Sunday, May 25, 2014

कपटी चौकड़ी के शिकार केजरीवाल




“ये बेचारा जमानत की मार का मारा” ये शीर्षक आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल पर आज बखूबी लागू होती है। उन्हें दो जमानतों ने मारा है। एक तो उनकी पार्टी के 96% उम्मीदवारों की जमानत ज़ब्त हो गई और दूसरे अदालती जमानत के कारण उन्हें जेल में रहना पड़ा है। हालांकि ये बेचारगी उन्होने खुद मोल ली है इसलिए आज ज़्यादातर लोगों को न तो उन पर तरस आ रहा है न ही उनसे कोई सहानभूति हो रही है।

ज़रा पहली जमानत को देखते है। अब सोचिए उन्हें दिल्ली में अच्छी ख़ासी सत्ता मिल गई थी मगर साहब महत्वाकांक्षा के कीड़े ने ऐसा काटा कि "चौबे जी छब्बे बनने चले थे, दुबे भी नहीं रहे।" (मेरे चौबे और दुबे मित्र इस तुलना से आहत हो सकते हैं सो उनसे पहले ही माफी की गुजारिश है)। ज़रा आंकड़े देखिये। पार्टी ने 434  उम्मीदवार खड़े किए थे। उनमे से 413 ने अपनी जमानत गंवा दी। 15 राज्य ऐसे हैं जहां आम आदमी पार्टी का एक भी ऊमीद्वार जमानत नहीं बचा सका। इसमें कर्नाटक, सीमान्ध्र, तेलंगाना, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडू, केरल, बिहार, गुजरात और हरियाणा जैसे प्रदेश शामिल है। हरियाणा का नतीजा तो पार्टी के अनुसार भयावह रहा क्योंकि अरविंद केजरीवाल और योगेन्द यादव यहीं से आते है। उनकी उम्मीद हरियाणा विधान सभा में दिल्ली जैसे नतीजों की थी। मगर यहाँ खुद पार्टी के चिंतक कहे जाने वाले योगेंद्र यादव भी गुड़गाँव में जमानत नही बचा सके। उत्तर प्रदेश में वाराणसी को छोड़ दिया जाये तो कोई भी उम्मीदवार जमानत नहीं बचा पाया। दो महीने से हल्ला मचा रहे  कवि कुमार विश्वास अमेठी में सिर्फ 25527 मत प्राप्त कर पाये और वे अपनी जमानत तक नहीं बचा पाये। वे चौथे स्थान पर रहे जबकि कुछ ही दिन पहले मैदान में उतरीं भाजपा की स्मृति ईरानी 300748 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहीं। केवल पंजाब, दिल्ली और चंडीगढ़ में ही आम आदमी पार्टी अपने प्रदर्शन पर कुछ संतोष कर सकती है।

इस प्रदर्शन पर कोई भी समझदार आदमी आत्मचिंतन करता। मगर केजरीवाल ने ठीक इसका उल्टा किया। मामला बिलकुल सीधा था। उन्होने भाजपा के नितिन गडकरी को दस सबसे भ्रष्ट राजनेताओं की सूची मे शामिल किया था। अब सोचिए आप आरोप लगाएंगे तो साबित करने की ज़िम्मेदारी आपकी है। ये देश की न्याय व्यवस्था ही तय कर सकती है कि कोई दोषी है कि नहीं। इसलिए इसके खिलाफ गडकरी अदालत में चले गए कि या तो केजरीवाल आरोप साबित करें या माफी मांगें। गडकरी ने उन पर अवमानना का एक फ़ौजदारी मामला दायर किया कि केजरीवाल के आरोपों से उनकी प्रतिष्ठा की हानि हुई है। अब जैसा कि स्थापित न्यायिक प्रक्रिया है कि फ़ौजदारी मामले में आपको जमानत लेनी पड़ती है। केजरीवाल ने अदालत में ऐसा करने से मना कर दिया तो कानून के अनुसार उन्हें जेल भेज दिया गया। अरविंद  इसलिए अड़े कि उनकी पार्टी का सिद्धान्त है कि जमानत नहीं ली जाएगी। ये अलग बात है कि उनके अगले ही दिन साथियों जैसे योगेंद्र यादव, मनीष सिसौदिया आदि ने जमानत ले ली। भाई, ये कैसा सिद्धान्त है जो पार्टी में किसी पर तो लागू होता है और किसी पर नहीं? मगर मौके के मुताबिक बात करना जैसे इस पार्टी की रणनीति बन गई है। 

