ब्रिटेन अब भी ऐसा व्यवहार कर रहा है मानो सारी दुनिया पर उसका आधिपत्य हो। दक्षिण एशिया का तो वो अपने आप को चौधरी समझ बैठा है। अपनी चौधराहट की चाह मे ब्रिटेन के नेता और अधिकारी सामान्य राजनयिक शिष्टाचार और जिनीवा समझौतों के सीधे नियमों को भी भूल गए लगते हैं। जहां कश्मीर को लेकर दुनिया के अधिकतर देश भारत के साथ हैं वहीं ब्रिटेन का आचरण घोर निन्दाजनक और खेद पूर्ण हैं।
वहां के प्रशासन का एक वर्ग भारत विरोधी तत्वों को न सिर्फ बढ़ावा दे रहा है बल्कि वह वहां रहे भारतवंशियों तथा भारत के राजनयिकों को वांछित सुरक्षा देने में नाकाम रहा है।15 अगस्त को भारतीय उच्चायोग के सामने जो हुआ उसकी जितनी निन्दा की जाए वह कम ही होगी। इस दिन सैकड़ो भारतीय लंदन स्थित अपने उच्चायोग के सामने स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाने के लिए इकटठे हुए थे। इनमें औरते,बच्चे और बुजुर्ग सभी शामिल थे। अचानक ब्रिटेन के अलग-अलग हिस्सों से बसों में भरकर लाए पाकिस्तानियों ने इन्हे तीन तरफ से घेर लिया। इन पर बोतलों,अड्डों, चप्पल और जूतों से हमला किया गया। कई घंटो तक ये भारतवंशी इन हमलावरों के बीच फंसे रहे। हैरानी की बात है कि अपनी कार्यक्षमता को बढ़ा चढ़ा कर बताने वाली लंदन की पुलिस ने घंटो इस गुड़ागर्दी को होने दिया। इसमें कई लोग घायल भी हुए। क्या किसी सभ्य देश में ऐसा हमला होने दिया जा सकता है?
अगर ये मान भी लिया
जाए कि 15 अगस्त को लंदन की पुलिस तैयार नहीं भी हो तो फिर जो 3 सितम्बर को हुआ वह
लंदन की पुलिस ही नहीं बल्कि सारे ब्रिटेनवासियों के लिए शर्मनाक हैं। उस दिन फिर
ब्रिटेन के अलग-अलग हिस्सों से बसों में ढोकर लाए गए भारत विरोधी तत्वों ने लंदन स्थित
भारतीय उच्चायोग को घेर लिया। इस पर पत्थरबाजी की जिससे इमारत के कई शीशे टूट गए।
दोंनो दिन प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा खास तौर से पाकिस्तान से भेजे
गए उनकी पार्टी के बड़े नेता इन जलूसों की अगुवाई कर रहे थे।
उच्चायोग पर ये हमला करने वाले ब्रिटिश मूल के पाकिस्तानी और इमरान खान की तहरीके इन्साफ पार्टी के कार्यकर्ता थे। इन दोंनो हमलो से कई सवाल खड़े होते हैं।
उच्चायोग पर ये हमला करने वाले ब्रिटिश मूल के पाकिस्तानी और इमरान खान की तहरीके इन्साफ पार्टी के कार्यकर्ता थे। इन दोंनो हमलो से कई सवाल खड़े होते हैं।
एक तो ये कि क्या ब्रिटेन की सरकार में जानबूझकर ये हमले होने दिए? अगर ऐसा है तो फिर ब्रिटेन की सरकार का इरादा क्या है? क्या आज भी ब्रितानी सरकार अपने को हमारा हुक्मरान मानती है जो इस तरह की खुली गुडागर्दी भारतीयों के खिलाफ उसने होने दी? क्या उसे जिनीवा समझोतों का ख्याल भी नहीं रहा जिसमें उसने राजनियको की रक्षा की जिम्मेदारी ली है?
दूसरा सवाल ये कि क्या लंदन की कानून व्यवस्था की स्थिति इतनी खराब हो गई है कि वहां की पुलिस भीड़ के बेबस और लाचार हैं? क्या लंदन की पुलिस नाकारा और अक्षम है। भारत में भी कई बार चीन और पाकिस्तान के नई दिल्ली स्थित दूतावासों के खिलाफ प्रदर्शन होते हैं। पर हमारी पुलिस कभी प्रदर्शनकारियों को इन इमारतों के पास फटकने तक नहीं देती। क्योंकि हम मानते हैं कि राजदूतों की सुरक्षा हमारी खास ज़िम्मेदारी है।
तीसरा सवाल ये कि क्या परोक्ष रूप से ब्रिटेन की सरकार हम पर दबाव डालना चाहती है कि हम उसकी दादागिरी को स्वीकार करें? क्या वह कश्मीर पर दोगला रुख अपना रही है? ये हम जानते हैं कि लंदन के मेयर पाकिस्तानी मूल के हैं। ये भी सही हैं कि ब्रिटेन में कई संसदीय क्षेत्रों में मुसलमान मतदाताओं की संख्या काफी बढ़ गई हैं। इनमें से काफी पाकिस्तानी मूल के हैं। तो क्या ये मान लिया जाये कि अब वहां जो पाकिस्तानी जिहादी गुट चाहेंगे वैसा ही होगा?
कारण कुछ भी हो
भारत को कड़े शब्दों में ब्रिटेन की सरकार को बताना पड़ेगा कि ये धीगा मस्ती नहीं
चलेगी। ऐसा लगता है कि अब ब्रिटेन भारतीयों के लिए सुरक्षित नहीं रहा। ऐसी स्थिति
में हमें ये फैसला करना चाहिए कि भारतीय न तो घूमते-फिरने के लिए इंग्लैंड जाएं और
न ही अपने बच्चों को वहां पढ़ाने के लिए भेजें। भारत सरकार को तुरंत एक
चेतावनीपूर्ण एडवाइजरी जारी करनी चाहिए कि अब लंदन हमारे नागरिकों के लिए सुरक्षित
नहीं है। इसलिए वे वहां जाने से बचें।
अंग्रेज़ सरकार और
वहां के नेता मूलतः व्यापारिक मनोवृत्ति के लोग हैं। उन्हें सिर्फ धंधे की भाषा
समझ आती है। भारत के पर्यटकों, वहां पढ़ने जाने वाले विद्यार्थियों, खरीदारी के लिए जाने वालों और इलाज कराने जाने
वाले भारतीय मरीजों से ब्रिटेन को अच्छी खासी कमाई होती है। इसमें जैसे ही कमी
आएगी वैसे ही इंगलैंड के पाकिस्तान परस्त नेताओं और नौकरशाहों की अक्ल ठिकाने ला
जाएगी। ज़रूरत है कि ब्रिटेन को उसकी औकात और हैसियत का अहसास दिलाया जाए।
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