जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कश्मीर की समस्या सिर्फ रोजगार और विकास से जुड़ी हुई नहीं है। कल सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में डॉ. मोहम्मद रफी बट की मौत के बाद उमर अब्दुल्ला ने ये बात कही। मो. रफी बट कश्मीर यूनिर्वसिटी में समाज विज्ञान का असिस्टेंट प्रोफेसर था। उसने यूजीसी 'नेट' का इम्तिहान भी पास किया था। पर पिछले सप्ताह ही वह घर से गायब हो गया। समाज विज्ञान में पी. एच. डी. करने वाला मो. रफी बट हिज्जबुल मुजाहिदीन में शामिल हुआ और सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया।
अगर सवाल सिर्फ पिछड़ेपन और गरीबी का होता तो फिर उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। उसके समर्थक कहेंगे कि कश्मीर की कथित 'आजादी' के लिए उसने हथियार उठाए । पर यह तर्क भी बेकार है क्योंकि अगर ऐसा ही था तो फिर कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम क्यों हुआ? क्यों उनकी बहन-बेटियों की इज़्ज़त आबरू से खेला गया? क्यों मस्जिदों से आवाज लगाकर चुन-चुन कर पंडितों को मारा गया? असल में उत्तर सब जानते हैं मगर सेकुलरवाद का मुलम्मा सबको सच कहने से रोकता है। #कश्मीर की कथित अजादी तो एक बहाना है। डॉ. मोहम्मद रफी बट जैसे नौजवानों को तो कश्मीर में 'निजामे मुस्तफा' चाहिए।
इसी कथित #जिहाद के लिए ये नौजवान बंदूक उठाकर कत्लो गारत के खेल में बस प्यादे बनकर रह गए हैं। यहां ये स्पष्ट कर देना जरूरी है कि एक नौजवान की ऐसी मौत उचित नहीं है। कोई भी भारतीय इस तरह मारा जाए उसे सही कहना ठीक नहीं होगा। परंतु जिहाद के नाम पर नौजवानों के दिमाग में जो अनाप-शनाप विचारों का भूसा भर दिया गया है उसने उन्हें एक ऐसे दुष्चक्र में फंसा दिया है जंहा अंधेरे के अलावा और कुछ नहीं है।
याद कीजिए, 9/11 में न्यूयार्क में वल्र्ड ट्रेड टॉवर पर हमला करने वाले कोई गरीब मुसलमान नहीं थे। वे तो मतान्ध जिहादी थे जो उनकी भाषा में ''शैतान" को मारने निकले थे। इस मज़हबी कट्टरपन के जाल से यूरोप कराह रहा है। पाकिस्तान, मध्यपूर्व और अफगानिस्तान को इसने तबाह और बर्बाद कर दिया है।कल ही #पाकिस्तान के गृहमंत्री अहसान इकबाल पर एक जनसभा में हमला किया गया। गोली उनके कंधे में लगी। हमलावर इसी मज़हबी पागलपन और उन्माद का शिकार था। हैरानी तो तब होती है जब इस कट्टरता और जिहादी मानसिकता को पाकिस्तान, कश्मीर सहित पूरी दुनिया में हवा देता है। जो आग जनरल जियाउल हक ने कश्मीर को #भारत से हड़पने और अफगानिस्तान से सोवियत संघ को हटाने के लिए लगाई गयी थी वह आज पूरी दुनिया को जला रही है।
इसलिए #कश्मीर में एक युवा प्रोफेसर की मौत पर उमर अब्दुल्ला की टिप्पणी बिल्कुल सटीक है। #इस्लामी कट्टरपन और मजहबी उन्माद का जहर सिर्फ कश्मीर के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लिए एक नासूर बन गया है। सुरक्षा बल तो अपना काम कर ही रहे हैं, पर कश्मीर के लोगों और इस्लामी नेतृत्व को इस समस्या पर गंभीर विचार करने की जरूरत है। क्या इसी तरह वे नौजवानों को इस अंधी गली में भेजते रहेंगे या फिर ठंडे दिमाग से सोचेंगे? कश्मीर को इस #जिहादी उन्माद से बाहर लाने में ही सबकी भलाई है। खुद अपने द्वारा ही लगाईं इस्लामी कट्टरपन की जो आग आज पाकिस्तान को जला रही है उससे कश्मीर को बचाने की ज़िम्मेदारी सरकार से ज़्यादा कश्मीरी अवाम और नेतृत्व की है।
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