Wednesday, December 5, 2018

मसखरे सिद्धू व दिलफेंक इमरान की जोड़ी तथा भारत पाक संबंध




भारत पाक संबंधों की अब जैसी गत कभी नहीं बनीआज तो आलम ये है कि अपने मसखरेपन के लिए प्रसिद्ध नवजोत सिंह सिद्धू तथा जवानी के दिनों से दिलफेंक होने का तमगा हासिल कर चुके इमरान खान भारत-पाक संबंधों में नयी दिशा तलाश रहे हैं ये भी एक करिश्में से कम नहीं है कि सिद्धू पंजाब प्रान्त में एक मंत्री पद पर बैठे हैं और इमरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री है यूं तो दोनों देशों के संबंधों को ठीक करने की कोशिश करने का अधिकार हर किसी को है परंतु जिस तरह की हरकतें और बयानबाजी दोनों कर रहे हैं उससे नहीं लगता कि इमरान-सिद्धू की जोड़ी को गंभीरता से लिया जा सकता है

इमरान खान ने तो अपने व्यक्तिगत ट्विटर एकाउंट से कुछ दिन पहले ही भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर मर्यादाहीन व्यक्तिगत टिप्पणियां की थी उनसे उनकी नासमझी और उनके नज़रिये का हल्फापान साफ नजर आता है उधर सिद्धू का तो पूरा व्यक्तित्व ही ताली बजवाने के लिए कुछ भी कह देने के आसपास घूमता हैं जिस सिद्धू को 'कॉमेडी शो  में भी गंभीरता से नहीं लिया जाता उन्हें देश भारत-पाक संबंधों जैसे संजीदा और जटिल मुद्दे पर क्यों भाव देगा?

असली बात तो ये है कि पाकिस्तान में प्रधानमंत्री को कठपुतली की तरह चलाने वाली पाकिस्तानी फौज गंभीर मुश्किल में है सब जानते हैं कि पाकिस्तान का असल हुकमरान तो वहां का सेनाध्यक्ष ही होता है सरकार वहाँ सेना के इशारे पर ही चलती है पाकिस्तान एक ओर तो आज आर्थिक कंगाली के दरवाजे पर खड़ा है उसके प्रधानमंत्री कटोरा लेकर  कभी चीन, कभी सऊदी अरब तो कभी संयुक्त अरब अमीरात जा रहे हैं दूसरी ओर बलोचिस्तान, पख्तूनिस्तान और सिंध में फौज के खिलाफ खुलेआम नारे लग रहे हैं भारत की सख्ती के कारण कश्मीर में  पाकिस्तान की दाल सब कुछ करने के बाद भी गल नहीं रही तो अब उसने पंजाब में फिर से अलगाववाद को हवा देनी शुरू की है आतंकवाद को पैदा देने वाली पाकिस्तानी फौज की हालत खराब है सो उसने भारत में नयी खुराफात की साज़िश रचनी शुरू कर दी है वैसे भारत में दखलंदाज़ी करने की पाकिस्तानी चाल कोई नयी बात नहीं है हमें परेशान करने की पाकिस्तान की हरकतें उसके जन्म से साथ ही शरू हो गयी थी

1948 में कश्मीर पर हमले से लेकर 2016  में पठानकोट वायुसेना अड्डे पर आतंकवादी हमले तक पाकिस्तान की तमाम हरकतें दगाबाजी और झांसे से भरी रही हैं उसकी इन चालबाजियों का सही उत्तर दो प्रधानमंत्रीयों ने ठीक तरीके से दिया है 1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने और पिछले चार साल में श्री नरेन्द्र मोदी ने इंदिरा गाँधी ने पाकिस्तान को दो टुकड़े कर दिए मोदी ने यूँ तो पाकिस्तान से संबंधों की शुरूआत अपने शपथ ग्रहण समारोह में तब के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाजशरीफ को बुलाकर और फिर शरीफ की पोती की शादी में अचानक उनके घर पंहुचकर की थी पर बदले में उन्हें क्या मिला? उड़ी और पठानकोट के हमले अच्छा हुआ मोदी को ये जल्दी समझ गया कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते इसी नीति के तहत  सीमा पर ईंट का जबाब पत्थर से दिया गया नियंत्रण रेखा पार कर सर्जिकल स्ट्राइक किये गये हालत ये है कि पाकिस्तान अब बातचीत और दोस्ती के लिए लगभग गिड़गिड़ा रहा है पहले नवाज शरीफ और अब इमरान खान बातचीत का न्योता दे रहे हैंअब तो पाकिस्तानी सेना भी बातचीत की पेशकश के लिए  हाँ में हाँ मिला रही है 

भारत सरकार ने पाकिस्तान का तथाकथित दोस्ती का हाथ झिड़क कर अभी तक अच्छा ही किया है दोस्ती का हाथ पाकिस्तान किसी अच्छे ख्याल से नहीं बल्कि मजबूरी में बढ़ा रहा है चारों तरफ से आर्थिक और सामरिक तकलीफों से घिरे पाकिस्तान के पास और कोई चारा भी नहीं है इसका मतलब साफ है कि पाकिस्तान पर चौतरफा दबाब की भारतीय नीति के नतीजे सामने आने लगे हैं पाकिस्तान की हालत अब ये हो गयी है कि अब उसे पंजाब की कांग्रेस सरकार के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू में उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है इमरान खान के जरिये पाकिस्तान की फौज अब सिद्धू को अपना मोहरा बनाने की कोशिश में है

अपने मसखेरपन और रटे रटाये बयानों और घिसीपिटी शायरी के लिए विख्यात के लिए सिद्धू मीडिया में आने के लिए के लिए कुछ भी कह सकते हैं, ये सब जानते हैं मगर इसके लिए वे जिस तरह पाकिस्तान के हाथ का खिलौना बनने के लिए भी आतुर हो गये हैं, ये जरूर हैरत की बात है बहरहाल सिद्धू-इमरान की इस जोडी के कारण दोनों  संबंध ठीक तो क्या होंगे, वे  उलटी दिशा में ही जाएँ तो हैरानी नहीं होनी चाहिए


इस मसखरी के बीच भारत को और चौकन्ना रहने की जरूरत है भारत को दरअसल अब  पाकिस्तान की दोस्ती की जरूरत है ही नहीं दुनिया में आतंकवाद की नर्सरी बन चुके इस पिछड़े देश से जितना दूर ही रहा जाए उतना ही अच्छा है हमें पाकिस्तान को किनारे   लगाने की मौजूदा नीति पर सख्ती और मज़बूती से चलते रहने की जरूरत है जबतक पाकिस्तान आतंकवाद का  सहारा नहीं छोड़ता उससे बातचीत तो क्या रस्मी तौर पर  मिलना जुलना तक नहीं होना चाहिए भारत-पाक दोस्ती के भावुक नारे के फालतू के  चक्कर में पडऩे के बजाय हमें इस पर कड़ी निगाह रखनी चाहिए कि इस गैर-संजीदा इमरान-सिद्धू  जोड़ी की आड़ में कुटिल पाक फौज कोई बड़ा भारत विरोधी खेल खेल जाए



उमेश उपाध्याय

4/12/18

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