Thursday, June 26, 2014

#PMmodi दस साल बनाम एक महीना #Modi

एक महीने का वक़्त कोई वक़्त नहीं होता जिसमे किसी सरकार का कोई आकलन किया जाये। लेकिन लोगों ने नरेंद्र मोदी की सरकार का आकलन शुरू कर दिया है। नरेंद्र मोदी को हमेशा ‘आग के दरिया में डूब के जाना’ पड़ता है। और ये मोदी की मुश्किल नहीं बल्कि शख्सियत उनकी ताकत को बयान करता है। यूं देखा जाये तो इस महीने भर में कई संकेत दिये हैं सरकार ने जो आने वाले ‘अच्छे दिनों’ की तरफ इंगित कराते हैं। मसलन पड़ोसी देशों से संवाद जुड़ना, छोटा मंत्रिमंडल, रेल के किराये बढ़ना और कड़े आर्थिक उपायों का ऐलान।

दरअसल पिछले दस साल में सरकार ने अर्थव्यवस्था को इतना जर्जर बना दिया था कि आज वो एक तरह से आईसीयू में पड़े मरीज सी लगती है। यू पी ए सरकार देश को पुराने समाजवादी दौर के आर्थिक चलन में ले गई जहां सब कुछ सरकार नियंत्रित हो जाने लगा था। सबसिडी और आर्थिक फैसलों पर सरकार का कंट्रोल वही उस सरकार का मूल मंत्र था। अब उस दौर को पलटने के लिए समय चाहिए। ये किसी जादू की छड़ी से नहीं हो जाने वाला। इस संदर्भ में फेसबुक पर मेरी एक लेखिका मित्र  ने लिखा कि ‘अच्छे दिनों के लिए कड़ी मेहनत की ज़रूरत पड़ेगी’। बात तो सही है मगर भाई लोग कह सकते हैं कि पहले दिन से ही अच्छे दिन आने चाहिए। दस बरस मुंह पर पट्टी बाँधें रहे ये तथाकथित ‘एक्सपर्ट’ बस ताक में ही हैं कि कब मौका मिले और वे कब टूट पड़ें।

हाँ एक बात की अपेक्षा इस सरकार से सबको है। वो ये कि संवाद नहीं टूटना चाहिए। ये सरकार बनी हैं नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के एक बेहतर संवाद की वजह से। अगर एक महीने में किसी चीज़ की कमी खली है तो वो है एक बेहतर जन संवाद नीति और उस पर अमल करने की रणनीति की। यहाँ ये कह देना ज़रूरी है कि एक महीना बहुत कम समय है इसे तोलने के लिए मगर मोदी से सबको अब असंभव की उम्मीद होने लगी है। अब प्रधानमंत्री ने शुरुआत तो ठीक की थी। लोगों को कतई बुरा नहीं लगा था जब उन्होने कड़े फैसले लेने की बात कही थी। परंतु जब रेल के किराये बढ़ाए गए तो उन्हें बढ़ाने की ज़रूरत क्यों आन पड़ी ये भी जनता के सामने ठीक तरह से रखना ज़रूरी था। ये बात ठीक ठीक आई नहीं। जबकि हम मानते हैं कि देश की तरक्की के लिए रेल का स्वास्थ्य तंदुरुस्त रहना बेहद ज़रूरी है। मगर जनता को समझाना भी तो आवश्यक था। ऐसा नहीं हुआ।

उसी तरह मंत्रियों के निजी सचिव रखने के मामले में अस्पष्ट संवाद की भूमिका साफ दिखी। प्रधानमंत्री नहीं चाहते हैं कि वे लोग ही फिर से मंत्रियों की परिक्रमा करके निजी सचिव बन जाएँ जो पिछली यूपीए  सरकार के दौरान मंत्रियों के साथ रहे थे। बिलकुल साफ है कि एक तो प्रधानमंत्री इस सरकार में नयापन चाहते हैं और दूसरे वे नहीं चाहते कि पिछली सरकार के दामन पर जो दाग लगे फिर ऐसे ही नौकरशाहों से इस सरकार के मंत्री घिर जाएँ। मगर संदेश ये गया कि वे और आर एस एस मंत्रियों पर नियंत्रण रखना चाहते हैं। इस कारण कौन किसका निजी सचिव बनेगा यह सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गया। यह भी संवाद की कमी का ही नतीजा है। इसी तरह गोपाल सुब्रमणियम को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने के मसले पर हो रहा है।

मोदी और उनकी टीम बेहतर संवाद के लिए जानी जाती है। इसलिए उनसे अपेक्षा भी बहुत अधिक है। जिस तरह चुनाव के दौरान उनका संवाद हुआ।  आवश्यकता उसी तरह की रणनीति की है। मीडिया, अफसरशाही और बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो बाल की खाल निकालेगा ही। उसकी चिंता न करते हुए प्रधानमंत्री को सीधा संवाद जनता से करना चाहिए ताकि अच्छे दिनों के लिए मेहनत की जिस तकलीफदेह खाई से गुज़रना इस देश की मजबूरी है उसका फायदा वो लोग नहीं उठाएँ जिन्हें देश में हुआ दूरगामी बदलाव फूटी आँखों नहीं सुहा रहा।


उमेश उपाध्याय
26 जून 14

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