Thursday, March 19, 2020

कोरोना वायरस को हरा सकता है भारत


कल सुबह अखबार में एक अच्छी खबर पढ़ने को मिली। ये खबर आई थी लंदन से। इसमें जो ओसीआई कार्ड होल्डर विदेशों, खासकर इंग्लैंडमें रहते हैं, उन्होंने जिस तरह भारत कोरोना वायरस का सामना कर रहा है उसकी खुली तारीफ की। वैसे इस विषाणु का सही नाम तो कोविद-19 है पर बोलचाल की भाषा में इसे सिर्फ कोरोना कहा जा रहा है। ओआईसी कार्ड उन भारतवंशियों को मिलता है जो विदेशी नागरिक  होने के बावजूद आमतौर से बिना वीज़ा के भारत आजा सकते हैं और काम कर   सकते हैं। वे ब्रिटेन के नागरिक होते हुए भारतीयता के लाभ उठा सकते हैं। अर्थात एक तरह से उनके पास दोहरी नागरिकता है। इस खबर के मुताबिक भारतीयों ने कहा कि ब्रिटेन उस तरीके से कोरोना वायरस के फैलने को रोक नहीं पाया है जिस तरीके से भारत ने किया है।

इनमें से अधिकतर ने भारत आने की इच्छा भी जताई। इन्होने कहा कि कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के जो इंतजाम इंतजाम भारत ने किए हैं वह काबिले तारीफ हैं। उन्होंने ये भी कहा कि वे ब्रिटेन के बजाय कोरोना से भारत में ज़्यादा सुरक्षित महसूस करते है। ऐसी बात कहने वाले कई युवा भी थे। उन्हें इस बात से तकलीफ है कि भारत ने फिलहाल उनकी यात्रा पर पाबन्दी लगा दी है।  

उन्होंने बार-बार कहा कि ब्रिटेन का जो हेल्थ केयर सिस्टम यानि  एनएचएस है  वह अभी तक वायरस को  फैलने से रोकने के प्रभावी कदम उठाने में विफल रहा है। एक के बाद एक कई भारतवंशी ब्रिटिश नागरिकों ने भारत आने की इच्छा जताई ताकि वह भारत की बेहतर और कहीं किफायती स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठा सकें।  सोचने की बात है कि कुछ ही साल में कितना फर्क आ गया है?  कल तक इनमें से अधिकांश भारतवंशी भारत में गंदगी, अव्यवस्था और चिकित्सा सुविधाओं के अभाव का हवाला देते थे। सामान्य समय में भी ये भारत आने से कतराते थे।  आज इस महामारी के कठिन समय में भारत आने की गुहार लगा रहे है। कल तक हमारे देश के लोग इलाज कराने के लिए ब्रिटेन जाते थे और आज ब्रिटेन के लोग कह रहे हैं कि उनका स्वास्थ्य सिस्टम उतना अच्छा नहीं है। 

हैरत की  बात ये है  कि भारत के बारे में यह सराहना उस ब्रिटेन से आ रही है जिसके एक अर्थशास्त्री जिम ओ नील ने पिछले ही दिनों  भारत पर तंज कसते हुए कहा था कि भगवान का शुक्र है कि यह बीमारी भारत में नहीं पैदा हुई बल्कि चीन से निकली है। नील गोल्डमैन सैच के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री है। उन्होंने एक टीवी कार्यक्रम में  तकरीबन भारत का मज़ाक उड़ाते हुए कहा था कि जिस तरह चीन के प्रशासनिक तंत्र और सरकार ने कठोर कदम उठाते हुए इस महामारी का सामना किया है वैसा भारत तो कर ही नहीं सकता। लेकिन वे शायद ये यह भूल गए कि भारत के लोगों  पर जब संकट आता है तो वह चट्टान की तरह उठ खड़े हो जाते हैं बशर्ते उनको सही दिशा देने वाला हो। वैसे भी ब्रिटेन के कुछ बुद्धिजीवी अभी  इतिहास में ही जी रहे है। नील भी उन्हीं में से एक लगते है। उन्हें चाहिए कि वे अपने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की ओर ध्यान दें तथा भारत को बख्श दें।

वैसे चीन में जब इस अज्ञात शत्रु ने अपना खेल शुरू किया तो कई लोगों के मन में ये सवाल था कि यदि ये भारत में आएगा तो क्या होगा ? सवाल सही भी था क्योंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में हमारा पुराना रिकार्ड कोई बहुत अच्छा नहीं है। हमारी इतनी बड़ी जनसंख्या को देखते हुए क्या भारत इसको रोक पायेगा यह आशंका सब के मन में थी? लेकिन जिस तरीके से अब तक भारत के आम लोगों, स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाली एजेंसियों और सरकारी तंत्र ने इस संकट का सामना किया है वह अद्वितीय है।

सोचिए, ये वही डॉक्टर और स्वास्थ्य अधिकारी हैं दिन रात जिनकी हम आलोचना करते रहे  हैं। वहीं स्वास्थ्य केंद्र,  अस्पताल और हवाई अड्डे हैं जिनके बारे में हम सबके मन में अनेकों सवाल हैं। पर संकट की इस घड़ी में अब तक ये सब जिस तरीके से खड़े हुए हैं वह अद्भुत और  सराहनीय है।

