Thursday, December 7, 2017

गुजरात चुनाव : राजनीती में 'नीचता' की भाषा की हदें पार #Neech



सत्ता की चाह जो न कराए सो कम है। गुजरात के चुनाव ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों के शीर्ष नेताओं को एक तरह से पानी पिला दिया है। जहां कांग्रेस पूरी तरह सॉफ्ट हिंदुत्व पर उतर आयी है। वहीं प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव के मैदान में सारे घोडे खोल दिये  हैं। हांलाकि कहने को तो ये चुनाव एक राज्य का है मगर इसमें २०१९ के आम चुनाव जैसी बानगी दिखाई दे रही है। हों भी क्यों न? मोदी-शाह की जोडी के लिए ये प्रतिष्ठा का प्रश्र है, तो राहुल गांधी के लिए करो या मरो का सवाल है।

राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की नैय्या अब तक कहीं भी पार  नहीं पा सकी है। यहां तक कि उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकायों के चुनाव में अमेठी तक में उनकी पार्टी के उम्मीदवार हार गये हैं। नौबत यहां तक आ गयी है कि उनकी पार्टी ये कहने को मजबूर है कि राहुल  गांधी 'जनेऊ धारी ब्राह्मण हैं।' कमाल है न, जो पार्टी अपने शासनकाल में देश के संसाधनों पर 'अल्पसंख्यकों का पहला हक' की बात करती थी आज वह अपने पार्टी नेता की कथित जाति का इस तरह बचाव कर रही है।

अब राहुल गांधी ब्राह्मण हैं या नहीं अथवा वे जनेऊ धारण करते हैं या नहीं ये उनका व्यक्तिगत मसला है। मगर जाति के समीकरण का इतना खुला खेल शीर्ष स्तर परकांग्रेस ने पहले शायद कभी नहीं खेला। शायद कांग्रेस को लग रहा है कि हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और अल्पेशठाकुर की जातिगत खिचड़ी में 'जनेऊ धारी राहुल' का तड़का लगाना जरूरी है। अल्पसंख्यक के रूप में अहमदपटेल तो उनके पास पहले से हैं ही। ये देखकर तो ऐसा लगता है कि सोमनाथ मंदिर में प्रवेश के समय राहुल गांधीका अपने का गैर हिंदु लिखना शायद सोची-समझी रणनीति थी, ताकि ये मुद्दा जोर से उछाला जा सके।

सच्चाई कुछ भी हो, राहुल गांधी का ये नया भगवा चोला बताता है कि राजनीति कुछ भी करवा सकती है। उधर मोदी और शाह की जोड़ी भी ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही है क्योंकि गुजरात के साथ उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा जो जुड़ी है। यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी स्वयं अपने भाषणों में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनावों को लेकर महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेता शहजाद पूनावाला की छींटाकशी को जोर-शोर से उठा रहे हैं। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निमाण के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने जिस तरीके से राष्टपति डा राजेंद्रप्रसाद को वहां जाने से रोकने की कोशिश की थी, उसे भी मोदी बराबर दोहरा रहे हैं।

कबीर दास जी ने तो लिखा था 'माया महा ठगिनी हमजानी' मगर गुजरात चुनाव प्रचार में भाषणों की रंगत और नेताओं के बर्ताव को देखकर कहने को जी चाहता है  अब सत्ता ‘महाठगिनी’ हो गयी है। कांग्रेस तो देश में जाती हुई सत्ता के कारण 'विकास को पागल' बता रही है तो बीजेपी आती हुई सत्ता के साथ अति आक्रामक नजर आ रही है। चुनाव में जोश तो ठीक है, मगर होश भी बना रहे, ये बहुत जरूरी है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर का  प्रधानमंत्री को नीच बोलना तो ऐसा लगता है की वे ही खुद पगला गए हैं। ठीक है कि कांग्रेस ने अय्यर को झिड़क दिया है और उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। मगर ये एक बीमार मानसिकता का द्योतक है जो अपने आगे किसी और कुछ समझते ही नहीं है। 

इन नेताओं को समझना चाहिए कि जैसे माया हर मनुष्य को जीवन भर नचाती रहती है उसी तरह सत्ता भी चंचला होती है। यह कभी मदहोश कर देती है तो कभी होश उड़ा देती है। मगर इसके जाने पर दिमागी संतुलन ही खराब हो जाये तो ऐसे नेताओं पर आप शर्मिदा ही महसूस कर सकते हैं। लेकिन गुजरात की जनता समझदार है वह चुनावी लटकों-झटकों को खूब पहचानती है और वोट डालते हुए ध्यान रखेगी कि कौन सचमुच में उनका शुभचिंतक और खैरख्वाह है।

उमेश उपाध्याय
8 दिसंबर 2017 

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