Friday, September 19, 2014

#KashmirFloods कश्मीर: संकट में सेवा

अब्दुर्रहीम खानखाना दान देने के लिए बड़े मशहूर थे। दान देते हुए वे दान लेने वाले की तरफ देखते तक नहीं थे। इसलिए किसीने उनसे पूंछा कि वे दान देते हुए नज़रें झुका क्यों लेते हैं? इस पर उन्होंने लिखा:-

देनहार कोउ और है, जो भजत दिन रैन।
लोग भरम हम पर करें, ताते नीचे नैन।

रहीम का ये दोहा भारतीय संस्कृति के मूल तत्व को रेखांकित करता है कि दान, सेवा और त्याग का बखान नहीं किया जाना चािहए। ऐसा करने से उनका महत्व और प्रभाव दोनों ही समाप्त हो जाते है। इसमें एक बात और जोड़ी जा सकती है कि किसी की दुःख तकलीफ में की गयी सेवा अगर गा कर सुनायी जाए तो वह सेवा बिलकुल निरर्थक हो जाती है।यह बात कश्मीर में आयी आपदा के दौरान सोशल मीडिया पर शब्दों से मलखम्ब कर रहे शब्दवीरों पर सीधी लागू होती है। ज़रा बानगी देखिये कि ये शब्दवीर क्या लिख रहे हैं।

एक सोशल मीडिया लिक्खाड़ ने लिखा कि “भारतीय सेना को सलाम कि वो उन्हें बाढ़ से बचा रही है जो कल तक उसपर पत्थर फेंक रहे थे”

एक अन्य प्रसिद्द सोशल मीडिया एक्टीविष्ट ने लिखा है समय-समय की बात है- "पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले कश्मीरी, राष्ट्रगीत पर प्रतिबंध लगाने वाले कश्मीरी, भारतीय सैनिको की हत्या करने वाले उग्रवादियों को पनाह देने वाले कश्मीरीयों की दहलीज पर आज जब मौत पांव पसार कर खड़ी है तो गजवा ए हिन्द की रट लगाने वाला हाफिज सईद उन्हें बचाने का कोई प्रबंध नहीं कर रहा। अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर आज कोई मसीहा बाढ़ में फंसे लोगो को बचा रहे है तो वो केवल भारतीय सैनिक है।
जय हिन्द..."

क्या संकट की इस घड़ी में इस तरह की बातें उचित हैं? क्या किसीको बचाते हुए पहले उसका राष्ट्रीयता प्रमाणपत्र मांगा जाना चाहिए? एक तरफ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान को कह रहे हैं कि भारत सीमापार पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में भी मदद करने को तैयार है दूसरी तरफ इस तरह के भाव? यह किसी भी तरह से उचित नहीं है।

पहली बात तो ये की हमारी संस्कृति सेवा को किसी शर्त से जोड़ने की नहीं है। सेवा और वह भी इस तरह की आपदा के समय - उसे इस बात से नहीं जोड़ा जा सकता कि कश्मीरियों का बर्ताव पहले कैसा था। सेवा और परोपकार निस्वार्थ करने की हमारी परम्परा है। भारतीय सेना उसे बखूबी निभा रही है। सोशल मीडिया में उपरोक्त भाव लिखने वाले इस या तो भारतीय परम्परा से परिचित नहीं हैं या फिर जोश में होश खो चुके हैं।

इसी तरह भारतीयता की एक पहचान यह भी है कि आपदा या संकट के समय मोल भाव ना करे क्योंकि किसी की दुःख की घड़ी में किय गया इस तरह का बर्ताव अमानवीय है।इस समय अगर कोई आपकी बात मान भी लेगा तो वह बाद में भूल जाएगा।

तीसरी बात अगर बात कश्मीर में उन लोगों का दिल जीतना है जो पाकिस्तान का गाना गाते हैं या फिर उन्हें अप्रासंगिक करना है तो फिर ये बातें उठाना बेहद गैरज़रूरी है। हर कश्मीरी जब भारतीय है ही तो उसका हक़ है कि विपदा की इस घड़ी में पूरा देश उसके साथ खड़ा हो।

ये उलाहनेबाज़ी न तो देश और ना ही कश्मीर के लिए ठीक है।

कश्मीर में विपरीत और बेहद कठिन हालात में सेवा करने के लिए भारतीय सेना का साधुवाद!

