सच्चे भारत को देखना हो तो इस बार कुम्भ ज़रूर जाइये। अनुपम
आध्यात्मिक अनुभव लेना हो या बिल्कुल ठेठ लौकसंस्कृति का आनंद- आपको सबकुछ यहाँ
अनायास ही मिलेगा। भारत की अमूल्य विरासत और सांस्कृतिक थाती के सजीव चित्रण का
मेला है कुंभ।
भारत और दुनिया की सोच में बुनियादी फ़र्क़ क्या है? ये भी इस बार कुंभ में जाकर गहराई से महसूस किया। इस देश का आम आदमी
आध्यात्मिकता को जीता है। यह बात सिर्फ़ कहने भर की नहीं है। इस सत्य से सीधा
साक्षात्कार होता है कुम्भ में। यह
विचार और पुख्ता होता है सच्चे संतो से मिलने के बाद। इसे बहुत ही सरल तरीके
से इस बार कुम्भ में हमें समझाया जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी
अवधेशानंद ने। हमें उनसे अलग से बातचीत का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि विश्व में
इस वक़्त पश्चिमी विचार और सभ्यता का
बोलबाला है। पश्चिम की हर बात को आज अंतिम मान लिया गया है। उन्होंने कहा कि
पश्चिम हर चीज़ में बाज़ार और हर उत्सव में व्यापार खोजता है। इसलिये उनके सिस्टम
में हर उत्सव, पर्व, त्योहार, आयोजन और अवसर सिर्फ़ उत्पाद बेचने का माध्यम बन कर रह जाता है। इस
सोच में मनुष्य या तो उत्पादक है या फिर उपभोक्ता। उसके लिए तो अक्सर मानव देह भी
एक उत्पाद बन कर रह जाती है। इसीलिए बड़े-बड़े अभिनेता व खिलाड़ी आदि ब्रांड
कहलाते हैं।
कुंभ एक मिनी इंडिया यानि छोटा हिंदुस्तान ही है। अनुमान है कि अबतक 8 से 10 करोड़ लोग गंगा-यमुना-सरस्वती की
त्रिवेणी में डुबकी लगाने प्रयागराज आ चुके हैं। चार मार्च को कब कुम्भ संपन्न
होगा तो अनुमान है कि 12 से 15
करोड़ लोग यहाँ आ चुके होंगे। अगर आप इंग्लैंड, कनाडा
और ओस्ट्रेलिया तीनों विकसित देशों की जनसंख्या को मिला भी दें तो कुम्भ में आने
वालों की संख्या इससे कहीं ज़्यादा होगी। इतने लोग कुम्भ में आने के बावजूद हमें
कहीं भी इलाक़े में उत्पादों के विज्ञापन नहीं दिखाई दिए। सोचने की बात है कि कुछ
सौ लोगों के इकट्ठा होने पर स्टॉल लगाने और स्पॉन्सरशिप लेने को उतावली कम्पनियाँ
कुंभ में नदारद क्यों हैं? क्यों पूरे कुम्भ मेला क्षेत्र में
आपको बाज़ारबाद की बू नहीं आती?
