कहते हैं कि चन्दन की लकड़ी को भी यदि देर तक आपस में रगड़ा जाए तो उससे आग पैदा हो जाती है। केरल के शबरीमला में भगवान अयप्पा के भक्तों के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। अचरज नहीं होगा कि वे सरकार के अत्याचार से परेशान हो कानून को ही अपने हाथ में लेने लगें। पहले तो सुप्रीम कोर्ट ने एक निहायत ही संवेदनहीन और हिंदू आस्था से खिलवाड़ करने वाला फैसला दिया। रही सही कसर केरल की कम्यूनिस्ट पार्टी की सरकार ने पूरी कर दी है। जिस तरह के अत्याचार राज्य की सरकार शबरीमला जाने वाले भक्तों पर कर रही है वैसे तो शायद निर्दयी और विधर्मी विदेशी आक्रमणकारियों ने भी कमी हिंदू श्रद्धालुओं पर नहीं किये होगें।
जिस तरह उत्तर भारत में माता वैष्णों देवी के दर्शन को जाने वाले भक्त चढ़ाई चढऩे के बाद मंदिर के आसपास विश्राम करते हैं। उसी तरह शबरीमला के मंदिर परिसर में रूकने के लिए जगह बनी हुई है। इस स्थान को सन्निधानम कहा जाता है। सन्निधानम अर्थात भगवान् अयप्पा का सानिध्य। शबरीमला में भगवान अयप्पा का मंदिर दुर्गम पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। घने जंगल से गुजर कर चढ़ाई करने के बाद रात्रि अयप्पा के सानिध्य में बिताना शबरीमला की तीर्थयात्रा का अनिवार्य हिस्सा है। भगवान के सानिध्य में मंदिर में सुबह की अर्चना करने के बाद ही तीर्थयात्री लौटते रहे हैं। यह परंपरा शताब्दियों से चली आ रही है। परंतु राज्य की कम्युनिस्ट सरकार की हिम्मत तो देखिए कि उसने अब सन्निधानम में भक्तों के रूकने पर ही रोक लगा दी है। तीर्थ यात्रियों को वहां अब ''अयप्पा शरणम'' का कीर्तन करने की इजाजत नहीं हैं। कम्युनिस्ट सरकार की ज़्यादती की हद तो देखिये कि भक्तगण वहां रूक न पाएं इसलिए सन्निधानम में लगातार पानी डालकर वहां कीचड़ पैदा कर दी गयी है। ऐसी स्थिति शायद ही किसी विधर्मी और क्रूरतम आततायी ने भी पहले किसी अन्य हिंदू मंदिर में उत्पन्न की थी।
जिस तरह उत्तर भारत में माता वैष्णों देवी के दर्शन को जाने वाले भक्त चढ़ाई चढऩे के बाद मंदिर के आसपास विश्राम करते हैं। उसी तरह शबरीमला के मंदिर परिसर में रूकने के लिए जगह बनी हुई है। इस स्थान को सन्निधानम कहा जाता है। सन्निधानम अर्थात भगवान् अयप्पा का सानिध्य। शबरीमला में भगवान अयप्पा का मंदिर दुर्गम पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। घने जंगल से गुजर कर चढ़ाई करने के बाद रात्रि अयप्पा के सानिध्य में बिताना शबरीमला की तीर्थयात्रा का अनिवार्य हिस्सा है। भगवान के सानिध्य में मंदिर में सुबह की अर्चना करने के बाद ही तीर्थयात्री लौटते रहे हैं। यह परंपरा शताब्दियों से चली आ रही है। परंतु राज्य की कम्युनिस्ट सरकार की हिम्मत तो देखिए कि उसने अब सन्निधानम में भक्तों के रूकने पर ही रोक लगा दी है। तीर्थ यात्रियों को वहां अब ''अयप्पा शरणम'' का कीर्तन करने की इजाजत नहीं हैं। कम्युनिस्ट सरकार की ज़्यादती की हद तो देखिये कि भक्तगण वहां रूक न पाएं इसलिए सन्निधानम में लगातार पानी डालकर वहां कीचड़ पैदा कर दी गयी है। ऐसी स्थिति शायद ही किसी विधर्मी और क्रूरतम आततायी ने भी पहले किसी अन्य हिंदू मंदिर में उत्पन्न की थी।
हैरानी की बात तो ये है कि इसी राज्य सरकार को अयप्पा मंदिर में भक्तों के चढ़ाए पैसे राज्य के खजाने में भरने से कोई गुरेज नहीं है। पिछले साल ही राज्य सरकार को मंदिर से 250 करोड़ की आमदनी हुई थी। जबकि मंदिर की सुविधाओं पर उसने सिर्फ 38 करोड़ रुपये खर्च किये थे। यानि पिनराई विजयन की कम्युनिस्ट सरकार को मंदिर से मिलने वाली आमदनी तो सेकुलर दिखाई देती है मगर वहां आने वाले भक्तों में उसे साम्प्रदायिकता नजर आती है। नहीं तो राज्य की पुलिस अयप्पा के दर्शन करने आए 80 श्रद्धालुओं को साम्प्रदायिक कहकर क्यों गिरफ्तार करती?
