Sunday, June 7, 2015

योग के बहाने मोदी का ‘विरोधासन’ #YogaDay #SuryaNamaskar #InternationalYogaDay

योग के बहाने मोदी का ‘विरोधासन’



शीर्षासन करते हुए जब आप सिर के बल खड़े होते हैं तो दुनिया उल्टी नज़र आती है. दुनिया को सीधा देखने के लिए आपको अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा. लेकिन कुछ लोग शीर्षासन को ही सामान्य मुद्रा मानें तो मुश्किल की बात है. कुछ लोगों द्वारा योग का विरोध करना उनका लगातार सिर के बल खड़े होने जैसा ही लगता है. योग कोई पूजा पद्यति नहीं है और इस नाते किसी सम्प्रदाय और धर्म से इसे जोड़ना उचित नहीं है. संक्षेप में कहा जाए तो यह तन और मन में एक संतुलन बैठाकर दोनों को ही निरोग रखने की एक कला या जीवन पद्यति का नाम है. अब भला स्वस्थ और स्थिर मन तथा निरोग और तंदरुस्त शरीर रखने के तरीके का कोई विरोध कैसे कर सकता है? तंदरुस्ती के सवाल को दलगत राजनीती एवं धर्म से जोड़ना समझ में नहीं आता.

योग एक भारतीय परम्परा और जीवन शैली है. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अब इसका सम्मान कर रहा है. हर भारतीय के लिये ये गौरव और प्रतिष्ठा का विषय होना चाहिए. पर ऐसा नहीं होगा. 21 जून को जब संयुक्त राष्ट्र संघ यानि यूएनओ हर साल इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का एलान कर रहा होगा तो देश के ही कुछ लोग इसका विरोध कर रहे होंगे.

कौन हैं ये लोग और क्या है इनकी मंशा ? दरअसल ये विरोध योग का नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी का है. विरोध करने वाले लोग ज़्यादातर वही हैं जो मोदी की किसी भी नीति का विरोध करते ही हैं. इस तरह देखा जाए तो  उनका ये ‘विरोधासन’ योग का नीतिगत नहीं बल्कि राजनीतिगत ज्यादा लगता है. सबसे आश्चर्य की बात कोंग्रेस के प्रवक्ता का बयान है. उन्होंने स्कूली बच्चों द्वारा एक साथ योग करने का विरोध किया. बात समझ से परे है. क्या उन्हें लगा कि एम्आईएम के नेता ओवैसी के साथ खड़े होने से वे अल्पसंख्यकों के साथ नज़र आयेंगे? क्या योग को ऐसे साम्प्रदायिक नज़रिए से देखना उचित है? क्या ये देश के अल्पसंख्यकों का भी ये अपमान नहीं है?

कोंग्रेस के प्रवक्ता ये भी भूल गए कि योग को जो आज ये जो ख्याति मिल रही है उसमें उनकी प्रिय नेता और देश की पूर्व प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का अतुलनीय योगदान है. ये श्रीमती गांधी ही थीं जिन्होंने योग की शिक्षा को एक औपचारिक रूप दिया और स्कूलों में इसकी पढ़ाई शुरू हुई. उन्हीने सबसे पहले योग की क्रियाओं और आसनों को दूरदर्शन पर दिखाने का काम शुरू किया था.. योग के शिक्षकों की व्यवस्था भी श्रीमती गांधी ने पहली बार की थी. श्रीमती गांधी ने ऐसा करते हुए बच्चों और स्कूलों के बीच मज़हब के आधार पर भेद नहीं किया था.  क्या ये माना जाए कि आज की कोंग्रेस श्रीमती गांधी के उन कदमों को सही नहीं मानती?

दरअसल यहाँ ओवैसी यहाँ कोंग्रेस से ज्यादा ईमानदार नज़र आते हैं. उन्होंने कहा कि उनका मज़हब सूर्य नमस्कार की इजाज़त नहीं देता. तो इसमें क्या दिक्कत है सूर्य नमस्कार योग के सैकड़ों आसनों में से एक है. तो भाई छोड़ दीजिये एक आसन को. क्या फर्क पड़ता है. यों भी 21 जून को सूर्य नमस्कार नहीं होना है.

ये कहना तो बहुत ही बचकाना है कि रविवार के दिन बच्चों को अनिवार्य रूप से स्कूल में बुलाकर सामूहिक योग कराना ठीक नहीं. क्या ऐसा करके हम अपने बच्चों को अनुशासन और मेहनत का सही पाठ पढ़ा रहे हैं ? ये सोचने की बात है. योग को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्थापित करने के गौरव का बोध अपने बच्चों को दिलाना क्या हमारा सबका दायित्व नहीं है? होना तो ये चाहिए था कि अगर कोई सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहता था तो उसका रास्ता निकाला जाता. मगर इसके बहाने इस पूरे आयोजन का विरोध कर उन्होंने योग को को नहीं बल्कि मोदी को निशाना बनाया है. ये योग का नहीं बल्कि मोदी का राजनीतिक ‘विरोधासन’ है. इससे इसका विरोध करने वालों की प्रतिष्ठा निश्चित ही बढ़ी नहीं है.

उमेश उपाध्याय

7 जून 2015         

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