Friday, May 2, 2014

#Elections2014 बदनाम हुए तो भी नाम तो होगा !


ऐसा लगता है कि कुछ नेताओं को लगता है कि 16 मई के आगे कोई दुनिया नहीं होगी। न आपसी रिश्ते रहेंगे न नेता आपस में मिलेंगे जुलेंगे। बताइये तो सही, कोई दलितों के घर के दौरे को हनीमून बता रहा है, कोई किसी को राक्षस बता रहा है, कोई किसी को पाकिस्तान भेज रहा है तो किसी को देश तोड़ने वाला करार दे रहा है? किस किस तरह के बयान दिये जा रहे हैं? कुछ बयानों की बानगी तो देखिये।

बाबा रामदेव ने 25 अप्रेल को लखनऊ में कहा कि “ वह (राहुल गांधी) दलितों के घर पिकनिक और हनीमून मनाने जाते है”। राजदीप सरदेसाई के साथ गूगल हैंग आउट में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी को “राक्षस और गुंडा” तक कह डाला। कॉंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने विज्ञापन में भाजपा के नेताओं को देश को तोड़ने वाला और “भारतीयता और हिंदुस्तानियत” के खिलाफ बता दिया। तो भाजपा के नेता और बिहार में नवादा लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी गिरिराज सिंह ने यहाँ तक कह दिया कि “जो लोग नरेंद्र मोदी को रोकना चाहते हैं..... आने वाले दिनों में इन लोगों के लिए जगह हिंदुस्तान में नहीं ....... पाकिस्तान में होगा”। समाजवादी पार्टी के नेता मुलायमसिंह यादव ने बसपा नेता मायावती की वैवाहिक स्थिति पर अजीब सी टिप्पड़ी कर डाली “ मैं उसे कुमारी कहूँ, श्रीमती कहूँ या बहन कहूँ”?

इन बयानों को चुनाव की गर्मी में दिये बयान कह कर खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि इनमें कई बयान किसी छोटे मोटे नेता ने नहीं बल्कि जिम्मेदार नेताओं ने दिये हैं। ये लोग कई हार जीत और चुनाव झेल चुके हैं। तो फिर ऐसा क्या हो रहा है कि ऐसे बयान आ रहे हैं?

इसका एक कारण तो ये है कि कई मायनों में इस बार के चुनाव अनूठे हैं। एक तो अब तक जहां भी मतदान हुआ है यदि कुछ स्थानों को छोड़ दिया जाये तो वहाँ वोटों का प्रतिशत पिछले चुनावों के मुक़ाबले काफी ज़्यादा रहा है। इससे जो आज सता मैं हैं वे विचलित हो गए हैं और लगता है कि अपनी पार्टी की साख बचाने के लिए उन्होने सारी मर्यादाओं और सीमाओं को लांघ दिया है।

इस चुनाव में दो नए घटक हैं एक तो आम आदमी पार्टी और दूसरा नरेंद्र मोदी का घमासान प्रचार। जहां आम आदमी पार्टी ताश के खेल के एक ब्लाईंड कार्ड की तरह है वहीं नरेंद्र मोदी की राजनीतिक आक्रामकता विरोधियों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। आम आदमी पार्टी की मुश्किल ये है कि वह मीडिया पर बहुत निर्भर है और जब मीडिया में उनकी कवरेज कम होती है तो उनका नेतृत्व बौखला जाता है और उनके यहाँ से ऐसे बयान आते हैं कि वे फिर मीडिया में आ जाएँ। उनकी फितरत ये हो गई है कि बदनाम हुए तो भी नाम तो होगा। अरविंद केजरीवाल के बयान को उसी संदर्भ में समझा जा सकता है।

सोनिया गांधी का विज्ञापन आधे से ज़्यादा चुनाव बीतने के बाद आया। इससे दो बातें साफ दिखतीं हैं। एक कि उन्होने स्वीकार कर लिया कि राहुल का असर नहीं हो रहा। और दूसरा ये कि मुसलमान और तथाकथित सेकुलर वोटों को कॉंग्रेस से खिसकने से बचाने के लिए मोदी का डर दिखाना ज़रूरी है। उधर मुलायम सिंह यादव को भी शायद लगता है कि मायावती की पार्टी मुसलमान वोट ना ले जाये सो उन्होने भी कमर से नीचे वार किया है।

भाजपा में गिरिराज सिंह के बयान को आप छोटे नेता का बयान कहकर नज़रअंदाज़ कर भी जाएँ पर बाबा रामदेव का बयान पूरी तरह से अशोभनीय और असंवेदनशील था। ऐसा कहकर उन्होने राहुल और दलितों का नहीं बल्कि स्वयम अपना ही कद गिराया है। साधुओं से तो कम से कम कोई ऐसी अपेक्षा नहीं करता।

हालांकि फ़ारुक अब्दुल्ला अपने विवादस्पद बयानों के लिए ही जाने जाते हैं मगर उनका ये कहना कि जो मोदी के लिए वोट कर रहे हैं उन्हे समुंदर में फेंक दिया जाना चाहिए, कुछ ज़्यादा ही हो गया ! ये मोदी का नहीं देश के मतदाताओं का अपमान है। सारे गुजरातियों का अपमान है जो मोदी को तीसरी बार मुख्यमंत्री बना चुके हैं। जो भी इस बार कई लोगों ने लक्ष्मण रेखाओं को लांघा है। ये सही है कि चुनाव आयोग ने इस बार सख्ती अपनाई है मगर फिर भी नेताओं को को सोचना चाहिए कि हार हो या जीत 16 मई के भी आगे एक दुनिया है।

उमेश उपाध्याय
1 मई 2014

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