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को यह याद दिलाने की जरूरत है कि पिछले साल मुनार में जब एक क्रास हटाया गया था इन्होंने क्रास हटाने वालों को ईसाइयों की आस्था के खिलाफ बताया था। इस कृत्य को मुख्यमंत्री ने धार्मिक भावनाओं को भड़काने का काम बताया था। मुख्यमंत्री से अब ज़रूर पूछा जाना चाहिए कि क्या शबरीमला जाने वालों की सारी सुविधाएं छीनकर और सन्निधानम में पानी भर मर वे अयप्पा के भक्तों की आस्था के साथ खिलवाड़ नहीं कर रहे? या फिर उनका शासन नागरिक का मजहब देखकर उसे सेकुलर या सांप्रदायिक होने का प्रमाणपत्र देता है? क्या अयप्पा के भक्तों की आस्था का उनके लिए कोई मोल नहीं है?
इस बात की ताकीद केरल के उच्च न्यायालय ने भी की है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के नाम पर केरल की पुलिस श्रद्धालुओं के प्रति ज्यादतीपूर्ण बर्ताव कर रही हैं। बहरहाल सुप्रीमकोर्ट के आदेश की आड़ में राज्य के मुख्यमंत्री भक्तों पर जो ज्यादतियां कर रहे है उनका हिसाब तो केरल के लोग ले ही लेंगे। जिस हिम्मत का परिचय अभी तक आयप्पा के भक्तों ने दिया है वह क़ाबिले तारीफ़ है। उम्मीद है कि राज्य सरकार लोगों के धैर्य की और परीक्षा न लेकर संयम का परिचय देगी ।
उधर सुप्रीम कोर्ट ने खुद अपने फैसले पर जनवरी में दोबारा सुनवाई करने का आदेश दिया है। लेकिन ये बात भी खासी दिलचस्प है कि एक तरफ तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपने फैसले पर दोबारा विचार करने की अर्ज़ियों की वह जनवरी में सुनवाई करेगा। मगर हैरानी की बात है कि इस बीच कोर्ट ने अपने आदेश पर स्टे देने से इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की ये बात अजीबो-गरीब है। अगर आप फैसले पर पुनर्विचार करने को तैयार है तो फिर तीन महीने के लिए अपने पुराने आदेश को मुल्तवी करने में क्या कोई आफत आने वाली थी?
ऐसा लगता है है कि राज्य सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हर कोई हिन्दु श्रद्धालुओं को ही सेकुलरवाद का पाठ पढ़ाना चाहते हैं। जबकि ये एक निर्विवाद सत्य है कि इस देश में सेकुलरवाद का होना और उसका जिंदा रहना बहुसंख्य हिन्दुओं की आस्था, मान्यता, विश्वास और आचरण पर ही आधारित है। इसलिए अगर आप बार-बार हिन्दुओं की आस्था और विश्वास पर ही चोट पहुंचाने का प्रयास करेंगे तो वह भी प्रतिक्रियावादी हो सकते है। ये किसी के लिए भी अच्छा नहीं होगा। सरकारों और अन्य संस्थाओं को ये सोचना चाहिए कि वो हिन्दू नाम की चन्दन की लकड़ी को घिसकर उससे शीतल चन्दन प्राप्त करना चाहते हैं या फिर उसे रगड़कर उससे अग्नि की ज्वाला उत्पन्न करना चाहते हैं? हम सब जानते हैं कि कि ये आग और उससे भड़के शोले किसीके हित में नहीं हैं। अच्छा होगा कि ऐसा करने से बचा जाए।
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उमेश उपाध्याय
21/11/2018
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