पिछले कई साल से भ्रष्टाचार के नए कारनामे रोज राज्यों और केंद्र दोनों में ही जनता के सामने आते रहे हैं. पर जन लोकपाल का अभी भी कहीं दूर दूर तक पता नहीं है. सरकार इस मुगालते में है कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है.
राजस्थान के टोंक ज़िले में
स्वास्थ्य विभाग के दो कर्मचारियों को एक साल की सजा सुप्रीम कोर्ट ने दी है. ये
सजा भ्रष्टाचार निरोधी कानून यानि Anti Corruption
Act के तहत पिछले दिनों सुनाई गयी. उनकी गलती इतनी भर थी कि उन्होंने अठारह साल पहले एक मरीज़ से डिस्चार्ज पर्ची देने के एवज में
“मिठाई” मांगी थी. मरीज़ ने जब उन्हें सचमुच दो किलो लड्डू ला कर दिए तो
कर्मचारियों ने “मिठाई” का असली मतलब समझाया. यानि लड्डुओं के बदले २५ रुपये
मांगे. मरीज़ ने उन्हें भ्रष्टाचार निरोधक शाखा से रंग हाथों पकडवा दिया.
लड्डू रिश्वत का
मामला १९९४ का है. उस वक़्त का जब देश में नरसिम्हा राव सरकार थी और सेंट किट्ट्स,
हवाला, सांसद रिश्वत कांड और हर्षद मेहता जैसे बड़े बड़े मामले हवा में थे. सवाल है
कि २५ रूपए की कीमत के दो किलो लड्डुओं के लिए मुकुट बिहारी और कल्याण लाल नाम के
दो अदने कर्मचारिओं को सुप्रीम कोर्ट १८ साल बाद भी सजा देता है पर बड़े मामलों पर जब हल्ला मचता है तो न्यायालय से लेकर कार्य पालिका तक असहाय और
पंगु नज़र आते हैं. लीपा पोती करते हैं. और तो और जब अन्ना हजारे जैसे समाज सेवी
भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ताकतवर जन लोकपाल लाने के लिए मुहीम चलाते हैं तो ये सरकार
उन्हें और उनके साथियों को ही बदनाम करने कि शाजिश करती है. हल्ला मचाया जाता है
कि जन लोक पाल की माँग संसद की स्वायतत्ता और लोकतन्त्र पर हमला है ? संसद में
सरकार की शह पर विधयेक फाड़ दिया जाता है. हमें समझाया जाता है कि हमारी सांवैधानिक
वयवस्था में जन प्रातिनिधि सबसे ऊपर हैं ! अर्थात उन्हें चुनने वाली जनता से भी
ऊपर. सारे तर्कों का लब्बोलुआब ये कि जैसा चल रहा है चलते रहने दो. अगर जनता की
गाढ़ी कमाई का पैसा व्यव्स्था में बैठे लोग खा रहे है तो सवाल मत करो !
ये संयोग नहीं है कि पिछले दो तीन साल में भ्रष्टाचार के खिलाफ देश मैं कई आन्दोलन हुए हैं. अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ
अपने आन्दोलन के तहत दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे थे. उस समय पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग एकजुट हुए थे. ये लोग देश
के हर प्रान्त में, हर कोने में बिना जात , धर्म, संप्रदाय, लिंग, उम्र, सामाजिक
और आर्थिक हैसियत के भेद के इस उम्मीद से अनशन में शामिल हुए थे कि अन्ना के इस
अनशन से सरकार और राजनीतिक पार्टिया जागेंगी और एक ऐसा कानून लाएंगी जिससे
भ्रष्टाचार के राक्षस से देश को मुक्ति मिलेगी. बाबा रामदेव ने भी दिल्ली में अनशन किया था.
सवाल ये है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ इतना आक्रोश होते हुए भी आज तक उसके
खिलाफ कोई मारक कदम क्यों नहीं उठाया गया? सारे सत्ताधारी – बिना किसी दलीय अपवाद के इस लूट की नदी में मिलकर हाथ साफ़ करते
रहे हैं. इस ‘हमाम में सब नंगे’ हैं. भ्रष्टाचार का जंग पूरे समाज की जड़ों को काट
रहा है. पिछले कई साल से भ्रष्टाचार के नए कारनामे रोज राज्यों और केंद्र दोनों में ही जनता के सामने आते रहे हैं. पर जन लोकपाल का अभी
भी कहीं दूर दूर तक पता नहीं है. सरकार इस मुगालते में है कि जनता की याददाश्त
कमजोर होती है.
लोग तंग आ चुके हैं. आम आदमी को रोज अपने छोटे मोटे काम करवाने के लिये ‘मुटठी
गर्म’ करनी पड़ती है या साहब की ‘मिठाई या
चायपानी’ का इंतजाम करना पडता है. इसलिए
ये अच्छा हुआ कि दो किलो लड्डुओं के लिए मुकुट बिहारी और कल्याण लाल को एक साल जेल
की सजा हुई पर मैं पूछना चाहता हूँ इस देश के प्रधान मंत्री से, सुप्रीम कोर्ट से और संसद
से कि आप लोग कब तक टाल सकेंगे भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े क़दमों को ? २५ रुपये के लिये दो किलो लड्डुओं
कि रिश्वत के दोषियो पर ही मत रुकिए. ऐसा इंतजाम कीजिये कि हर भ्रष्टाचारी सलाखों
के पीछे हो चाहे वो प्रधानमंत्री हो या बड़ा अफसर या फिर जज. नहीं तो लड्डू रिश्वत
कांड में ये सजा हास्यास्पद बन कर रह जायेगी. क्या “समरथ को नहि दोष गुसाईं” की
कहावत अपने इस विकृत रूप में ऐसे ही चरितार्थ होती रहेगी? क्या सिर्फ़ २५ रुपये की
रिश्वत लेने वाले ही जेल जायेंगे और जनता का अरबोँ रुपये खा जाने वाले डकार भी
नहीं लेंगे?
बहुत अच्छा.
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