हाँ, हर मंडप और पंडाल से आपको विरासत, आध्यात्मिकता, संस्कार, परम्परा, संस्कृति, धार्मिकता और माटी से जुड़ी कला की
दिव्य गंध आपको भरपूर मिलेगी। शायद भारत का जन मानस अपनी आध्यात्मिकता में कोई
मिलावट नहीं चाहता। उसके लिये संसार एक बाज़ार नहीं बल्कि एक बड़ा परिवार है।
कुम्भ को देखकर स्वामी अवधेशानंद जी की यह बात बिलकुल सटीक दिखाई देती है कि
पश्चिम जहाँ हर जगह बाजार देखता है वहाँ भारतीय चिंतन परम्परा परिवार को मानव
सभ्यता और उसके विकास की धुरी मानती है।
बाज़ार और उत्पाद की एक आयु होती है। वक़्त के साथ वह ख़त्म हो जाता
है। चूँकि कुम्भ विरासत, परंपरा और आध्यात्मिकता का आयोजन है
इसलिए यह शताब्दियों से यूँ ही अनवरत चला आ रहा है। यह आयोजन समाज करता है इसलिए
यह बाज़ार और राजसत्ता दोनों से परे और आज़ाद है। बाज़ार और राजसत्ता दोनों ही
अस्थायी हैं जबकि समाज मानव जीवन का एक स्थाई तत्व है। परंतु स्थाई होने का मतलब
अपरिवर्तनशील क़तई नहीं है। महत्वपूर्ण बात है कि यह गंगाजल की भाँति चलायमान और
जीवन्त है इसीलिए इसमें लगातार समयानुकूल परिवर्तन का सम्पुट भी लगता रहता है।
यों तो प्रयागराज में गंगा-यमुना-सरस्वती की त्रिवेणी के पुण्य संगम
पर स्नान का अनुभव हमेशा अलौकिक ही रहता है, पर
इस बार कुंभ पर वहाँ की व्यवस्थाओं को देखकर मन अभिभूत हो गया। स्वास्थ्य, क़ानून व्यवस्था और साफ़ सफ़ाई से लेकर स्नान की हर जगह पर
बहन-बेटियों के लिए कपड़े बदलने के लिए अस्थाई स्नानागार तक का इंतज़ाम- ऐसा पहले
सिर्फ़ कल्पना तक ही सीमित था। हमारे तीर्थ तो गंदगी और अव्यवस्था केलिए जाने जाते
थे। इस पृष्ठभूमि में कुम्भ प्रशासन द्वारा छोटी-बड़ी सभी सुविधाओं का ध्यान रखा
जाना स्तुत्य है। हमारी माताजी ने 35 वर्ष तक प्रयाग में। संगम किनारे
कल्पवास किया है। उनके साथ हम बचपन से ही प्रयाग जाते रहें हैं। इसलिए हमने ख़ुद
देखा है कि जब करोड़ों लोग संगम पहुँचते थे तो वहाँ व्यवस्थाओं का क्या हाल होता
था। उस समय प्रशासन सिर्फ़ भीड़ को संभालने को अपना काम समझता था।
इस बार चौड़ी सड़कों,
जगह-जगह शौचालय, दिन में रेत बिठाने के लिये छिड़काव, रहने
की व्यवस्था आदि का इतना व्यवस्थित इंतज़ाम है कि लगा सरकार को तीर्थयात्रियों की
चिंता है। इसके अलावा हर तट पर नहाने के लिये बाड़ और डूबने से बचाने के लिए
एनडीआरएफ सहित अन्य जीवनरक्षक कर्मियों की तैनाती। ये कितना बड़ा काम है ये इस बात
से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मौनी अमावस्या के शाही स्नान के रोज़ एक ही दिन
में 5 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने यहाँ
डुबकी लगाई थी। दुनिया माहिर से माहिर प्रशासकों को इसका इंतज़ाम करने को कहिए, उनके पसीने छूट जाएँगे। पर हर बात पर सिर्फ़ गाली खाने वाले उत्तर
प्रदेश के नौकरशाहों और कर्मचारियों ने ये कर के दिखाया है। उत्तर प्रदेश के
प्रशासनकर्मी इसके लिए साधुवाद के पात्र हैं। राज्य सरकार और शासन की इसके लिए
जितनी प्रशंसा की जाए काम ही होगी। उन्होंने बहुत पुण्य का काम किया है।
इस बार #कुंभ में हमने समय
तो अधिक नहीं बिताया फिर भी थोड़े में ही ख़ूब आनंद लिया। महामंडलेश्वर स्वामी
अवधेशानंद जी का सानिध्य और आशीर्वाद,
दो दिन स्नान का
आनंद, कल्पवासियों के साथ रहना, लेटे हुए हनुमान जी की पूजा और अक्षयवट के दर्शन - और क्या चाहिये। #गंगा #यमुना #सरस्वती की #त्रिवेणी के साथ ही कुम्भ में समाज, संस्कार, विरासत, परम्परा, भक्ति, लोककलाओं और आध्यात्मिकता का अपूर्व #संगम है।
इस अद्भुत संयोग को देखने एक बार #प्रयागराज जाना तो बनता है।
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