भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान से ज्यादा परेशान वे लोग हैं जो देश के अंदर बैठकर ही पाकिस्तान की तरफदारी करते रहे हैं। यहां शुरू में ही मुझे ये साफ कर देना जरूरी है कि मुझे भी पाकिस्तान की जनता या खुद अपने पड़ोसी देश से कोई तकलीफ नहीं। मैं उसे दुश्मन भी नहीं मानता। हां, मुझे उस पाकिस्तान से तकलीफ है जो आज दुनिया में आंतकवाद का प्रतीक बन गया है। पाकिस्तान की उस आतंकी सोच से परेशानी है जो हिन्दुस्तान को हज़ार जख्म देना चाहता है और इसी कारण सीमापार से आतंक की एक फैक्टरी चला रहा है।
अब जरा देश में पाकिस्तान परस्ती और उसके समर्थकों पर नजर डालना जरूरी है। ये सोच रखने वाले लोगों की कुछ मूल अवधारणाएं हैं। पहली अवधारणा है, भारत के मुसलमानों को पाकिस्तानी खूंटे से बांधना। दूसरी अवधारणा, प्रधानमंत्री मोदी के राष्ट्रवाद को हिन्दू राष्ट्रवाद घोषित करना। तीसरा, जो भी मोदी करें उसे एक खांचे में समेट कर उसके बारे में शक और अफवाह का माहौल पैदा करना। ऐसा करके ये लोग देश के मुसलमान, राष्ट्रवादी सोच और भारत तीनों के ही साथ अन्याय कर रहे हैं। भारत का हर नागरिक - चाहे किसी भी सम्प्रदाय या मज़हब का क्यों न हो, पहले भारतीय है और बाद में आता है उसका मज़हब। दूसरा, राष्ट्रप्रेम को किसी संकीर्णता से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। तीसरी बात ये कि कुछ नीतियों पर आज़ादी के बाद से ही देश एकराय रखता है उसमें दलगत सोच नहीं आती - वह है देश की एकता और सुरक्षा। आतंकवाद से लड़ाई सीधे देश की सुरक्षा से ही जुडी है।
दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविंद केजरीवाल का बयान है कि भारत को दुनिया के सामने सिद्ध करना चाहिए कि सर्जिकल स्ट्राइक हुए थे या नहीं । एक्टर सलमान खान कहते हैं कि पाकिस्तानी कलाकार, आतंकवादी नहीं हैं। ओमपुरी कहते हैं कि सीमा पर शहीद होने वाले जवानों से किसने कहा था कि वह जाकर सेना में भर्ती हों। इन सभी की दिक्कत शायद ये है कि जाने अनजाने में वे अपनी बात कहते हुए ये भूल गए कि इससे आतंक फैलाने वालों का फायदा हो सकता है। इनमें से कुछ मोदी के विरोधी हैं। मगर मोदी और बीजेपी का विरोध करते हुए ये कब पाकिस्तानी आतंकियों की हिमायत करने लगते हैं इन्हें शायद पता ही नहीं पड़ता।
दिलचस्प बात यह है कि ये सब अपने पहले दो वाक्यों में सेना की तारीफ करते हैं और मोदी के साहसिक फैसले को अच्छा बताते हैं। लेकिन इसके बाद इतने किन्तु-परन्तु लगाते हैं कि इनके पहले वाक्य कहीं पीछे रह जाते हैं। क्या सेना की तारीफ सिर्फ इनकी चालाकीपूर्ण रणनीति तो नहीं? पाकिस्तान अपनी झेंप छिपाने के लिए बस में भरकर उन कुछ स्थानों पर मीडिया को लेकर गया जहां भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक किए थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने अपने बयान में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित इसी मीडिया दौरे का हवाला दिया। सवाल है कि इतने दिनों बाद क्या पाकिस्तानी सेना अपनी पिटाई के नामो निशान वहां रहने दे सकती है ?
