Thursday, June 26, 2014

मोदी और अमरीकी वीज़ा #Modi




अमरीका ने कहा है कि उनके देश में “ओटोमेटिक वीज़ा” की कोई व्यवस्था नहीं है। कोई भी व्यक्ति ओटोमेटिक वीज़ा पाने का हकदार नहीं होता ।” बुधवार को अमरीकी विदेश विभाग की प्रवक्ता जेन पास्की ने वाशिंगटन में ये बात कही। उन्होने श्री नरेंद्र मोदी को वीज़ा के सवाल पर कोई सीधा उत्तर नहीं दिया लेकिन ये ज़रूर कहा कि “ राज्याध्यक्ष और राष्ट्राध्यक्ष ए 1 श्रेणी में आप्रवास और राष्ट्रियता कानून के तहत  वीज़ा के पात्र  होते है ।” मगर कोई भी व्यक्ति अपने आप वीज़ा का हकदार नहीं होता। मोदी के सवाल पर उन्होने यह भी कह दिया कि “अभी चुनाव के नतीजे घोषित नहीं हुए है।“


इससे एक बार फिर मोदी को वीज़ा देने का विवाद सामने आ गया है। याद रखने की बात है कि मार्च 2005 में श्री मोदी ने अमरीका जाने के लिए “राजनयिक वीज़ा” माँगा था। अमरीका ने न सिर्फ उन्हें वीज़ा देने से इंकार कर दिया था बल्कि उनके पास पहले से जो पर्यटक वीज़ा था उसे भी रद्द कर दिया था। देश के सेकुलरवादी तबके ने इस पर खुशी जताई थी। लेकिन सवाल ये है कि उनके प्रधान मंत्री बन जाने की स्थिति में अमरीका क्या करेगा? जिस तरह अमरीका के प्रवक्ता ने अब भी सीधा जवाब ने देकर बात को तोड़ मरोड़ कर रखा है उससे लगता है कि ये मामला तूल पकड़ सकता है। 


2005 में भी ये देश के सम्मान और अस्मिता का सवाल था और आज भी वही सवाल सामने खड़ा है। क्या किसी दूसरे देश को ये हक़ है कि वह हमारे चुने हुए नेता के बारे में कोई असम्मानजनक फैसला करे? श्री मोदी की तत्कालीन प्रस्तावित यात्रा को अमेरिका ने गुजरात के दंगों से जोड़ा था। उसे ये हक़ किसने दिया? उस समय भी श्री मोदी एक लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्री थे और आज वे देश के करोड़ों लोगों की उम्मीद हैं । देश की किसी अदालत या संस्था ने उनको दोषी करार नहीं दिया है तो किस आधार पर अमरीका ने उन्हें वीज़ा देने से मना किया।
ये सीधे सीधे देश की सार्वभौमिकता पर हमला था। दुख की बात तो ये है कि तत्कालीन यू पी ए सरकार और अन्य दलों ने इस पर  विरोध जाहिर न करके इसका स्वागत किया था। इससे एक गलत परंपरा स्थापित हुई। अब सोचिए कि कॉंग्रेस के नेताओं को अगर अमेरिका ये कह कर वीज़ा न दे कि उनके शासन के दौरान सिख विरोधी दंगे हुए थे? या फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव को इसलिए अमेरिका जाने से रोक दिया जाये कि वो मुजजफरनगर में दंगों को रोक नहीं पाये। क्या ये उचित होगा? देश की इस अंदरूनी राजनीति की वजह से ही अमरीका जैसी ताकतों को अपनी रोटियाँ सेकने का मौका मिलता है। 


श्री मोदी ने इस मसले पर चुप्पी साध कर अच्छा ही किया। वे इसे तूल नहीं देना चाहते थे। पिछले दिनों जब अमरीकी राजदूत उनसे मिलने गईं तो वे उनसे मिले भी। तब भी उन्होने बड़प्पन दिखते हुए सिर्फ भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े के साथ अमरीका में हुए दुर्व्यवहार की चर्चा की। ये ठीक ही था। अमरीका हमारा दोस्त है मगर ये बात भी सोचने की है कि ये दोस्ती एकतरफा नहीं हो सकती।


समय है कि अमरीका को बताया जाये कि भारत उसके साथ वही व्यवहार करेगा जो वह भारत और उसके नेताओं के साथ करता है। वह हमारे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की तलाशी ले और हम उनके राजनयिकों को हवाई अड्डों पर पूरी छूट दें। उनके कलाकार जब यहाँ आयें तो हम पलक पावड़ें बिछाएँ और वे शाहरुख खान को घंटों रोक लें। ये नहीं चल सकता। अशिष्टता का जवाब अशिष्टता तो नहीं होना चाहिए मगर कोई आपकी शिष्टता को कमजोरी समझता हो तो फिर आपका भी ये कर्तव्य है कि आप उसे सही सबक सिखाएँ। 


हम ये नहीं कहते कि श्री मोदी को अमरीका का वहिष्कार कर देना चाहिए। मगर ऐसा ज़रूर होना चाहिए कि वो फिर किसी भारतीय नेता का अपमान करने से पहले दो बार सोचे। अमरीका तक ये संदेश पहुँचना ज़रूरी है कि 2005 में जो उसने किया था वह नितांत अशिष्ट, अराजनयिक, लोकतंत्रीय मर्यादाओं और अंतर्राष्ट्रीय परम्पराओं के विरुद्ध था। और अब भी जो बयान वाशिंगटन से आया है वह सही नहीं है। हमें अपने राजनयिक सूत्रों के जरिये ये बात बिना किसी लाग लपेट के अमरीका से कहनी चाहिए। और अगर फिर भी अमरीका अपनी हेकड़ी मैं रहता है तो “शठे शाठ्यम समाचरेत” यानि उसे जो भाषा समझ में आती है उसी में बात करनी चाहिए। फेस बुक पर आज एक पाठक ने लिखा है कि “ मोदी जी जानते हैं कि कैसे अमरीका को ठीक करना है। वे कर लेंगे।“ हम समझते हैं कि इसकी नौबत नहीं आएगी और अपने दूरगामी हितों को देखते हुए अमरीका स्वयं ही अपने व्यवहार को ठीक कर लेगा।


उमेश उपाध्याय
15 मई 14

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