Thursday, February 2, 2017

डोनाल्ड ट्रम्प और भारत: सतर्कता की ज़रुरत #Trump #Modi

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प खासी जल्दबाजी मैं हैं। वे एक के बाद एक ताबड़तोड़ फैसले लिये जा रहे हैं, जिनसे उनका देश ही नहीं सारी दुनिया तक़रीबन हतप्रभ हैं। सब ने शायद सोचा था कि आम राजनेताओ की रहा उनके चुनावी वादों और बाद के कामो में फर्क होगा मगर वे चुनाव प्रचार के दौरान की गयी बातों के प्रति कितने संजीदा हैं ये उनके द्वारा किये गए अबतक के फैसलों से साफ़ ज़ाहिर होता हैं।
जिस तरह से सात इस्लामिक मुल्कों के नागरिकों के अमरीका आने पर उन्होंने एक रोक लगायी है और अफगानिस्थान सऊदी अरब और पाकिस्तान से आने वालों की जांच कड़ी करने का फैसला किया हैं , उससे उनके इरादो के बारे में पता चल ही गया हैं। अमेरिका में उनके इन क़दमों का विरोध भी हो रहा हैं मगर वे इससे विचलित नहीं हैं। उन्हें बस अपने लक्ष्य की चिंता हैं। चुनाव के दौरान मोटे तौर पर उन्होंने अपने दो लक्ष्य रखे थे। एक, अमेरिका को और अधिक मज़बूत, सुरक्षित एव ताकतवर बनाना तथा दूसरा, अमेरिका की अर्थ व्यवस्था को मज़बूत करना।
उनके पहले लक्ष्य के तहत दुनिया में चल रहे जिहादी आतंकवाद के खिलाफ लडाई और तीखी और सख्त होगी।इस मुद्दे पर भारत और उनके हितों में यहाँ एकमत दिखाई देता है। भारत सीमा पार से आतंक का सामना लंबे समय से कर रहा है. भारत के खिलाफ आंतक का यह सिलसिला कही खुले तौर पर तो कही छुपे तौर पर ज़िहादी आतंकवाद ही हैं। 9/11 से बहुत पहले से ही भारत इसे भुगत रहा है। इसलिए आतंकवाद के साथ इस लड़ाई में भारत और अमेरिका साथ साथ होने ही चाहिए ।
इस कड़ी में ट्रम्प का दूसरा निशाना हैं चीन की बढ़ती ताकत और उनकी विस्तारवादी नीतियों पर रोक लगाना। लगता है कि अमेरिका इसमें दो सहयोगी बनायेगा। एक रूस ओर दूसरा भारत। रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ ट्रम्प के सम्बंध पहले से ही अच्छे हैं और प्रधान मंत्री मोदी के साथ भी वे अब ज्यादा पींगे बढ़ाएंगे ऐसा लगता है। चीन को बढ़ने से रोकना ये अमेरिका का मकसद हैं। सवाल है कि भारत उसकी मुहीम में कितनी दूर तक जाएगा? भारत क़ो इस मसले में फूँक फूँक कर कदम रखने होंगे।
अगर चीन के साथ एक ' व्यापारिक शीतयुद्ध' की शुरुवात होती हैं तो भारत अमेरिका का नज़दीकी साथी होते हुए क्या स्वतंत्र फैसले ले पायेगा ? अमेरिका की संभावित अपेक्षाओं और भारत के अपने राष्ट्रीय हितो के बीच बीच एक संतुलन बिठाना भारतीय नीतियों और राजनय के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है। इस मामले में मोदी को चौकन्ना रहना होगा।
ट्रम्प एक उद्योगपति हैं और अमरीकियों को उन्होंने बेहतर नौकरियां, ज्यादा रोज़गार और आउटसोर्सिंग पर रोक लगाने के सपने दिखाए हैं। अमेरिका अब खुली अर्थव्यवस्था को छोड़ संरक्षणवाद तरफ बढेगा। राष्ट्रपति ट्रम्प के कई फैसले इस तरफ साफ़ इशारा कर रहे हैं। सवाल यह हैं कि भारत के आर्थिक हितों पर उसका क्या असर पड़ेगा? क्या भारत अमेरिका के इस संरक्षणवाद के लिए तैयार है?
अमेरिके की नीतियों का पहला असर तो भारत की आईटी इंडस्ट्री पड़ सकता है। अगर ट्रम्प भारत से जाने वाले आईटी विशेषज्ञों के लिए बाधाएं खड़े करते है तो देश की कई बड़ी आउटसोर्शिग कंपनियों पर इसका उल्टा असर पड़ेगा। इसका सीधा मतलब है हमारे आईटी उद्योग में नौकरी काम होना। इसी तरह संरक्षणवाद के तहत अमेरिका हमारी कृषि सब्सिडी एवं अन्य मुद्दों पर सवाल खड़े कर सकता हैं। अपने उद्योगों को ऑक्सीजन देने के लिए भारत से निर्यात में रोड़े अटका सकता हैं। यानी आर्थिक मोर्चे पर राष्ट्रपति ट्रम्प क्या करेंगे और उसका भारत पर क्या असर पड़ेगा उसे लेकर हम अभी से निश्चिन्त नहीं हो सकते।
ट्रम्प की अभी तक काम करने की शैली आक्रामक, ज़िदभरी और दुसरो की बात न सुनने की हैं। क्या यह शैली उनकी विदेश नीति में भी दिखाई देगी या फिर वक़्त के साथ उसमें बदलाव आएगा ये कहना अभी संभव नहीं है ? मगर भारत को उसकी चिंता करने की ज़रूत है। इसलिए इस वक़्त ट्रम्प के फैसलों पर हमें ज्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं। अच्छा है कि आंतकवाद के खिलाफ फिलहाल उनका रूख कड़ा है। लेकिन व्यापार को लेकर अगर वे अड़ियल हुए तो विश्व व्यापार के लिए यह अच्छा नहीं होगा। इसका सीधा असर हम पर पड़ेगा।
फिलहाल भारत के लिए आवयशक है की वह सावधानी और सतर्कता के साथ ट्रम्प के फैसलों को परखे । हम उनकी तारीफ में अपना संतुलन न खोएं । यदि उनकी नीति या फैसलों से हम पर प्रतिकूल असर पड़ता हैं तो उसपर प्रतिक्रिया में हम में सयम बरतें। जब कोई हाथी मत्त होकर किसी गाँव में घूमता है तो समझदार लोग धैर्य के साथ उसके शांत होने की प्रतीक्षा करतें हैं। ट्रम्प के साथ भी भारत को ऐसा ही करना होगा। न ज्यादा ताली बजाकर उसे अपनी तरफ आकर्षित करेंगे और न हीं अनावश्यक रूप से उसके सामने पडेंगे। अभी जल्दबाज़ी नहीं सतर्कता की ज़रूरत है।
उमेश उपाध्याय,
1/02/2017

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