Sunday, April 27, 2014

#Sonia #rahulgandhi भारतीयता की ठेकेदारी !



भारतीयता की ठेकेदारी !
“अचानक से सेकुलरवाद को खतरा बढ़ गया है।“ जब जब कॉंग्रेस की कुर्सी खतरे में नज़र आती है तो सेकुलरवाद को बचाने की गुहार लगनी शुरू हो जाती है। सोमवार को तमिलनाडु में एक जनसभा में राहुल गांधी ने कहा कि “दिल्ली में ऐसी सरकार नहीं आनी चाहिए जो हिन्दू को  मुसलमान से लड़ाये।“ कॉंग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी तो इससे भी आगे गयी और उन्होने तकरीबन तीन मिनट के अपने “राष्ट्र के नाम संदेशनुमा विज्ञापन में इस चुनाव को देश तोड़ने वालों और देश जोड़ने वालों के बीच की लड़ाई करार दिया। उन्होने “भारतीयता और हिंदुस्तानियत” को बचाने की अपील की। 

मुझे इस पर आपत्ति नहीं है कि वे इन दोनों शब्दों को ठीक से बोल भी नहीं पायीं। हांलांकि पिछले तकरीबन 10 साल से देश की “वास्तविक प्रधानमंत्री” और सत्ता की कुंजी हाथ में रखने वाली होने के नाते ये देश ये अपेक्षा तो उनसे कर ही सकता है कि वे इसके नाम को ठीक तरीके से बोलें ! उनकी उच्चारण संबंधी अशुद्धियों को तो अनदेखा किया जा सकता है परंतु भारतीयता की ठेकेदारी” के उनके दावे को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है। पिछले दस साल में यूपीए खासकर कॉंग्रेस ने ऐसा क्या किया कि सिर्फ उसीको इस देश का रक्षक मान लिया जाये ? और नरेंद्र मोदी ने इस दौरान ऐसा क्या किया जिस कारण उनपर ये तोहमत लगाई जाये?

अब तक की सारी खबरों और संकेतों के मुताबिक कॉंग्रेस अबतक के सबसे खराब चुनावी प्रदर्शन की और बढ़ रही है। देश का तकरीबन हर तबका उससे नाराज़ नज़र आ रहा है। बेहतर होता कि सोनिया गांधी इन संकेतों का गंभीर विश्लेषण करतीं न कि विपक्ष पर ऐसा आरोप लगातीं जो उनके पद और गरिमा के अनुरूप नहीं है। देश का जन मानस यूपीए से सिर्फ इसलिए नाराज़ नहीं है कि देश का राज काज उसने चौपट कर दिया, अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया और भ्रष्टाचार की सारी सीमाओं को लांघ दिया। 

देश इसलिए भी नाराज़ है कि  यूपीए ने लगातार समाज को बांटने की कोशिश  की, देश की सुरक्षा के साथ समझौता किया और राष्ट्र के दूरगामी हितों की चिंता नहीं की। याद कीजिये प्रधानमंत्री के उस बयान को कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है। क्या ये समाज में द्वेष बढ़ाने वाला बयान नहीं है ? सच्चर कमीशन और रंगनाथ आयोग का गठन क्या पूरे देश मैं विश्वाश पैदा करने वाला कदम था? आतंकी घटनाओं के बाद सुरक्षा बलों पर भरोसा न करके उल्टे सीधे बयान देने वाले अपने शीर्ष नेताओं पर लगाम न कसके उन्होने समाज को लगातार क्या संदेश दिया?

मुंबई में आतंकी हमलों के बाद हेमंत करकरे के बारे में दिग्विजय सिंह के बयान और दिल्ली में बटला हाउस एंकाउंटर को जिस तरह से कई बड़े नेताओं ने सारे मामले को हिन्दू मुसलमान का मुद्दा बनाने की कोशिश  की क्या वह ज़िम्मेदारी का काम था? और तो और इस सरकार ने तो भारतीय सेना को भी सांप्रदायिक आधार पर बांटने की कोशिश की। आज सुरक्षा के मामले में जो देश के हालात है वो किससे छुपे हुए है ? नौसेना में एक के बाद एक हादसे हो रहे हैं। थल सेना में जितने विवाद पिछले दिनों में हुए उतने तो पहले कभी नहीं हुए।
आंतरिक सुरक्षा के मामले मैं माओवादी हिंसा पर तो स्वयं सोनिया गांधी सरकार को पीछे धकेलती रहीं हैं। जब तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने माओवादी हिंसा के खिलाफ कड़े कदम उठाने की कोशिश की थी तो सोनिया ने खुद कॉंग्रेस जन के नाम खुला पत्र लिखकर माओवादियों की हिमायत की थी। तो फिर सोनिया गांधी किस हक़ से कह रहीं हैं कि अगर वे सत्ता से हट गईं तो भारतीयता खतरे में पड़ जाएगी?
 
आज देश के कुल कितने राज्यों में कॉंग्रेस की सरकार है - महाराष्ट्र, हरियाणा, हिमाचल, असम, अरुणाचल, केरल और उत्तराखंड बस। तो क्या कहना चाहती है कॉंग्रेस क्या बाकी देश में भारत और भारतीयता खतरे में है? क्या ये माना जाये कि सोनिया गांधी की कॉंग्रेस भाजपा और उनके नेताओं की देश के प्रति प्रतिबद्धता को ईमानदार नहीं मानतीं? सोचिए तो कितना गंभीर आरोप है ये? होना तो ये चाहिए था कि भाजपा उनके इस बयान के खिलाफ उन्हे चुनाव आयोग मे ले जाती और माफी मांगने को कहती। मगर शायद मामले को बढ़ाकर भाजपा सोनिया को कोई भाव नहीं देना चाहती। कॉंग्रेस को चाहिए कि वो अपने गिरेबान में झाँके न कि दूसरों को भारतीयता और उनकी प्रतिबद्धता पर उपदेश दे। 
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उमेश उपाध्याय
23 अप्रेल 2014  

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