Saturday, June 29, 2013

भ्रष्टाचार और छोटे राज्य


भ्रष्टाचार इन राज्यों की सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरा है. ये बात नहीं है कि देश के अन्य हिस्सों में भ्रष्टाचार नहीं हैं पर जिस पैमाने और तरीके से छोटे राज्यों मे ये समस्या आई है कई बार उससे हैरत हो जाती है!!


ये अब देश में बहस का मुद्दा नहीं रह गया है कि छोटे राज्य होना ठीक है या नहीं. हरियाणा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने जिस तरह से देश की विकास यात्रा में हिस्सा लिया है उससे साफ़ है कि अगर इन राज्यों में राजनीतिक स्थिरता और थोडा भी उद्देश्यपूर्ण नेतृत्व रहे तो फिर पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं है. मगर हर विकास नयी परिस्थितियों, संभावनाओं और संकटों को जन्म देता है. अब जो चुनौतियाँ इन राज्यों के सामने आ रहीं हैं या आ सकती है उनका आकलन और निराकरण  अगर आज नहीं हुआ तो जिन उद्देश्यों को लेकर इनका गठन हुआ था वही खतरे में पड़ जाने की आशंका है.

भ्रष्टाचार इन राज्यों की सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरा है. ये बात नहीं है कि देश के अन्य हिस्सों में भ्रष्टाचार नहीं हैं पर जिस पैमाने और तरीके से छोटे राज्यों मे ये समस्या आई है कई बार उससे हैरत हो जाती है. याद कीजिये कि किस तरीके से झारखण्ड में मधु कोड़ा ने मुख्यमंत्री के तौर पर दो साल से भी कम समय में ४००० करोड रूपये का गबन किया या फिर किस तरीके से गोवा की खानों से अवैध खनन होता रहा. और किस तरीके से तकरीबन हर राज्य में रियल इस्टेट कारोबारिओं के साथ मिलकर लूट का धंधा चल रहा है. इनमें राज्यों के मुख्यमंत्रिओं, मंत्रिओं से लेकर रोबर्ट वाड्रा तक के नाम सामने आते रहे हैं. कोंग्रेस हो या बीजेपी कोई भी पार्टी इससे अछूती नहीं है.

हुआ यों है कि एक बार पूर्ण बहुमत मिलने के बाद इन राज्यों का नेतृत्व एकदम निरंकुश सामंतों की तरह व्यवहार करने लगता है. कोई भी नियम या कानून ये मानने को तैयार नहीं. जी हुजूरी और चापलूसी करने वाले अफसर ही इन राज्यों में महत्वपूर्ण पद पाते हैं. हरियाणा में चौटाला पिता पुत्र नें किस तरह से शिक्षा विभाग में मनमानी की और अब वो जेल में हैं ये सब जानते हैं.

इन राज्यों में राज नेता ही निरंकुश और भ्रष्ट नहीं हुए हैं. नव धनाड्यों का एक ऐसा वर्ग भी पैदा हुआ है जो सारे संसाधन अपने हाथ में ले लेना चाहता है. “व्यापारी-भ्रष्ट्र राजनेता-अफसरों” की एक लालची तिगड़ी पैदा हो गई है जो विकास योजनाओं में प्राप्त होने वाले धन, प्राकृतिक संसाधनों, सरकारी ठेकों और हर उस आयोजन को कंट्रोल करती है जहाँ पैसा या ताकत है. इस वर्ग को कोई नियम कोई कायदा मान्य नहीं. अपनी पंसन्दीदा चीज़ के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं. हरियाणा के सिरसा में जूते की दूकान से एयरलाइन्स का मालिक और राज्य सरकार में मंत्री बना गोपाल कांडा इसका एक नमूना भर है.

छोटे राज्यों के शहरों में किसी भी स्तर पर होने वाले विरोध को डरा धमका कर या लालच देकर दबा दिया जाता है. बड़े शहरों की तरह इन राज्यों में ऐसी सिविल सोसायटी नहीं बन पाई है जो “व्यापारी-भ्रष्ट्र राजनेता-अफसरों” की इस लालची और निरंकुश तिगड़ी पर थोडा भी नैतिक नियंत्रण रख पाए. इस कारण से शहरीकरण और औद्योगीकरण से उत्पन्न हुए बड़े खतरों जैसे जिहादी आतंकवाद, जंगलों से शहरों की और बढते लाल गुरिल्लाओं के आतंक, शहरों में फ़ैल रहे स्लम, संसाधनों के असंतुलित वितरण और इनके साथ पैदा होने वाली प्रशासनिक जटिलताओं की तरफ किसीका ध्यान ही नहीं है. यही कारण है कि छत्तीसगढ़ मे बस्तर की दरभा घाटी में कोंग्रेस नेताओं की नृशंस हत्या के पन्द्रह दिन बाद भी न तो राज्य कोंग्रेस और न ही राज्य की भाजपा सरकार एक नयी नीति बनाने का संकेत भी दे पाई है. एक और मोहल्ले के नेताओं की तरह कोंग्रेसी नेता एक दूसरे पर शब्दवाण चला रहे हैं और राज्य सरकार भी हाथ पर हाथ धरे न जाने किसका मुँह ताक रही है. भाजपा को भी इस मुद्दे पर कोंग्रेस नेताओं के खिलाफ गली मोहल्ले में चलने वाली बचकानी  अफवाहों पर राजनीतिक रोटी सेकने में मज़ा आ रहा है. जबकि समस्या कितनी गंभीर है ये सबको मालूम हैं.

कुल मिलाकर छोटे राज्यों के सामने आने वाली प्रशासनिक, सुरक्षागत और संसाधनों के संतुलित  वितरण की चुनौतियाँ बेहत जटिल और विषम हैं. इनसे निपटने के लिए नए संकल्पों और नये ढांचों की ज़रूरत है. पर क्या इन राज्यों का राजनैतिक, प्रशासनिक, अकादमिक और सामाजिक नेतृत्व इसके लिए तैयार है ? ये एक अहम सवाल है.

उमेश उपाध्याय
२९ जून २०१३

1 comment:

  1. Respected Sir,

    line by - George Bernard Shaw:

    “The reasonable man adapts himself to the world; the unreasonable one persists in trying to adapt the world to himself. Therefore all progress depends on the unreasonable man.”

    let us think and put into confusions, and forcing us be unreasonable for progress... Please Guide how can we Protect our self.

    Shivang

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