Wednesday, July 2, 2014

#Secularism खोखली धर्म निरपेक्षता बनाम सर्वधर्म समभाव

“धर्म निरपेक्षता” शब्द ही सही नहीं है। पश्चिमी देशों में चर्च को राज्य और शासन से अलग करने के संदर्भ में “सेकुलरवाद” की सोच आई। मगर उसे “धर्मनिरपेक्ष” कहकर पश्चिम प्रेरित भारतीय बुद्धिजीवियों ने उसका अनर्थ ही कर डाला। जिसकी व्याख्या राजनेताओं ने सिर्फ  अल्पसंख्यकों को भरमाने के लिए की है


कॉंग्रेस के वरिष्ठ नेता ए के एंटोनी की हिम्मत की दाद देनी चाहिए कि उन्होने माना कि सेकुलरवाद को लेकर कॉंग्रेस को अपना रास्ता ठीक करने की ज़रूरत है। उन्होने कहा कि लोग समझते हैं कि कॉंग्रेस एक तरफ बहुत झुक गई है। बात सही और खरी है। वैसे ये तो उसी दिन साफ हो गया था जिस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह ने कहा था कि “देश के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है।“ मगर देर आयद दुरुस्त आयद। अब भी अगर कॉंग्रेस बेबाकी से इसकी परख करेगी तो ये पार्टी के साथ साथ देश के लिए भी अच्छा होगा। कॉंग्रेस देश की बड़ी पार्टी है। उसकी सोच और चिंतन में विकृति देश के लिए घातक है। इसलिए एंटोनी का ये बयान महत्वपूर्ण है।

दरससल “धर्म निरपेक्षता” शब्द ही सही नहीं है। पश्चिमी देशों में चर्च को राज्य और शासन से अलग करने के संदर्भ में “सेकुलरवाद” की सोच आई। मगर उसे “धर्मनिरपेक्ष” कहकर पश्चिम प्रेरित भारतीय बुद्धिजीवियों ने उसका अनर्थ ही कर डाला। जिसकी व्याख्या राजनेताओं ने अवसर के अनुसार अल्पसंख्यकों को भरमाने के लिए की। और यह वोट की राजनीति का एक बड़ा औज़ार बन गया। जिसने इस शब्द या सोच पर बहस की बात की उसे “सांप्रदायिक” लेबल चिपकाकर एक तरह से बहिष्कृत कर दिया गया। नेहरुवादियों और वामपंथी बुद्धिजीवियों ने ऐसी सोच रखने वालों को देश के अकादमिक, सांस्कृतिक और चिंतन-मनन के सभी उपक्रमों से बाहर रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जीवित व्यक्तियों की बात तो अलग इन लोगों ने देश के संत कवियों और साहित्यकारों का भी वर्गीकरण कर दिया। और इनके अनुसार कबीर सेकुलरवादी और तुलसी सांप्रदायिक हो गए! भारतीय मनीषा में ऐसी सोच कभी नहीं रही। राजनीतिक और अकादमिक अश्पृश्यता का ये खेल खूब चला। लेकिन इसकी परिणति हुई 2014 के चुनाव में जबकि देश ने इन सबको नकार दिया।

जिस देश की परम्पराएँ, शिक्षा-संस्कार, नैतिक मूल्य, समाज व्यवहार, सांस्कृतिक कार्यक्रम और यहाँ तक कि लोगों की दिनचर्या धर्म से प्रेरित होती हो; जो देश दुनिया के ज़्यादातर धर्मों का जनक हो; जहां अन्तरिक्ष में रॉकेट छोड़ने से पहले नारियल तोड़ा जाता हो यानि तकरीबन सब कुछ धर्म आधारित हो वहाँ राजनीति और राजकाज क्या धर्म से निरपेक्ष हो सकता है? इस सोच और शब्द ने हमारे जीवन और व्यवहार में एक तरह का दोहरापन पैदा कर दिया है। एक तरफ धर्म में गहरी आस्था और दूसरी तरफ उन सब संस्कारों और रिवाजों को आडंबर मानने का उपक्रम जो धार्मिक अस्थाओं से पैदा होते हैं। 

आप माने या न माने भारत में खुली सोच, बहुलवादी विचारों को मान्यता, लोकतान्त्रिकता - ये सब बहुसंख्यक हिन्दू विचार, जीवन शैली और तत्व दर्शन से ही निकलते है। ये देखना ज़रूरी है कि क्या हिन्दू सोच में धर्म पूजा पद्यति का प्रतीक है? नहीं, यह जीवन दर्शन और मूल्यों का प्रतीक हैं। गीता में कृष्ण अर्जुन को एक योद्धा का धर्म समझाते हैं न कि पूजापाठ का तरीका। गांधी ने इसे सही पहचाना था। सोचने की बात है कि जब वे रामराज्य की बात करते थे क्या वह बहुसंख्यकों का शासन चाहते थे?  इसलिए भारत में धर्म से अलग न तो कुछ है, न हो सकता है। क्योंकि धर्म का मतलब है जीवन शैली। इसलिए यहाँ सबकुछ धार्मिक है। पूजा पद्यतियों को धर्म से अलग कर के देखने की ज़रूरत है।

