुद्धि अभियान की सफलता का एक वैरोमीटर होंगे। मगर
पांच राज्यों के चुनाव महज़ इसका एक राजनीतिक पक्ष है। नोटबंदी और स्वच्छ भारत को सिर्फ चुनावी चश्मे से देखना सही नहीं होगा। ये समाज और व्यक्तिगत जीवन में शुचिता और शुद्धता तथा देश के आने वाले कल की तस्वीर से गहरे जुड़े हैं। यही
कारण है कि मोदी के विरोधी भी उनकी मंशा पर सीधी उंगली नहीं उठा पाए हैं। आम भारतीयों ने भी इसी कारण उन्हें हाथोंहाथ लिया है। इस मायने में मोदी के लिए ये अग्निपरीक्षा का साल होगा कि वे कैसे चुनावी राजनीति और उनके तात्कालिक नफा-नुकसान से ऊपर उठकर इन सरोकारों पर अटल रहते हैं।
उमेश उपाध्याय
4 जनवरी 2017
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