ये सही है कि जिस तरीके से भारत ने अभी तक कोरोना वायरस के संक्रमण  को नियंत्रित किया है वह तारीफ के लायक है। लेकिन ये भी उतना ही सही है कि इस अनजान शत्रु से युद्ध का यह पहला ही मोर्चा है। अभी भारत कोरोना वायरस संक्रमण के पहले ही दौर में है।  लेकिन इस पहले दौर में भारत के डॉक्टरों , अस्पतालों, स्वास्थ्य सेवा अधिकारियों, कर्मचारियों, वैज्ञानिकों और भारत के राजनीतिक तथा प्रशासनिक नेतृत्व ने अब तक अच्छा काम किया है।  भारत अब कोरोना संक्रमण के अगले चरण में प्रवेश कर रहा है जो इसका द्वितीय चरण होने वाला है। जिसमें कम्युनिटी  यानि सामुदायिक संक्रमण  का सबसे ज्यादा खतरा  है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जिस तरीके से भारत  ने अभी तक इसका सामना किया है आगे भी उसी तत्परताउसी तेजी और उसी सक्रियता के साथ भारत का प्रशासनिक तंत्र, डॉक्टर, अस्पताल, सरकारी और निजी संस्थान तथा  लोग इसका सामना करेंगे।

एक बात तो कहनी ही चाहिए कि भारत के शीर्ष नेतृत्व ने कोरोना वायरस के खतरे को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करके उसे एक अवसर में बदला है। उन्होंने सिर्फ भारत के राज्यों और मुख्यमंत्रियों को ही विश्वास में नहीं लिया बल्कि पुराने गिले शिकवे छोड़कर  पड़ोसी देशों को भी साथ मिलाया। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी प्रोटोकॉल या राजनयिक औपचारिकता  की परवाह किए बगैर दक्षिण एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक बुलाई। ये बैठक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई।  जिसमें अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव और  बांग्लादेश के शीर्ष नेतृत्व ने हिस्सा लिया। सिर्फ पाकिस्तान से वहां के प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति नहीं बल्कि वहां के स्वास्थ्य मंत्री इस बैठक में रहे। पाकिस्तान ने तो इस संकट की घडी में भी राजनीति की और इस संजीदा मीटिंग में कश्मीर का मामला उठाने की कोशिश की। कुछ भी हो,  जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने दक्षिण एशिया के देशों को इकट्ठा किया वह उनकी तत्परता, कूटनीतिक समझ और और नेतृत्व शैली को दर्शाता है। भारत  ने इस विकट महामारी से लड़ने के लिए दक्षिण एशिया  एक साझा कोष बनाने का भी प्रस्ताव किया। भारत की ओर से इस फंड में एक करोड़ डॉलर के अंशदान की पेशकश भी की गयीं।

दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन यानि सार्क के मंच को इस आपदा के लिए पुनर्जीवित करना एक सही कदम है। क्योंकि संक्रमण और बीमारी देश की सीमाओं के मोहताज नहीं है। दक्षिण एशिया की भौगोलिक - राजनीतिक संरचना ऐसी नहीं है कि कोई एक देश कोरोना से सिर्फ अकेले अपने आप को बचा सके सके।

 30 जनवरी को भारत में कोरोना संक्रमण का पहला मामला सामने आया था तब से अब तक लगभग 7 सप्ताह हो चुके हैं।  इन 7 सप्ताह में कोरोना से संक्रमित मरीज़ो की संख्या 147  है जो कि बाकी देशों में संक्रमण फैलने की औसत से कम है। अगर पड़ोसी देश पाकिस्तान को देखें तो वहां तकरीबन 243 मामले अबतक सामने आ चुके हैं। जहाँ भारत ने इससे लड़ने के लिए तकरीबन पूरी तालाबंदी कर दी है। पर पाकिस्तान अभी तक जैसे कि सो  ही रहा है। उधर चीन से तो ये बीमारी पैदा हुई ही थी। ईरान में भी संक्रमण रुक नहीं रहा। अमेरिका 6524 लोग कोरोना पीड़ित हैं और 116 अमरीकियों की ये महामारी जान ले चुकी है।  यूरोप के देशों की हालत तो और भी खराब है। इटली तो संकटग्रस्त है ही, इंग्लैंड में भी  अबतक 1950 लोग संक्रमित हो चुके हैं और 71 मारे जा चुके हैं।

लेकिन अब हम क्रिटिकल फेज़ यानि संक्रमण के लिए बेहद नाज़ुक दौर में प्रवेश करने जा रहे हैं। लेकिन अब तक देख कर ऐसा लगता है कि भारत में  इंसानियत के इस अनजान दुश्मन को हराने की कूबत है। ये तो मालूम पड़ गया कि भारत के सिस्टम में काम करने का एक नया जज्बा है।  इस संकट ने यह दिखाया है कि पुरानी व्यवस्था को अगर सही दिशा मिल जाए तो भारत वह हासिल कर सकता है जिसके बारे में दुनिया कभी कल्पना भी नहीं कर सकती। भारत ने अबतक  सचमुच में ऐसा ही किया है। हमारे  डॉक्टर, वैज्ञानिक, चिकित्सा कर्मियों के साथ  स्वास्थ्य मंत्री डा हर्षबर्धन, विदेश मंत्री जयशंकर और भारत के प्रधानमंत्री मोदी इस सब के लिए बधाई के पात्र हैं।  आगे आने वाले दिनों में हर हिंदुस्तानी को बेहद सतर्कता और सावधानी बरतने की ज़रुरत है। उम्मीद ही नहीं, बल्कि पूर्ण विश्वास है कि हम इस बड़े संकट से पार पा ही लेंगे।

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