संचार क्रांति के इस युग में आपसी तनातनी में हर देश मनोवैज्ञानिक लड़ाई का सहारा लेता है। क्या उसके प्रचार तंत्र का शिकार हमें होना चाहिए ? पाकिस्तान पिछले सालों में परमाणु युद्ध की धमकी का इस्तेमाल भारत में आतंकवाद फैलाने के रक्षाकवच के रूप में करता रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में भारत ने ऐसा धोबी पछाड़ मारा है कि पाकिस्तान को बेइन्तहा दर्द हो रहा है। इसे कम करने के लिए उसके प्रचारतंत्र ने मीडिया की इन कहानियों का तानाबना बुना। पाकिस्तान द्वारा यह करना लाजमी ही है मगर केजरीवाल की क्या मजबूरी है कि वे इन मीडिया रिपोर्ट्स का सहारा लेकर सेना की इन स्ट्राइक्स को साबित करने को कहें?
उनकी मजबूरी शायद ये है कि वे अपने को प्रधानमंत्री मोदी के बराबर दिखाना चाहते हैं। केंद्र सरकार के इस साहसिक, राजनीतिक, कूटनीतिक और सामरिक दाव के बाद संभवतः उन्हें लगा है कि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता बढ़ रही है। इस समय केजरीवाल को सिर्फ पंजाब के चुनाव नजर आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि पंजाब में सत्ता की सजी थाली कहीं उनसे छूट न जाए। इसीलिये उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक पर ही कुछ सवालिया निशान खड़े कर दिए ? वैसे सरकार ने ये ठीक फैसला लिया है कि इन स्ट्राइक्स के वीडियो सार्वजनिक नहीं किये जाएंगे। सीमा पर चल रहा आतंकवाद कोई हंसी मज़ाक नहीं है। वहां खून की होली हो रही है कोई टीवी की बहस नहीं जहाँ ज़ुबानी जमाखर्च से काम चल जाता है। सेना के ऑपरेशन की जानकारी देना बिल्कुल ऐसा ही होगा जैसे कि चक्रव्यूह रचते हुए आप दुश्मन को उसकी जानकारी देदें कि आपने ऐसा कैसे किया। अगर आप ऐसा करते है तो फिर आगे कभी आप ऐसा नहीं कर पाएंगे।
अब जरा चलते हैं ओमपुरी, सलमान खान, महेश भट्ट और करण जौहर आदि की तरफ। मैं भी मानता हूं कि पाकिस्तानी कलाकार आतंकवादी नहीं। मगर भारत में आकर काम करने वाले कलाकारों और खिलाडिय़ों को भारत के खिलाफ हो रही आतंकवादी गतिविधियों की निंदा तो करनी ही चाहिए। उनसे किसी ने नहीं कहा कि वे अपने देश की निंदा करें। मगर उड़ी में आतंकवादी हमलों में भारतीय जवानों की हत्या की वे निंदा भी न करें और फिर भी भारतीय दर्शक उन्हें सिर पर बिठाकर रखें - ये कैसा तर्क है? सलमान, महेश भट्ट और करण जौहर को समझना चाहिए कि कोई भी कला या कलाकार देश से बड़ा नहीं होता। पूरी फिल्म इंडस्ट्री को भी एक साथ रख दिया जाए तो वे एक फौजी के खून के पासंग के भी बराबर नहीं।
केजरीवाल, सलमान, करण जौहर या महेश भट्ट अपने विचारों के लिए स्वतंत्र हैं। लोकतंत्रीय व्यवस्था में उनके विचार ज़रूर एक स्थान रखते हैं - उनका स्वागत और सम्मान हमारी व्यवस्था करती है। वे मोदी, भारत सरकार और सत्तारूढ़ दल के खिलाफ खूब बोलें। बहुत सारे मुद्दे है इसके लिए। पर जब सवाल देश की सेना, पाक प्रायोजित आतंकवाद और उसके खिलाफ भारत की रणनीति का हो तो वे उस लक्ष्मण रेखा का भी ध्यान रखें जो भारतीय मानस में खिंची हुई है। राजनीतिक विरोध और वैचारिक आग्रह एक तरफ हैं लेकिन इस बार ऐसा लगता है कि मनोवैज्ञानिक युद्ध में ये लोग जाने या अनजाने में पाकिस्तान के प्रचारतंत्र का हिस्सा ही बन गए हैं।
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उमेश उपाध्याय 12/10/16
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