जार्ज वर्नाड शॉ ने आज से कोई सौ साल कहा था कि राजनीति धूर्त और दुष्ट लोगों के लिए बनी है। भारत के मुख्य न्यायधीश के महाभियोग की याचिका को देखकर लगता है मानो बर्नाड शॉ इन्हें देखकर ही ऐसा लिखा था। ये अलग बात है कि उपराष्ट्रपति ने ये याचिका खारिज कर दी है। पर बात याचिका के मंज़ूर होने या नामंज़ूर होने की नहीं है। असल बात है इसके पीछे की मंशा और नीयत की।
2019 के आम चुनाव जीतना हर पार्टी का मकसद है। इसें कोई बुरी बात भी नहीं। परंतु अगर दूसरी पार्टी को हराने के लिए आप देश की स्थापित संस्थाओं, परम्पराओं और उनमें जनता की आस्था को तोडऩे पर इस कदर आमदा नहीं हो सकते। ऐसी कल्पना ज्यादातर लोगों ने नहीं की थी। कोई भी लोकतंत्र जन आस्था पर चलता है। भारत के मुख्य न्यायधीश भारत की पूरी न्यायपालिका का प्रतिनिधित्व करते हैं। अपने देश की समूची लोकतांत्रिक व्यवस्था आमजन की न्यायपालिका में अटूट आस्था पर आधारित है। इस भरोसे पर आघात भारत के पूरे प्रजातंत्र पर प्रहार है।
कांग्रेस और अन्य पार्टीयों ने यही किया है। मोटे-मोटे तौर पर कांग्रेस का आरोप है कि भारत के मुख्य न्यायधीश उच्चत्तम न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच कामकाज का बंटवारा ठीक से नहीं करते।सोचिए, क्या यह इतना बड़ा आरोप है जिसके लिए उनपर
महाभियोग चलाया जाए? कांग्रेस के नेता क्या नहीं जानते कि न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा छह महीनें में रिटायर होने वाले हैं? फिर ऐसी क्या आफत आ पड़ी है कि उन्हें सेवनिवृत्ति से पहले अपमानित किया जाए? क्या इससे पूरी न्यायपालिका पर असर नहीं होगा? क्या कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट से लोगों का भरोसा उठाना चाहती है?
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा को कांग्रेस के शासन में 2009 में ही मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का स्थायी जज बनाया गया था। अक्टूबर 2011
में जब वे सुप्रीम कोर्ट के जज बनें वो भी कांग्रेस की ही सरकार थी। उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले दिये हैं। इनमें मुम्बई धमाकों के अपराधी याकूब मेनन की फांसी को बरकरार रखने का फैसला शामिल है। इस मामले के बाद जस्टिस मिश्रा को हत्या की धमकी भी मिली थी। इसी तरह निर्भया बलात्कार कांड में चार दोषियों की सजाए मौत को बरकरार रखने वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के अध्यक्ष भी वही थे।
आज अचानक कांगे्रस को उन्हें हटाने की जल्दी क्यों है? सोशल मीडिया में खबर है कि कोग्रेस नहीं चाहती की रामजन्मभूमि मामले की सुनवाई उच्चत्तम न्यायालय जल्दी से पूरी करें। क्या पार्टी नहीं चाहती की बाबरीमस्जिद- रामजन्मभूमि विवाद सुलझे? न्यायमूर्ति मिश्रा इस मामले की सुनवाई कर रही पीठ के अध्यक्ष है। क्या कांग्रेस आज ये प्रश्न उठाकर सुप्रीम कोर्ट की पूरी प्रक्रिया का राजनीतिकरण नहीं कर रही है?
सवाल कई सारे हैं जो कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों की इस हड़बड़ी को देखकर पैदा होते हैं। कुछ भी हो, ऐसा करके उसने देश में आशंका, भय और अविश्वास का माहौल पैदा करने की फूहड़ कोशिश की है। यह न तो देश के लिए अच्छा है और न ही देश की सबसे बड़ी पुरानी पार्टी के लिए।
महाभियोग का प्रस्ताव देनें वालों को मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी, ‘पंच परमेश्वर’ पढऩे की आवश्यकता है। ये कहानी कहती है कि इस देश का मानस पंचों में परमेश्वर का वास देखता है। परमेश्वर की मूर्ति ध्वस्त करने की कोशिश भारत का आमजन कभी पसंद नहीं करेगा। नई दिल्ली के लुटियंस जोन में रहने वालो चन्द वकील और नेता इस बात को शायद समझ नहीं पा रहें। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भारत के सर्वोच पंच है। उनपर उछाली गई कीचड़ सिर्फ कीचड़ उछालने वालों का ही चेहरा काला करेगी।
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