अरविंद को उम्मीद थी कि इससे लोग उनके प्रति हमदर्दी दिखाएंगे और उनके लिए दिल्ली की सड़कों पर हजारों लोग इक्कठे हो जाएँगे। हजारों तो क्या, जब वे जेल गए तो सैकड़ों लोग भी नहीं आए। उनकी पार्टी के मुट्ठी भर लोग ही तिहाड़ के बाहर पहुंचे जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। मीडिया ने भी थोड़ी देर दिखाकर अपना कर्तव्य निभाया। ज़्यादातर अखबारों में ये सुर्खी भी नहीं बनी। अब अरविंद ने एक खुला पत्र लिखा है जनता और अपने समर्थकों के नाम। लोग इसे भी हमदर्दी जुटाने की रणनीति ही समझ रहे हैं। 

अरविंद दरअसल या तो एक सदमे या फिर एक सपने में हैं। वे बहुत आत्मकेंद्रित हो गए लगते हैं। उन्हें दुनिया में “मैं, मेरा और मेरी ज़िद”  इससे आगे कुछ दिखाई नहीं दे रहा। यही कारण है कि उनकी पार्टी बिखरनी शुरू हो गई है। उनकी पार्टी की संस्थापक सदस्य शाजिया इल्मी और केप्टेन गोपीनाथ के साथ साथ कई सदस्यों ने पार्टी छोड़ दी है। उनका मूल आरोप पार्टी में अंदरूनी लोकतन्त्र की कमी है। इन लोगों का कहना है कि पार्टी पर कुछ लोगों ने  कब्जा कर लिया है। मीडिया के अनुसार  इन नामों में वकील प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, गोपाल राय और संजय सिंह का नाम आता है। आरोप है कि श्री भूषण अपने कतिपय हितों के लिए केजरीवाल का इस्तेमाल कर रहे हैं। जैसा कि किसीने ट्वीट किया कि अदालत में दो बार  केजरीवाल ने श्री भूषण से पूंछा कि क्या वे जमानत ले लें, तो प्रशांत ने उन्हे ऐसा करने से रोक दिया। सुश्री शाजिया इल्मी ने "बेल और जेल की राजनीति" को खारिज ही नहीं किया बल्कि साफ साफ कहा कि केजरीवाल कुछ लोंगों की इच्छाओं के गुलाम हो गए है। शाजिया ने इसे “कपटी चौकड़ी” का नाम दिया है। उनके मुताबिक इस चौकड़ी ने केजरीवाल के चारों तरफ एक शिकंजा सा कस दिया है बाकी लोग उनसे मिल तक नहीं पाते। इन लोगों का एक  तय एजेंडा है जिसे वो पूरा कर रहे हैं। 

पिछले साल हमने कई लेखों में लिखा था कि आम आदमी पार्टी भारतीय राजनीति में एक नई बयार लेकर आई है।  उसने पुरानी मान्यताओं को चुनौती दी है। यहाँ तक कि पार्टी के कारण स्थापित राजनीतिक दलों को भी खुद को बदलना पड़ रहा है।  दिल्ली की जनता ने विधानसभा में इसीलिए उसे हाथोंहाथ लेकर तकरीबन बहुमत दे दिया था। मगर उसने ये मौका गंवा दिया। 

याद रखने की बात है कि नकारात्मकता लोगों को आकर्षित तो कर सकती है मगर यही किसी पार्टी का मूल सिद्धान्त नहीं हो सकता। लोकसभा चुनाव के बाद जब केजरीवाल ने माफी मांगी तो लगा कि वे आत्ममंथन की और जा रहे है मगर 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि वे “बेल और जेल” के गोरखधंधे में फंस गए। अगर ये सलाह प्रशांत भूषण ने दी भी थे तो भी इसे चुना तो केजरीवाल ने खुद ही। इसलिए जब आज वो  अपने खुले पत्र में पूंछ रहे है कि “मैं किस गलती के कारण जेल मैं हूँ” और “ईमानदार जेल में और भ्रष्ट नेता बाहर क्यों ?” तो लोगों को समझ नहीं आ रहा। ये  सवाल तो उन्हें खुद से पूंछना चाहिए या फिर अपने वकील और साथी प्रशांत भूषण जैसे रणनीतिकार से। जो खुद ही  शिकायतकर्ता और जज दोनों बने बैठे हैं और इस पार्टी को उन्होने सिर्फ गुस्से और ज़िद की पार्टी बना डाला है। शायद किसी ने सही ही ट्वीट किया कि “अब ये आम आदमी पार्टी से चार आदमी पार्टी” बन गई है। अरविंद को अगर फिर इस पार्टी को आम लोगों की उम्मीद की पार्टी बनाना है तो इस “कपटी चौकड़ी” के चंगुल से बाहर आना होगा।


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उमेश उपाध्याय
25 मई 2014

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