Saturday, May 25, 2019

नरेन्द्र मोदी: उम्मीद से भरोसे का सफर।



अब से कोई पन्द्रह दिन पहले मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ शाम को बैठा था। तब तक दिल्ली में मतदान नहीं हुआ था। चुनावों की चर्चा होते-होते बात वोट देने की आई तो दक्षिण दिल्ली में प्रत्याशियों का मुद्दा आया। हैरानी की बात है कि मेरे सहित किसी को भी मुख्य राजनीतिक दलों यानि भाजपा, आप और कांग्रेस के प्रत्याशियों के नाम याद नहीं थे। मैं 1977 से चुनावों का काफी नजदीक से देख रहा हूं। ये पहली बार हुआ कि मुझे भी सभी मुख्य प्रत्याशियों के नाम मालूम नहीं थे। ऐसा क्यों हुआ?

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मई को आये चुनाव परिणाम इसका उत्तर देते हैं। एनडीए के 353 और भाजपा को 303 का आंकड़ा दरअसल सही बात नहीं बताता । एनडीए को इस चुनाव में कुल मिलाकर तक़रीबन 28 करोड़ वोट पड़े हैं। असल बात तो है कि इनमें से ज्यादातर वोट सिर्फ एक प्रत्याशी को मिले हैं - उसका नाम है नरेन्द्र दामोदर दास मोदी। जिसने भी मोदी को प्रधानमंत्री चुनने के लिए वोट दिया उसमें से अधिकांश के लिए इस बात का कोई मायने नहीं था कि उनकी सीट से प्रत्याशी कौन है। इस पर लोगों की राय अलग-अलग हो सकती है कि यह अच्छा है या नहीं परंतु पूरे देश में नरेन्द्र मोदी ही सारी सीटों से चुनाव लड़ रहे थे- यह एक तथ्य है इसे झुठलाया नहीं जा सकता। 



इस चुनाव की असली कहानी है कि ऐसा क्यों हुआ? मई 2014 में जब नरेन्द्र मोदी को देश ने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था तो मतदाताओं ने उनमें उम्मीद और आस की एक किरण देखी थी। ऐसा पहली नहीं हुआ। उम्मीद और आशा के सपने भारत के मतदाता ने लगातार देखें हैं। हर चुनाव में एक आस की डोर भारतीयों ने पकड़ने की कोशिस की है। पर वह मुट्ठी में भरे रेत की तरह डोर फिसलती ही रही है। अपसोस, उसकी उम्मीदों का ये सफर अक्सर उसे नाउम्मीद और घोर निराशा के पड़ाव पर अकेला छोड़ गया है। हम पिछले कोई पचास साल के प्रमुख चुनावों के परिणाम को देखे तो बात स्पष्ट हो जाएगी। 1977 में भारत ने जनता पार्टी में उम्मीद देखी। लेकिन तीन साल बाद ही वो इन्दिरा गांधी को वापस लाने पर मजबूर हुआ। 1984 में भारत ने युवा राजीव गांधी में उम्मीद जतायी जो 1989 तक आते-आते चकना चूर हो गयी। उसके बाद चाहे 1996, 1998 हो, 2004 हो या 2009 के आम चुनाव - भारत की जनता की उम्मीद को कोई भी दल या प्रधानमंत्री भरोसे में नहीं बदल पाया। 2019 में ये अर्से बाद हुआ कि जनता ने पदासीन प्रधानमंत्री को पहले से ज्यादा विश्वास देकर जिताया ।

आशा को विश्वास में बदलना मानव के सामाजिक राजनीतिक जीवन ही बज्कि उसके हर रिश्ते के स्थायित्व की बुनियाद है। इस बुनियाद का मूल तत्व है विश्वसनीयता यानि साख। ये साख सिर्फ अच्छे शब्दों से नहीं बल्कि ठोस कर्म से बनती है। आशा के दूध में जब सुकृत्य रूपी मिठास घुलती है तभी वह विश्वास के मृदुपेय में परिवर्तित होता है। 
अपने लिए कुछ बेहतर होने की उम्मीद हर मतदाता अपने नेता से करता ही है परंतु भारत में जनता का अपने नेता से संबंध सिर्फ लेनदेन का व्यापारिक रिश्ता भर नहीं होता। एक भावनात्क रिश्ता भी जनता का नेता के साथ् होता है। यह भावनात्मक संबंध जब स्थापित होता है तो नागरिक अपने तात्कालिक हितों और स्वार्थों जैसे जाति, समुदाय, लिंग, भाषा,प्रान्त, मजहब और सम्प्रदाय से उठकर सोचने लगता है।

अधिकतर राजनीतिक विश्लेषक एनडीए की प्रंचड जीत का कारण श्री अमित शाह की चाणक्य नीति, भाजपा का मजबूत संगठन, राष्ट्रवाद, निर्णायक नेतृत्व, प्रधानमंत्री की वकृत्व कला, विपक्ष की नाकामी और सरकार की जनकल्याण योजनाएं आदि को ही मानते हैं। पर ये सिर्फ़ आधा सच है। ये सब कारक तो पिछली सरकारों के पास भी कमोवेश रहे ही हैं। इस बार जो सबसे अलग बात थी वो था प्रधानमंत्री मोदी का अपने पद पर रहते हुए किया गया आचरण और उनके काम। पिडले एक साल में मैंने कई ऐसे भारतीयों से बात की जिन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने व्यक्तिगत उनके लिए तो कोई काम नहीं किया परंतु ''देश के लिए मोदी बहुत अच्छे है। एक के बाद एक हिंदुस्तानी ने अपने-अपने शब्दों में इसी बात को दोहराया कि मोदी अपने लिए नहीं देश के लिए जीते है। कइयों ने कहा कि मोदी 'एक्शनवाले नेता हैं। 

अक्टूबर 2018 में मैंने कानपुर के रहने वाले 25 साल के नौजवान मोहम्मद जाकिर से बातचीत के आधार पर एक लेख लिखा था। तब ही मैंने लिखा था कि जनता प्रधान मंत्री  मोदी को 2019 में अप्रत्याशित बहुमत देगी। इस लेख का लिंक ये है :   https://bit.ly/2X8TQ38
इसमें उस समय उनके हवाले से लिखा था कि ''प्रधानमंत्री के लिए तो मोदी ही जीतेगा।जब मैंने ज़ाकिर से पूछा कि मोदी क्यों जीतेगा तो जाकिर का उत्तर था कि मोदी के देश के लिए काम करता है। देख लिजिए साहब, सारे काम देश को भलाई के लिए कर रहा है। ठीक आदमी है मोदी।सिर्फ हाईस्कूल तक पढ़े मोहम्मद जाकिर का यही उत्तर प्रधानमंत्री मोदी के 2014 में उम्मीदों से आरम्भ हुए सफ़र की 2019 में विश्वास में बदलने की गाथा है। ज़ाकिर के इस भरोसे पर अब पूरे देश ने प्रचंड बहुमत की मोहर लगा दी है।



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