Wednesday, October 9, 2013

मौनी बाबा अब तो बोलो !

प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह अब क्या करेंगे? अपने पद, मंत्रिमंडल और सरकार की प्रतिष्ठा बचाते हुए इस्तीफ़ा देंगे? गांधी परिवार के प्रति उनकी निष्ठा भारतीय संविधान की गरिमा और पद के सम्मान से उपर नहीं हो सकती. सवाल सिर्फ़ उनके व्यक्तिगत सम्मान का ही नहीं. प्रधान मंत्री और मंत्रिमंडल की सार्वजनिक प्रताडना, भर्त्सना और अपमान किसी भी पार्टी का अंदरूनी मामला नहीं हो सकता.



प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह अब क्या करेंगे? अपने पद, मंत्रिमंडल और सरकार की प्रतिष्ठा बचाते हुए इस्तीफ़ा देंगे या फिर ”परिवार” के प्रति अपनी “अटूट आस्था” का निर्वाह करते हुए एक बार फिर खून का घूँट पी कर रह जायेंगे ? कोंग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने सार्वजनिक रूप से सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश की भर्त्सना कर और उसे “बकवास” बता कर एक अजीब सा संकट पैदा कर दिया है . जैसा कि राहुल गाँधी ने कहा कि “उन्हें इस बात से मतलब नहीं कि विपक्षी नेता क्या कह रहे हैं, उन्हें मतलब सिर्फ़ इस बात से है कि कोंग्रेस पार्टी क्या कर रही है.” पर क्या सवाल सिर्फ़ इतना सीधा है ? मंत्रिमंडल द्वारा पारित किया गया अध्यादेश जो कि राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया हो कोंग्रेस पार्टी का अंदरूनी मामला नहीं है. वह एक आधिकारिक और सरकारी दस्तावेज़ है जिस पर पूरे मंत्रिमंडल की मोहर लगी है.

क्या ये संभव है कि पार्टी में बहस हुए बिना ये मंत्रिमंडल ने पारित किया हो? तो फिर जब पार्टी में इस पर बहस हुई तो राहुल और कोंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने इसे क्यों नहीं रोका ? ये कोई ऐसा मुद्दा नहीं था जो गुपचुप कर लिया गया हो. उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद पूरे देश में और  मीडिया में इस पर चर्चा हो रही थी. संसद में भी इस पर बहस हुई थी. तब राहुल चुप क्यों रहे? इसीलिये सवाल इस अध्यादेश के सही और गलत होने का भी नहीं है. साफ़ है कि राहुल गांधी का नाटकीय बयान उनकी बाद की सोच है?

कोंग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को पूरा अधिकार है कि वे अपनी नीतियों, सोच और फैसलों में कितने ही बदलाव करें. परन्तु प्रधान मंत्री और मंत्रिमंडल की सार्वजनिक प्रताडना, भर्त्सना और अपमान किसी भी पार्टी का अंदरूनी मामला नहीं हो सकता. राहुल गांधी भूल गए कि डा मनमोहन सिंह कोई कोंग्रेस के नहीं पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं. उन्होंने देश के इस सबसे बड़े पद की मर्यादा बनाए रखने की शपथ ली है. गांधी परिवार के प्रति उनकी निष्ठा भारतीय संविधान की गरिमा और पद के सम्मान से उपर नहीं हो सकती. सवाल सिर्फ़ उनके व्यक्तिगत सम्मान का ही नहीं बल्कि उच्च  सांविधानिक पद की मर्यादा, राजनीतिक औचित्य और लोकतान्त्रिक मूल्यों का है.
राहुल गांधी शायद नहीं जानते कि उन्होंने शुक्रवार की दोपहर प्रेस क्लब में हो रही अजय माकन की प्रेस कोंफ्रेंस में तीन मिनट में क्या कर दिया है? अगर वो इसकी गंभीरता समझ पाते तो निश्चित ही ऐसा नहीं करते. उन्होंने न सिर्फ़ देश के केंद्रीय मंत्रिमंडल और प्रधानमन्त्री के पद को असाधारण नुकसान पहुँचाया है बल्कि अपने परिवार की विरासत, अपनी राजनीतिक समझ और लोकतान्त्रिक मर्यादा को दीर्घकालिक क्षति पहुंचाई है.

डा मनमोहन सिंह की राजनीतिक कार्यशैली, नीतिओं, आर्थिक सोच, दूसरे कार्यकाल में उनकी अकर्मण्यता और निर्णयहीनता की आप कितनी ही आलोचना करें उनकी सज्जनता और भलमनसाहत पर उंगली उठाना मुश्किल है. वे राहुल गांधी द्वारा इन शब्दों में सार्वजनिक निंदा के पात्र कदापि नहीं थे. उनके नज़दीकी लोग जानते हैं कि कई मौकों पर वे अपने निजी आग्रहों को छोड़कर पार्टी और परिवार के फैसलों पर अमल करते रहे हैं पर शुक्रवार का “फाड कर फैंक देने के लायक” और “पूरी तरह बकवास” प्रकरण संभवतः उनकी उस अंतरात्मा को भी झिंझोड दे जो उन्होंने “परिवार” के प्रति कृतज्ञता और एक “रहस्यमयी” कर्तव्यनिष्ठा को गिरवी रख छोड़ी है.

सबकी नज़रें अब डा मनमोहन सिंह पर रहेंगी कि वे अभी भी इन निजी निष्ठाओं के गुलाम रहकर कुछ और महीनों के लिए ऐसे प्रधानमंत्री बनकर रहना चाहेंगे जो इस तरह लताड़ा गया हो या फिर अपनी और अपने मंत्रिमंडलीय साथियों के पद और गरिमा की रक्षा करते हुए इस्तीफ़ा देने का साहस दिखायेंगे चाहे फिर नवंबर में चार राज्यों के साथ ही लोकसभा के चुनाव कराने की तोहमत उनके सर क्यों न पड़े. अगर वे ऐसा कर पाए तो वे फिर कुछ मात्रा में ही सही वे उस सम्मान को प्राप्त कर पायेंगे जो अपने इस दूसरे कार्यकाल में उन्होंने खोया है. अन्यथा एक कमज़ोर, शक्तिहीन और बिना रीढ़ के भारतीय प्रधानमंत्री की उनकी छवि इतिहास के पन्नों में सदा के लिए दर्ज हो जायेगी.  इस स्थिति के लिए जब वे राहुल गांधी से ज्यादा ज़िम्मेदार ठहराएं जायें तो फिर उन्हें आपत्ति नहीं होनी चाहिए.


उमेश उपाध्याय
28 सितम्बर 2013  

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