Sunday, July 31, 2016

कावँड यात्रा-भारत बनाम इंडिया !



सावन की शिवरात्रि के दिन कल देश में करोड़ों काँवड़िए अपने नगर, गाँव, बस्ती, मुहल्ले, क़स्बे के शिवालय में गंगा अथवा अन्य पवित्र नदी के जल से अपने आराध्य भगवान शिव का अभिषेक करेंगे। इन कांवड़ियों में महिलाएँ, बच्चे, बूढ़े, समर्थ, असमर्थ सभी शामिल होते हैं। कुछ चित्र मैंने आपके लिए आस्था की इस पवित्र यात्रा के लिए अपने फ़ोन में क़ैद किए हैं।

अपने आराध्य के प्रति समर्पण, त्याग और परिश्रम की प्रतीक ये कांवड यात्रा शताब्दियों से अनवरत चल रही है। भोलेनाथ की प्रसन्नता के लिए कई कांवड़िये तो कई सौ किलोमीटर पैदल गंगा तक जाते हैं और फिर अक्सर नंगे पाँव लौटकर अपने शिवालय में उनकी पूजा अर्चना करते है।
ज़्यादातर कांवड़िये ग्रामीण, अर्धशहरी, क़स्बाई या शहरों की अपेक्षाकृत कम सम्पन्न बस्तियों के परिवेश से आते हैं। इसलिए हमारे तथाकथित 'सभ्य और संभ्रांत समाज' और मुख्यधारा का मीडिया या तो इनकी अनदेखी करता है अथवा इन्हें एक समस्या के रूप में देखता है। इनकी आस्था पर उसकी नज़र कम ही जाती है। हाँ, इनके सड़क पर चलने से होने वाली तकलीफ़ों और क़ानून व्यवस्था पर अनेक ख़बरें आपको मिल जाएँगी ।


भारत और इंडिया का ये फ़र्क़ इस दौरान साफ़ नज़र आता है। ये अलग बात है कि इस बार जितने कांवड़िये दिखाई दिए उनमें से तक़रीबन 90 फ़ीसदी अपनी आस्था के ध्वज के साथ भारत का तिरंगा भी साथ लेकर चल रहे थे। वैसे आजकल के माहौल में इनके राष्ट्रप्रेम को भी कई समझदार लोग अपने ही ख़ास नज़रिए से देख उसे हल्का कर आंक सकते हैं!


इसे आप एक धार्मिक-सांस्कृतिक अनुष्ठान के रूप में भी देख सकते हैं या फिर समस्या के रूप में भी। बस नज़रिये के बात है। पता नहीं कब 'इंडिया' इस भारत को समझेगा और अपनायेगा ?

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