ललित मोदी की कहानी जैसे टीवी के लिए ही बनी हुई पटकथा है; इसमें एक नगर सेठ का देश निकाला है; अरबों रुपये का खेल है; एक खूबसूरत धनाढ्य एवं राजनेता की पत्नी महिला की मौत और राजनीतिक षड्यंत्रों का जाल है। इस कथा में रोज एक नए रहस्य से पर्दा उठता है और कहानी और उलझती जाती है। ये कहानी मध्यकाल के राजदरबारों में चलने वाले षड्यंत्रों की कथा जैसी लगती है। सोचिए एक राजा के शासन में ललित मोदी को देश निकाला दे दिया जाता है क्योंकि एक ताकतवर मंत्री के अहम को आईपीएल दक्षिण अफ्रीका ले जाने से चोट पहुंच जाती है। अब दिल्ली में सरकार बदल गई है। इस सरकार के एक मंत्री ने 'कानूनी तौर- तरीके से' ललित मोदी की मदद करने की सिफारिश ब्रिटिश सरकार से कर दी है तो पुराने मंत्रियों को ये पच नहीं रहा है।
हालांकि मसला किसी गैरकानूनी मदद का नहीं है पर फिर भी मुद्दा ठंडा होने का नाम नहीं ले रहा क्योंकि कांग्रेस को लगता है कि एक मोदी (यानी ललित मोदी) के बहाने वह दूसरे मोदी (यानी नरेंद्र मोदी) पर निशाना लगा सकती है। ये सही है कि इससे इस सरकार की स्थिति पर कोई असर नहीं पड़ने वाला, पर विपक्ष को लगता है कि इसके जरिये केंद्र की साख पर कुछ बट्टा तो लगाया ही जा सकता है। इसलिए कहानी का सच कुछ भी हो, ये राजनीतिक शोर अभी थमने वाला नहीं है। ललित मोदी के तौर-तरीके और व्यवहार इस सारे प्रकरण में आग में घी का काम कर रहा है।
अब ललित मोदी कितने पाक-साफ हैं, ये तो देश की अदालतें ही तय कर सकती हैं। लेकिन उनका व्यवहार और आचरण बहुत ही बेतुका सा लगता है। समझ नहीं आता कि जब उनके नाम पर इतना बड़ा हंगामा मच रहा हो तो वे इंटरव्यू के लिए जगह चुनते हैं मॉन्टेनेग्रो में एक कैसीनो के साथ समुद्र तट! क्या जगह चुनी भाई आपने? चलिए इंटरव्यू की बैकग्राउंड को एक बार आप नजरअंदाज भी कर दें तो जो कागजात उन्होंने अपने वकील आब्दी के द्वारा प्रेस को उपलब्ध करवाए वे भी कई सवाल खड़े करते हैं। ब्रिटिश अधिकारियों को दिए अपने आवेदन में वे बार-बार एक बात का जिक्र करते हैं कि वे वसुंधरा राजे के करीब थे इसलिए उन्हें कांग्रेस ने प्रताड़ित किया। मगर उन्हीं वसुंधरा राजे के एक तथाकथित लिखित मगर आधे-अधूरे बयान को उनके वकील ने प्रेस को दे दिया।
वसुंधरा के इसी कथित बयान के आधार पर उनका इस्तीफा मांगा जा रहा है। इसी पर हजारों ट्वीट और घंटों की बहस टीवी चैनलों पर हो गई। लेकिन हैरानी की बात है कि जो कागज लोगों को अब तक दिए गए, वे अधूरे हैं। इसमें पेज नंबर 4 से पेज नंबर 10 तक गायब हैं। जो पेज गायब हैं उन्हीं पर कथित रूप से वसुंधरा के दस्तखत वाला पेज भी है। इन पन्नों के अभाव में आप कैसे कह सकते हैं कि पक्के तौर पर ये बयान वसुंधरा राजे ने दिया? अब ऐसा करके ललित मोदी ने वसुंधरा राजे से दोस्ती निभाई है या दुश्मनी, कहना मुश्किल है।
अब तो ललित मोदी ताबड़तोड़ नाम पर नाम लिए जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि वो ये साबित करना चाहते हैं कि 'मैं साफ नहीं तो कोई भी साफ नहीं। अगर मैं नहीं बचा तो कई बड़े-बड़े नाम भी डूबेंगे'। यानी हम तो डूबेंगे सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे। वैसे क्रिकेट की राजनीति को देखकर लगता है कि देश की राजनीति भी शरमा जाएगी। कभी-कभी तो लगता है कि क्रिकेट -खासतौर से आईपीएल- अब खेल नहीं एक सर्कस हो गया है। ये अब खेल नहीं बल्कि 'पैसा फेंको, तमाशा देखो' है।
ललित मोदी की कहानी भी इसी से जुड़ी हुई है। उनकी ये कहानी मध्यकालीन राजदरबार में चलने वाले उन षड्यंत्रों जैसी लगती है जिसमें गद्दी से उतरे मंत्री, नगरवधुओं और विक्षुब्ध नगरसेठों के साथ मिलकर राजा ही नहीं, पूरे राज्य को ही नुकसान पहुंचाने पर आमादा हो जाते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि सोशल मीडिया के इस जमाने में कुछ भी ढका-छिपा नहीं रह सकता। दिख रहा है कि क्रिकेट के खेल के नाम पर सत्ता, प्रभाव, राजनीति, रसूख और पैसे का एक अलग ही खेल चल रहा था। इस 'बड़े खेल' के हमाम में ललित मोदी के साथ-साथ फिलहाल तो सभी नंगे नजर आ रहे हैं।
उमेश उपाध्याय
22 जून 2015
22 जून 2015
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