और अगर आप सहूलियत के लिए मौटे मौटे तौर पर धर्म को भी हिन्दू, इस्लाम और ईसाईयत के नज़रिये से देखना ही चाहते है तो भी धर्म निरपेक्षता एक सही विचार नहीं। इसकी जगह होना चाहिए “सर्व धर्म सम भाव” यानि राजा का कर्तव्य या धर्म है कि वे अलग अलग मजहबों में यकीन करने वाले नागरिकों को एक समान भाव से देखे। इसके आधार पर किसी की साथ कोई भेदभाव न हो। सबको समान अवसर मिलें। कोई ईश्वर को किस रूप में देखता है और पूजता है, इसके आधार पर सरकार उससे अलग व्यवहार न करें।

सोचिए, अल्पसंख्यकों को सिर्फ और सिर्फ एक इकठ्ठा वोट समूह मानकर सबसे बड़ा छल और धोखा तो उनके साथ ही किया गया। सिर्फ कॉंग्रेस ही नहीं, सेकुलरवादी तमगा लगाए अनेक दलों ने ऐसा ही किया। अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों को एक तरफ तो एक झुनझुना दिखाया जाता रहा और दूसरी तरफ उन्हें डराया जाता रहा। “हमें वोट दो नहीं तो... (मोदी) आ जाएगा।“ इसका ताज़ा उदाहरण हैं महाराष्ट्र सरकार द्वारा मुसलमानों को आरक्षण का झुनझुना। सब जानते हैं कि देश के कानून और संविधान के अनुसार ये नहीं हो सकता। मगर हर दल दूसरे से ज़्यादा धरम निरपेक्ष दिखने के लिए एक और ज़्यादा से ज़्यादा झुका दिखना चाहता है। एंटोनी की राय इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है।

ज़रूरत है कि इस पर देश में एक खुली और बेबाक बहस हो। हमें पश्चिम से ली गई बनावटी धर्म निरपेक्षता चाहिए या सहज और स्वाभाविक तौर पर हमारी सोच में बसा विचार- सर्व धर्म समभाव - यानि सबके साथ समान व्यवहार। सबको आगे बढ्ने के समान अवसर। तरक्की सबके साथ और इसमें सबका साथ और सहभागिता। संसाधनों पर किसी का पहला हक़ नहीं बल्कि साझा हक़। चूंकि कॉंग्रेस के एक अल्पसंख्यक नेता ने ये बात कही है तो इस पर बहस हो भी सकती है। नहीं तो अबतक ना जाने कितना हो हल्ला हो गया होता। कॉंग्रेस से इसकी शुरुआत होगी यह भी उचित है क्योंकि देश भर में 44 सीटें मिलने के बाद उसे आत्मविश्लेषण की बेहद ज़रूरत है।

#Secularism

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उमेश उपाध्याय
2 जुलाई 14

2 comments:

  1. Aapke vicharo se poorna sahmati hai.

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  2. Secularism ke moolbhoot arth ko leker itna vivad ho chuka hai ki kum se kum ek baar is desh ke tamaam maneeshiyo ko baithker iska sahi arth nirdharit ker lena chahiyey aur samvidhan me bhi ise usee artho me liya jaana chahiyey..Bharat ek Hindu rashtra hai..Bharat ne apna ye Hindu astitwa hazaro saalo me bachaya hau..saheja hai..tamam aur desh apna dharm sanskrati kho baithey per Bharat ne nahi khoyi kyoni dharm Bharat ki nas nas me hai..Wo kisi ek mandir ya do murtiyo me nahi hai..Isliyey Dharm Nirpeksha shabd darasal NAASTIK jaisa kuch lagta hai..Hum naastiko ka desh nahi hain.
    Bharat me Musalmaan kiski wejeh se surakshit hain..Hinduo ki wejeh sey..Hindu dherm mool rioop se shantimay dherm hai..Kuch kindu katterpanthi apne hi dherm ke is avyav ki aalochna kertey hain per agar Hindu dherm me ye sahishduta na hoti to Hindu dherm ko bhi chilla chillaker kahna padta Hindu khatrey mey hai..Hindu dherm ko iski zarurat hi nahi..Hindu dherm ko is desh se alag nahi kiya ja sakta..Hindu dherm se is desh ki her cheez ko joda ja sakta hai..kuch aeisey ki jo jo hai..wahi rahey..mager yahi ka rahey..Sarv dherm sambhav koi bura shabd nahi..balki achcha shabd hai..behter paaribhashik shabd hai..Kyo nahi is per charcha hoker ise baakaayda sweekara ja sakta.Mai aapke vichar ke paksha mey hoon kyonki aapke vichar Bharat ke paksha mey hai..her dherm ke paksha mey hain.

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