फेसबुक का डेटा अमेरीकी चुनावों में चोरी-छिपे इस्तेमाल करने के बाद डिजिटल दुनिया की एक खौफनाक तस्वीर सामने आई है। कैम्ब्रिज एनालिटिका नाम की कम्पनी ने फेसबुक से अमेरीकी मतदाताओं की जानकारी ली, और उन्हें बिना बताए चुनावों में असर डालने के लिए उसका उपयोग किया। नागरिकों की निजी जानकारी का उनकी इजाज़त के बिना चुनाव में उपयोग करना एक बेहद गंभीर मुद्दा है। आज के डिजिटल युग में लोगों की पूरी की पूरी जिंदगी की कहानी दरअसल फेसबुक और गूगल जैसी बड़ी कंपनियों के कम्प्यूटर में कैद हैं। इस निजी जानकारी का व्यावसायिक दुरुपयोग हो सकता है, इसका अंदेशा तो कई बार रहता था। परन्तु चुनाव में जनादेश को इस तरह से प्रभावित किया जा सकता है, ऐसा किसी ने इस तरह से सोचा नहीं था।
अगर आप देखे तो #गूगल और #फेसबुक जैसे प्लेटफार्म का इस्तेमाल करने वाले लोगों की तकरीबन हर बात इन कंपनियों को मालूम है। आप सोचिए कि आप मेल इस्तेमाल करते है; गूगलमैप/जीपीएस इस्तेमाल करते हैं; आप गूगल पर सर्च करते हैं; फेसबुक पर अपनी खुशी; अपने गम; अपनी तकलीफ़ें ; अपनी पसन्द और नापसंद सब कुछ दर्ज़ करते हैं। यानि की आपकी खानपान, आपकी आदते, आपका घूमना-फिरना, आपके मन के भाव - ये सब बिग डेटा के रूप में इन कंपनियों के सर्वर में जमा है। यहां तक आप कुछ टाईप करके डिलीट करते हैं - चाहे अपने फोन पर या कम्प्यूटर पर, वह भी इन मशीनों को पता है। यानि ऐसा कुछ भी नहीं हैं, जो इनसे छुपा हुआ हैं। आपके मन के अन्दर तक के भाव, जो शायद आपके अलावा आपके बहुत करीबी तक नहीं जानते, इन मशीनों के पास हैं।
इस दुनिया में कुछ भी मुफ्त नहीं होता। आप और हम सोचते हैं कि हमें तो सबकुछ मुफ्त मिल रहा हैं। मेल मुफ्त, स्टोरेज मुफ्त, फेसबुक मुफ्त, गूगल मुफ्त? पर भला दुनिया में कुछ भी कही फ्री मिलता है क्या? असल में हुआ तो ये है कि मुफ्त के नाम पर इन कंपनियों के पास शायद हमने अपने आप को ही गिरवी रख दिया हैं। अभी तक हमें ये तो पता था कि हमारा डेटा, मेल और फोन नम्बर आदि ये कंपनियां बेच देती हैं। इस डेटा के खरीददार है - ट्रेवल
कंपनियां, रेस्टोरेन्ट, फैशन का सामान बनाने वाली कंपनियां, परिधान बनाने वाली कंपनियां , दवा निर्माता आदि। ये सब हमारा डेटा खरीदकर हमारे खरीदने के निर्णयों को प्रभावित करने की कोशिश करते रहे हैं।
परन्तु ये डेटा हमारे और आपके राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करने के लिए इतने सुनियोजित तरीके से इस्तेमाल होगा, अमेरिकी चुनाव इसका पहला बड़ा उदाहरण है। कैम्ब्रीज एनालिटिका नाम की कम्पनी ने अमेरीकी राष्ट्रपति के चुनावों के दौरान मतदाताओं की आदतों के अनुसार उनके वोट को प्रभावित करने के लिए फेसबुक के डेटा का उपयोग किया। अमेरीका में कोई 24 करोड़ फेसबुक ग्राहक हैं। अब सोचिये कि किस तरह से हर ग्राहक की राजनीतिक रूचि के अनुसार (उसकी पसंदगी-नापसंदगी के आधार पर, जो कि फेसबुक को पता था) कैम्ब्रीज एनालिटिका ने मतदाताओं के वोट को प्रभावित करने का प्रयास किया। ये वाकई बेहद खतरनाक हैं।
