ये देश का पहला आम चुनाव है जो बड़ी हद तक डिजिटल चुनाव होगा। इससे पहले किसी भी चुनाव में मतदाता के हाथ में सीधे खुद जानकारी हासिल करने की ताकत नहीं थी। देश में डिजिटल क्रांति के बाद ये पहला आम चुनाव है। जियो के आने बाद देश में डेटा की
सुनामी सी आ गई है। आज तकरीबन 60 करोड़ हिंदुस्तानी इंटरनेट से जुड़े हैं। 2014 के चुनावों के वक्त ये संख्या 25 करोड़ से कम थी। 2014 में फेसबुक पर 10 करोड़ भारतीय थे अब कोई 31 करोड़ हिंदुस्तानी फेसबुक पर हैं। इसी तरह ट्विटर काइस्तेमाल करने वालों की तादाद भी बेतहाशा बढ़ी है। डिजिटल दुनिया से जुड़ने का का मतलब वोटर को सीधे सूचनापंहुचना। इस मायने में ये पहला चुनाव है जब ''जानकारी के बिचौलियों" के बिना मतदाता के पास खुद जानकारी हासिल रखने की सुविधा है।
डिजिटल सूनामी से पहले वोटर को जो जानकारी मिलती थी वह किसी दुसरे के द्वारा दी गई होतीथी। जाहिर है कि इस जानकारी में कई बार नमक मिर्च भी लगा होता था। आज अगर आप चाहे तो आपको किसी भी जानकारी के लिए बिचौलियों की जरूरत नहीं है। आप
इंटरनेट के जरिये सीधे मूल जानकारी के स्त्रोत पर पंहुच सकते हैं । हम पत्रकार एक तरह सेसूचना/ जानकारी और खबरों के बिचौलिए ही होते हैं। इंटरनेट ने जिस तरीके से वाकी क्षेत्रों में बिचौलियों की भूमिका खत्म की है इसी तरह खबर की दुनिया के बिचौलियों
का व्यापार भी कम हुआ है। सोचिए पहले ज्यादातर बड़ी खबरें प्रेस क्रान्फ्रेस के जरिये दी जाती थीं। अब सरकारें सीधे ट्विटर में या फेसबुक के माध्यम से अपनी बात पहुंचा देते हैं। ट्रम्प और मोदी को ज्यादातर घोषणाएं सोशल मीडिया के माध्यम से ही जनता तक पंहुची हैं।
कुल मिलाकर खबरों के बिचौलियों का व्यापार अब मंदा पड़ गया है। इसका असर ये है कि उनका प्रभाव भी कम हो गया है। कई बड़े पत्रकारों की सार्वजनिक खीझ और बौखलाहट से साफ़ दिखाई पड़ता है कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि बदलते वक्त के साथ वे अपने आप को कैसे बदलें। इसी कारण अक्सर मुद्दों के आकलन और उनकी जनता में हो रही क्रिया-प्रतिक्रिया को वे समझ नहीं पा रहे। जो भी इन कथित सर्वज्ञानियों की सोच से अलग सोच रहा है उसे कुछ असम्मानजनक नाम दे देते हैं। पर असलियत है कि जानकारी पर नियंत्रण का उनका वर्चस्व खत्म हो गया है। इसका चुनाव से गहरा संबंध हैं। अगर 2014 के बाद के कुछ चुनाव देखें जांए, तो आपको समझ आएगा कि मैं क्या कह रहा हूं। 2017 का यूपी चुनाव ही लेते हैं। कृपया फरवरी मार्च 2017 के अखवार, मीडिया का विश्लेषण और आकलन उठाकर देखें। तकरीवन हर विश्लेषण कह रहा था कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के साथ आने से हवा बदल गई है। किसी का चुनावी गणित नहीं कहता था कि मायावती की पार्टी राज्य में 19 सीटों पर सिमट जाएगी और बीजेपी को इतना प्रचंड बहुमत मिलेगा।
मुझे नहीं मालूम कि आम चुनाव में यूपी में सपा-बसपा का गठबंधन क्या करेगा। मगर मैं ये भी कहना चाहता हूं कि ये किसी को भी नहीं मालूम। जो लेाग भी ये कह रहे हैं कि यूपी में इन दो दलों के साथ होने से सबकुछ बदल जाएगा वे भी सही नहीं हैं। वे खबर के वही बिचौलिए हैं जिनकी जमीन खिसक चुकी है। इसे उनका राजनीतिक विश्लेषण नहीं बल्कि उनकी राजनीतिक तमन्ना माना जाना चाहिए। ऐसा ही पूरे देश में होने जा रहा है।
एक चीज बिलकुल साफ है कि किसी को जनता के मन का कुछ भी पता नहीं है। मेरा कहना है कि इस वार का चुनाव आश्चर्य जनक नतीजे देगा । यह चुनाव जातिगत जोड़तोड़, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण, अवसरवादी गठजोड़ और बेमेल चुनावी शादियों को बेमानी सिद्ध करेगा क्योंकि लोग इस वार खुद से जानते है कि कौन कितने पानी में हैं। झूठे आरोपों, हवाई मुद्दों और सिर्फ लफ़्फ़ाज़ी इन चुनावों में धरी की धरी रह जाएगी। गरीब से अमीर तक हर हिन्दुस्तानी अपने हिसाब से तय करेगा कि कौन नेता या पार्टी
उसे सुरक्षा, विकास और गौरव प्रदान करेगा।
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