Thursday, July 21, 2016

कश्मीर की मौजूदा चुनौती : एक आग का दरिया है और डूब के जाना है



ग़ालिब की ये पंक्तियां देश के आज के हालात और भारत सरकार तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर खूब लागू होतीं हैं  हिंदुस्तान को चलाना और फिर उसे नए अंदाज़ और तरीके से चलाना एक बेहद चुनौती पूर्ण कार्य है  ये चुनौतियां बहु आयामी हैं एक तरफ आपके सर पर पाक आयोजित आतंकवाद है तो दूसरी और अंदरूनी मुश्किलात हैं जिनके पीछे कई राजनीतिक और सामाजिक ताकतें हैं जो किसी भी हाल में नहीं चाहेंगी कि हालात  सामान्य हों इन सबके बीच है बीजेपी और सरकार के पास अनुभवी सिपहसालारों की कमी जो चीजों और मुद्दों को सही तरीके से निपटा सकेंये कमी कभी देश के शिक्षा संस्थानों में हो रहे करतबों, कभी उत्तराखंड/अरुणाचल की राजनीतिक कलाबाजियों और कभी असंवेदनशील, अमर्यादित और बेतुके बयानों में साफ़ दिखाई देती है

लेकिन आज जो सबसे अहम मसला सामने है वो  कश्मीर  के हालात का है  कश्मीर का मामला बेहद जटिल है और इसके कोई सीधे हल नहीं हैं टीवी चैनलों के सतही बहस मुसाहिबों और द्रवित ह्रदय से लिखे सम्पादकीयों से इसका कोई हल निकलने वाला भी नहीं है ये बात सही है कि टीवी और मीडिया में चलने वाली बहस अक्सर भावावेश से गुजर कर मनोरंजन के हलके स्तर पर जाकर खत्म हो जाती है  मगर यकीन मानिए जो कश्मीर घाटी में  इन दिनों हो रहा है वह हल्के स्तर पर नहीं लिया जा सकता हम ये जानते हैं कि कश्मीर में भारत एक युद्ध लड़ रहा है ये लड़ाई लम्बी है क्योंकि इसमें जो विरोधी है उसने कई चीज़ों का घालमेल कर रखा हैउसका एक सिरा आतंकवाद से जुड़ता है तो दूसरा मज़हब के आधार पर घाटी में नस्लगत सफाई की एक सतत प्रक्रिया सेइसका तीसरा सिरा पकिस्तान की भारत विरोधी विदेश नीति से ताल्लुक रखता है तो चौथा उसकी अंदरूनी राजनीति की उठा पटक से


कश्मीर कोई एक पार्टी या एक नेता का मुद्दा नहीं है यह पूरे देश का मुद्दा है इसलिए ये ज़रूरी है कि पूरे देश से एक ही आवाज़ बाहर जाए  आप चाहे मीडिया से हों या फिर अलग अलग राजनीतिक सोच रखने वाली पार्टियों से - आप कश्मीर के भविष्य के बारे में अलग सोच नहीं रख सकते हाँकिसी हालात को किसी वक़्त कैसे निपटाया गया इसपर आपकी राय अलग हो सकती है मगर पिछले दिनों घाटी से बाहर भी कई ऐसे स्वर उभरे हैं जो अगर देशद्रोही नहीं तो फिर भारत के प्रति भलमनसाहत रखने वाले भी नहीं हैं आज जो आवाज़े उठ रहीं हैं वे उस समय कहाँ थीं जब वहां कश्मीरी पंडितों पर हिंसा का कहर टूटा था? आज जो लोग अपनी धरती छोड़ कर अपने ही देश में निर्वासित हैं उनके मूलभूत अधिकारों की बात करना भी क्या ज़रूरी नहीं है?  

सारी भारत विरोधी ताकतें एक होकर किसी भी तरह उस माहौल को बिगाड़ना चाहती हैं जो देश ने बड़ी मुश्किलों  के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाक प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ बनाया है इस गम्भीर परिस्थिति को धैर्य, कड़े मनोबल, सूझबूझ और कौशल से ही निपटा जा सकता है घोषित आतंकवादियों जिनमे बुरहान वानी भी शामिल है, को मार गिराना सेना और पुलिस का काम है जो उन्होंने बखूबी निभाया है लेकिन आतंकवाद जब नागरिकों को अपनी ढाल बना कर हथियार के रूप में इस्तेमाल करे तो फिर कभी बोली तो कभी गोली का इस्तेमाल करना होगा 

कश्मीर के हालात में तूफ़ान कोई पहली बार नहीं आया हैइससे मुश्किल वक़्त भी इस देश ने वहां देखा है और उसे बड़े धैर्य, जतन और बलिदानों  के साथ कामयाबी हासिल की है इसलिए कैसे भी हालात हों इस बात को कैसे सही ठहराया जा सकता है कि देश के बाकी हिस्सों में 'आज़ादी' के नारे लगें  क्या मोदी विरोध में आप इतने आगे चले जाएंगे कि आप देश को पीछे छोड़ देंगे ? देश की सेना का मनोबल तोड़ने वाली बातें करेंगे? संयम की ज़रुरत सबको है  मीडिया, सरकार, विपक्षी दलों और बुद्धिजीवियों सबको  क्योंकि कश्मीर का सवाल देश का सवाल है 

सरकार की ज़िम्मेदारी देश चलाने की है इसलिए उसका उत्तरदायित्व भी कहीं ज़्यादा है जैसा मैंने  ऊपर कहा कि कई मौकों पर सरकार के लोगों की सूझबूझ, कौशल और अनुभव की कमी प्रधानमंत्री और शीर्ष राजनैतिक नेतृत्व के लिए परेशानी का कारण बनी है मगर प्रधान मंत्री भी ये जानते हीं होंगे कि उनके सामने जो समस्याओं का पहाड़ है खासकर कश्मीर में वह बड़ा विकट है मगर उम्मीद भी लोगों को उनसे ही है आग के इस दरिया को तैर के पार करने की ताकत और मनोबल अगर किसी में है तो वह उन्हीं में है इसलिए प्रधान मंत्री मोदी और उनकी सरकार के लिए के लिए कश्मीर में ये परीक्षा की घड़ी है जिसकी कामयाबी की प्रार्थना करोड़ों भारत वासी कर रहे है

उमेश उपाध्याय
20 जुलाई 2016  

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