कैम्ब्रीज एनालिटिका का भारत में भी दखल है। बताया जा रहा हैं कि 2019 के चुनावों के लिए कांग्रेस ने इसकी सेवाओं का उपयोग करना तय किया हैं। एक खबर ये भी चल रही हैं कि देश में सरकार के खिलाफ माहौल बनाएं के लिए 68 पत्रकारों, नौकरशाहों और बुद्धिजीवीयों को ये कंपनी 2 से 5 लाख महीने दे रही है। इसके लिए कई सौ करोड़ रूपये का ठेका दिये जाने की अपुष्ट खबर भी हवा में हैं। कैम्ब्रीज एनालिटिका के पूर्व कर्मचारी क्रिस्टोफर विली ने ब्रिटेन की एक संसदीय समिति के सामने पेश होकर बताया कि इस कम्पनी ने भारत में कांग्रेस पार्टी के लिए काम किया है और इस बारे में उनके पास दस्तावेजी सुबूत भी हैं। ब्रितानी संसद में क्रिस्टोफर विली की ये गवाही अहम् है क्योंकि इससे ये पक्का हो जाता है कि ये विवादास्पद कंपनी भारत में मौजूद है और कांग्रेस पार्टी से उसके रिश्ते है।
फेसबुक ने अपनी गलती मानी है कहा हैं कि उसके सिस्टम को वो बेहतर बनाएगी ताकि उनका डेटा इस तरह से किसी कम्पनी को अनधिकृत तौर पर न मिले। मगर क्या इतना भर कहने से काम चल जाएगा? व्हाट्सएप पर चल रहे एक विडियो के अनुसार जब सिंगापुर की एक संसदीय समिति ने फेसबुक से ये सब जानकारी चाही तो तो कंपनी के अधिकारियों ने बड़ी घृष्टता के साथ सूचना देने से मना कर दिया। एक बड़ा सवाल यह भी हैं कि क्या डिजिटल दौर की ये कंपनियां सार्वभौम देशों से भी बड़ी हो गयी हैं? क्या दुनिया छोटी होने का मतलब यह हो गया है कि राष्ट्रीयता सम्प्रभुता को इन कम्पनियों की ताकत ने बौना कर दिया हैं।
जब अमेरिका और सिंगापुर जैसी समृद्ध, शिक्षित और परिपक्व लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को ये कंपनिया ठेंगा दिखा सकती हैं, तो फिर भारत जैसे देशों का क्या होगा? भारत में अब फेसबुक के 24 करोड़
10 लाख से ज्यादा ग्राहक है। ये दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। #जियो के आने के बाद भारत, मोबाईल डेटा के उपयोग में नंबर एक देश हो गया है। परन्तु इससे हमारे खतरे भी हजार गुना बढ़ गये हैं। हमारे यहां निर्धनता, अशिक्षा, पिछड़ापन, मजहबी उन्माद के दुरूपयोग की आशंका और अन्य राष्ट्र विभाजक शक्तियों की सक्रियता देखते हुए, डेटा के गलत इस्तेमाल का डर और भी बढ़ गया है। सरकार, समाज, भारतीय कंपनियों, मीडिया तथा देश के सभी जिम्मेदार संस्थानों को तुरन्त एक राय बनाकर काम करने की जरूरत है, ताकि डिजिटिल दुनिया की इन बड़ी कम्पनियों के पास उपलब्ध डेटा का बेजा इस्तेमाल न हो पाए, नहीं तो हमारा लोकतंत्र ही खतरे में पड़ जाएगा।
उमेश उपाध्याय
28
मार्च 2018
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