अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तुनकमिजाजी से सारी दुनिया
भौचक है। वे कब क्या कह दें, इसका किसी को पता नहीं। #जी20 सम्मलेन से पहले उन्होंने #अमेरिका के मित्र कहे जाने वाले जर्मनी, जापान, और भारत के खिलाफ तल्खी भरे ट्वीट किये।हैरानी की बात है कि वे जापान में जी-20 शिखर सम्मलेन में ही भाग
लेने जा रहे थे। आमतौर से अंतराष्ट्रीय शिष्टाचार में अपने मेजबान पर टीका टिप्पड़ी
करना बद्तमीजी माना जाता है। इस अनुसार उन्हें जापान को बक्श देना चाहिए था क्योंक
सम्मलेन उसी के शहर ओसाका में हो रहा था। पर ट्रम्प को शिष्टाचार की परवाह कब रही
है?
भारत के खिलाफ उनकी टिप्पड़ी अमेरिका से आयात की जाने वाली वस्तुओं पर
सीमा शुल्क बढाए जाने को लेकर हैं। लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति ये ट्वीट करते हुए भूल
गए कि भारत ने ये शुल्क अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर शुल्क बढाए जाने के बाद
की है। यानि, अमेरिका तो ये कह कर सीमाशुल्क बढ़ा सकता है कि उसे अपने व्यापारियों
के हितों की रक्षा करनी है। लेकिन भारत ऐसा करें तो ट्रम्प लाल पीले हो रहे हैं ।
दरअसल डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के क्षुद्र और तात्कालीन स्वार्थों में इतने फंसे
हुए है कि वे दुनिया की बड़ी तस्वीर देख ही नहीं पा रहे। कभी खुली बाज़ार व्यवस्था
के मुखिया देश अमेरिका को वे उलटे रास्ते ले जाने पर आमादा हैं।
कई बार तो लगता है कि अमेरिका
फिलहाल अपने दोस्त और दुश्मन में फर्क करना भूल गया है। ध्यान देने की बात
है कि एक तरफ वो अमेरिका भारत पर दबाव बना रहा है कि वह रूस से एस -400 मिसाइल प्रणाली न ख़रीदे। लेकिन वहीँ रूस से अमेरिका कुछ नहीं कह रहा
है। जी-20 सम्मलेन से पहले भारत, जापान और जर्मनी के खिलाफ तो ट्रम्प ने सख्त लहजे में टिप्पड़ी की
परन्तु रूस के खिलाफ कुछ नहीं कहा।
असल में हमे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को गहराई से समझने की जरूरत
है। ट्रम्प पेशेवर राजनेता नहीं है। वे सिर्फ और सिर्फ अमेरिका के तात्कालिक हितों
पर नजर जमाये हुए हैं। उनके सामने अगला राष्ट्रपति चुनाव भी है। एक तरफ चीन के
खिलाफ उन्होंने आर्थिक-सामरिक मोर्चा खोला हुआ है, दूसरी
तरफ वे रूस को भी चुनौती दे रहे है। तीसरा
मोर्चा उन्होंने ईरान के खिलाफ भी खोला हुआ है। इन तीनों मोर्चों पर उन्हें भारत
के साथ की बेहद जरुरत है। ऐसा नहीं कि सिर्फ अमेरिका को ही हमारी आवश्यकता है।
हमें भी आर्थिक, सामरिक, तकनीकी, राजनीतिक और रणनीतिक कारणों से अमेरिका
की जरूरत लगातार पड़ने वाली है।
डोनाल्ड ट्रम्प चाहते है कि भारत अमेरिका का वैसा पिछलग्गू बनकर चले
जैसा कि नाटो के कई देश दशकों से करते आये
है। परन्तु भारत ऐसा नहीं कर सकता। वह
अमेरिका का दोस्त तो है परन्तु उसकी खातिर वह रूस, चीन
और ईरान से सीधे पंगा नहीं ले सकता। चीन
भारत का पडोसी है। रूस से भारत के पारम्परिक रिश्ते हैं। ईरान भारत का पडोसी तो है
ही - उसके साथ हमारे शताब्दियों से सम्बन्ध है। भारत यही संतुलन बनाकर चल रहा है।
हमारे दीर्घकालिक राष्ट्रिय हितों में ये जरूरी है कि अमेरिका के साथ नजदीकी के
साथ चीन-रूस-ईरान के साथ भी हमारे पारम्परिक रिश्तों की डोर पूरी तरह टूटे नहीं।
एक बड़ी हद तक हम ऐसा कर भी रहे है।
अमेरिका के अन्य नेता इस बात
समझते हैं। विदेश मंत्री माइक
पोम्पियों ने ऐसा अपनी भारत यात्रा के दौरान स्पष्ट तौर पर ऐसा कहा भी था। राष्ट्रपति ट्रम्प न तो इन बारीकियों को समझते है और न ही समझना
चाहते। इसलिए इन जटिलताओं के सामने आते ही
वे कई बार इस तरह की भड़ास निकालते रहते है। हमें इससे विचलित नहीं होना परन्तु यह
भी समझना जरुरी है कि आखिर ट्रम्प सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति हैं।
ऐसे में भारत को बेहद चौकन्ना और सतर्क रहने तथा व्यावहारिक और रणनीतिक सोच और
दृष्टि अपनाने की जरुरत है। संतोष की बात है कि इस समय हमारे विदेश मंत्री एस
जयशंकर है जो इन बारीकियों को बखूबी समझते है। राष्ट्रपति ट्रम्प की भड़ास भरी तुनकमिज़ाजी
को अनदेखा करना ही फिलहाल हमारे हित में
है।
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