Wednesday, October 11, 2017

जीएसटी और नोटबंदी के इंजेक्शन से अर्थव्यवस्था को चढ़ा बुखार

' वायर' नाम की एक न्यूज़ वेबसाइट ने  भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह की कंपनी को लेकर जो लेख छापा है उसमें आरोप है की उनकी कंपनी का टर्नओवर भाजपा के सत्ता में आने के बाद अचानक बहुत बढ़ गया गुजरात के चुनाव से कुछ ही दिन पहले यह लेख ' वायर ' में आना कोई हैरानी की बात नहीं हैं  लेख रोहिणी सिंह ने लिखा है जो उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा के सफाये  घोषणा कर चुकी हैं भाजपा  ने कहा है कि जय शाह ' वायर ' के खिलाफ १०० करोड़ रुपये की मानहानि का दावा करेंगे' वायर ' वामपंथी झुकाव वाला न्यूज़ पोर्टल है स्वाभाविक ही है की कांग्रेस, आम आदमी पार्टी  और बाकी विपक्षी दलों ने ने इस मुद्दे को तुरंत उठा लिया हैसोशल मीडिया के 'वीर' भी ज़ुबानी तलवारें भांजने लगे हैं

चुनावो से पहले आरोप-प्रत्यारोप लगाना लोकतंत्र की एक सामान्य प्रक्रिया है  मगर सवाल ये है कि जनता इनको कितनी गंभीरता से लेती है जय शाह के खिलाफ लगाए आरोप, उनके पीछे का हेतु और भाजपा के जवाब की पड़ताल कभी बाद में करेंगे परन्तु आज के लेख में बात करते हैं इस समय देश के माहौल की मोदी को प्रधानमंत्री बने तीन साल हुए हैं और 2019  के आम चुनावों में अब दो साल से कम का समय रह गया है नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था में संस्थागत सुधारो के लिए दो बड़े इंजेक्शन पिछले एक साल में लगाए हैं पहला इंजेक्शन था नोट वापसी का और दूसरा है जीएसटी ये दोनों ही अर्थशास्त्रियों सुझाये हुए कोई सामान्य आर्थिक सुधार नहीं हैं बल्कि ऐसे कदम हैं जिससे बरसों से कालेधन के शिकार हमारे अर्थतंत्र में मानो भूचाल जैसा गया है इनकी तुलना बचपन में लगने वाले डीपीटी के टीके से की जा सकती है हम जब बच्चे थे तब इस टीके के लगने पर बहुत ज़ोर का दर्द होता था और फिर अमूमन दो तीन दिनों के लिए बुखार भी आता था अब अगर डीपीटी के दो टीके कालेधन और टैक्सचोरी ग्रसित कमज़ोर शरीर में लगेंगे तो कम्पन तो होगा ही ये दोनों सुधार उसी टीके की तरह हैं देश की अर्थव्यवस्था  उसी तरह के अस्थायी बुखार की स्थिति से गुजर रही है

मनोचिकित्सक एक बात लगातार कहते हैं कि मनुष्य में सबसे कठिन कार्य होता है आदत बदलने का आदत बदलने में बहुत तकलीफ होती है नोटबंदी ने आम लोगों की खर्च करने के तौर तरीको में मूलभूत बदलाव करने की कोशिश थी तो जी एस टी व्यापार करने का तरीका बदलने की कोशिश कर रहा है आप इस पर बहस कर सकते हैं कि लोगों के इन तौर तरीकों में बदलाव की जरुरत है भी की नहीं मगर इसमें कोई शक नहीं की अगर भारत को तरक्की के नए दौर में प्रवेश करना है तो उसे कुछ अस्थायी झटकों के लिए तैयार रहना होगा विकास की लम्बी छलांग और दो नंबर के व्यापार को रोकने का दर्द देश को कभी कभी तो सहना ही होगा

दर्द कभी भी लोकप्रिय नहीं होता किसी किसी नेता को यह करना ही था नरेंद्र मोदी ने यह जोखिम 2016-17  में उठाया यानि पिछले आम चुनाव और अगले आम चुनाव के बीचो बीच  ये सही है कि भाजपा ने बिहार और दिल्ली को छोड़कर तक़रीबन सभी बड़े राज्यों के चुनावो में जीत दर्ज की है मगर आज मीडिया और सोशल मीडिया पर सरसरी निगाह डाली जाये तो सरकार को लेकर वो उत्साह नजर  नहीं आता, जो कुछ समय पहले था आज लोग टकटकी लगा कर देख रहे हैं कि आगे क्या होगा ? पहले हर बात पर ताली बजाने वालों की तालियों का शोर पहले से कहीं कम है

जनमानस की स्थिति टीके के डबल डोज़ के बाद के बुखार और बदन दर्द जैसी है टीके का दर्द तो तुरंत होता है लेकिन फायदा बाद में मिलता है  दरअसल बच्चा तो जानता भी नहीं है की उसे क्या फायदा होने वाला है यह तो डाक्टर जानता है या माँ ही जानती है कि बच्चे की ज़िंदगी, निरोग काया और बेहतर सेहत के लिए ये टीका जरुरी है  बच्चा तो बस माँ पर भरोसा करता है मोदी की सरकार के लिए ये असली चुनौती है इस समय उस पर राजनितिक हमले तेज़ होंगे  मीडिया भी खूब नुक्ताचीनी करेगा अब यह सरकार पर निर्भर करता है की वह इस समय एक सख्त बाप की तरह व्यवहार करेगी या फिर  वात्सल्यपूर्ण माँ की तरह?

प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और छवि आज भी जनमानस में संदेह के परे है परन्तु अफसरशाही और बाकी सरकारी अमला क्या उतना ही संवेदनशील है? क्या ये कहा जा सकता है कि मंत्री और पार्टी के पदाधिकारी सत्ता के मद पूरी तरह बचे हुए हैं ? इस बदले माहौल में जनमानस के भरोसे को ये सरकार कैसे संभालती है, उस पर निर्भर करेगा कि इसके अगले दो साल कैसे गुजरेंगे? सही मायने में मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा की ये शुरुआत है लाख टके का सवाल है कि ये सरकार इससे कैसे निपटती है 2019 के चुनाव की रणभेरी बज चुकी है देखना है कि सरकार और पार्टी आत्ममुग्ध रहेगी या फिर संवेदनशीलता और राजनीतिक चातुर्य से इस दौर से निपटेगी?


उमेश उपाध्याय

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