अमेरिका ने पाकिस्तान को अल्टीमेटम दे दिया है कि या तो वो आतंकवादी गिरोहों के खिलाफ एक्शन ले, नहीं तो फिर नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहे। दक्षिण एशिया के दौरे पर आए अमेरिकी विदेश मंत्री रैक्स टिलरसन ने ये चेतावनी दी है। वे अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत की यात्रा पर आए हुए हैं। पहले टिलरसन अफगानिस्तान पहुंचे उसके बाद बस कुछ घंटो के लिए के पाकिस्तान गए और फिर तीन दिन की यात्रा पर दिल्ली पहुंचे। अफगानिस्तान में पाकिस्तान के लिए उनका लहजा खासा सख्त और धमकी भरा था।
उन्होंने कहा कि अमेरिका और पाकिस्तान का रिश्ता अब कुछ शर्तों के आधार पर ही चलेगा। ये शर्त है कि वह पाकिस्तान की जमीन पर पनाह पाने वाले दहशतगर्दों पर रोक लगाए। पाकिस्तान की धरती पर पहुँचने पर उन्होंने इस्लामाबाद साफ-साफ सलाह दी कि पाकिस्तान 'उसकी जमीन पर सक्रिय आतंकवादी और उग्रवादी गिरोहों के खात्मे के लिए अपनी कोशिशों को और बढ़ाए। इस सीधी चेतावनी के बाद पाकिस्तान को मुश्किलें बेतहाशा बढ़ गई है। अमेरिका मानता है कि अफगानिस्तान में खून-खराबा करने वाले तालिबान और हक्कानी ग्रुप के दहशतगर्दों को पाकिस्तान में पनाह मिली हुई है।
इससे पहले पिछले हफ्ते अमेरिका ने कई अफगानी-पाकिस्तानी इलाकों में ड्रोन हमले किए थे। इसमें कई आतंकवादियों के मारे जाने की खबर है। अमेरिका के कई नीति निर्धारकों का मानना है कि पिछले दिनों जिस अमरिकी-कनाडियन दम्पत्ति को आतंकवादियों की गिरफ्त से छुडाया गया उन्हें पाकिस्तानी इलाकों में ही रखा गया था। ये पांच साल से तालिबान के बंधक बने हुए थे। इनके छूटने पर पहले तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पाकिस्तान की तारीफ की थी लेकिन बाद में अमेरिकी अखबारों में खबरें छपने लगीं कि इस दम्पत्ति को बंधक बनाए रखने में कुछ पाकिस्तानी तत्व भी शामिल थे। विदेश मंत्री टिलरसन के लहजे और अल्टीमेटम को इन खुलासों के नजरिये से भी देखा जा सकता है।
पाकिस्तान का संकट सिर्फ अमेरिकी गुस्से का ही नहीं है। पाकिस्तान एक गंभीर आर्थिक संकट के मुहाने पर भी खड़ा है। उसके पास सिर्फ दो से तीन महीनों के आयात के बराबर की विदेशी मुद्रा ही बची है। जरूरी सामान की किल्लत और बढ़ती महंगाई के कारण पाकिस्तान की जनता त्रस्त है। देश की आर्थिक स्थिति ऐसी है कि उसे अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए कर्ज़ा मांगने विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास जाना पड़ेगा। चीन को छोड़कर दुनिया का कोई भी देश आज उसे कर्जा तक देने को तैयार नहीं है। चीन भी उसे जो मदद देता है उस पर तगड़ा ब्याज लेता है। आज पाकिस्तान के पास अपने पुराने कर्जों की किश्तें चुकाने के पैसे नहीं हैं।
उसे अगर आर्थिक दिवालिएपन से बचना है तो उसे विश्व बैंक या अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास कटोरा लेकर जाना ही होगा। वहां अमेरिका की मदद के बिना कुछ होगा नहीं। इसीलिए पाकिस्तान की फौज और वहां की सरकार ने अमेरिका के धमकी भरे अंदाज को गर्दन झुकाकर स्वीकार कर लिया है। इसी कारण उसकी सीमा में हुए ड्रोन हमलों पर भी उसने पहले जैसी प्रतिक्रिया नहीं की। सचमुच में पाकिस्तान इस बार बुरा फंसा है। आतंक को विदेश नीति के औजार के रूप में इस्तेमाल करने की नीति अब उसके गले में फंसी ऐसी हड्डी की तरह हो गई है जिससे उसके प्राण संकट में फंस गए हैं।
उम्मीद है कि पाकिस्तान इस अल्टीमेटम को गंभीरता से लेकर जिहादी आतंकियों के पूरे सफाए में लगेगा। अगर वह हमेशा की तरह अच्छे आतंकवाद और बुरे आतंकवाद के पचड़े में ही पड़ा रहा तो फिर ऊपर वाला ही उसका मालिक है। दुनिया का एक बड़ा वर्ग उसे एक असफल राष्ट्र मान चुका है। शायद पाकिस्तान के पास अब आखिरी मौका है, नहीं तो उसकी खैर नहीं।
उमेश उपाध्याय
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