उमेश उपाध्याय

Photo: कश्मीर: संकट में सेवा

अब्दुर्रहीम खानखाना दान देने के लिए बड़े मशहूर थे। दान देते हुए वे दान लेने वाले की तरफ देखते तक नहीं थे। इसलिए किसीने उनसे पूंछा कि वे दान देते हुए नज़रें झुका क्यों लेते हैं? इस पर उन्होंने लिखा:-
 
देनहार कोउ और है, जो भजत दिन रैन।
लोग भरम हम पर करें,  ताते  नीचे  नैन। 
 
रहीम का ये दोहा भारतीय संस्कृति के मूल तत्व को रेखांकित करता है कि दान, सेवा और त्याग का बखान नहीं किया जाना चािहए। ऐसा करने से उनका महत्व और प्रभाव दोनों ही समाप्त हो जाते है। इसमें एक बात और जोड़ी जा सकती है कि किसी की दुःख तकलीफ में की गयी सेवा अगर गा कर सुनायी जाए तो वह सेवा बिलकुल निरर्थक हो जाती है।यह बात कश्मीर में आयी आपदा के दौरान सोशल मीडिया पर शब्दों से मलखम्ब कर रहे शब्दवीरों पर सीधी लागू होती है। ज़रा बानगी देखिये कि ये शब्दवीर क्या लिख रहे हैं।
 
एक  सोशल मीडिया लिक्खाड़ ने लिखा कि “भारतीय सेना को सलाम कि वो उन्हें बाढ़ से बचा रही है जो कल तक उसपर पत्थर फेंक रहे थे”
 
एक अन्य प्रसिद्द सोशल मीडिया एक्टीविष्ट ने लिखा है समय-समय की बात है- "पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले कश्मीरी, राष्ट्रगीत पर प्रतिबंध लगाने वाले कश्मीरी, भारतीय सैनिको की हत्या करने वाले उग्रवादियों को पनाह देने वाले कश्मीरीयों की दहलीज पर आज जब मौत पांव पसार कर खड़ी है तो गजवा ए हिन्द की रट लगाने वाला हाफिज सईद उन्हें बचाने का कोई प्रबंध नहीं कर रहा। अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर आज कोई मसीहा बाढ़ में फंसे लोगो को बचा रहे है तो वो केवल भारतीय सैनिक है।
जय हिन्द..."
 
क्या संकट की इस घड़ी में इस तरह की बातें उचित हैं? क्या किसीको बचाते हुए पहले उसका राष्ट्रीयता प्रमाणपत्र मांगा जाना चाहिए? एक तरफ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान को कह रहे हैं कि भारत सीमापार पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में भी मदद करने को तैयार है दूसरी तरफ इस तरह के भाव? यह किसी भी तरह से उचित नहीं है।
 
पहली बात तो ये की हमारी संस्कृति सेवा को किसी शर्त से जोड़ने की नहीं है। सेवा और वह भी इस तरह की आपदा के समय - उसे इस बात से नहीं जोड़ा जा सकता कि कश्मीरियों का बर्ताव पहले कैसा था। सेवा और परोपकार निस्वार्थ करने की हमारी परम्परा है। भारतीय सेना उसे बखूबी निभा रही है। सोशल मीडिया में उपरोक्त भाव लिखने वाले इस या तो भारतीय परम्परा से परिचित नहीं हैं या फिर जोश में होश खो चुके हैं।
 
इसी तरह भारतीयता की एक पहचान यह भी है कि आपदा या संकट के समय मोल भाव ना करे क्योंकि किसी की दुःख की घड़ी में किय गया इस तरह का बर्ताव अमानवीय है।इस समय अगर कोई आपकी बात मान भी लेगा तो वह बाद में भूल जाएगा।
 
तीसरी बात अगर बात कश्मीर में उन लोगों का दिल जीतना है जो पाकिस्तान का गाना गाते हैं या फिर उन्हें अप्रासंगिक करना है तो फिर ये बातें उठाना बेहद गैरज़रूरी है। हर कश्मीरी जब भारतीय है ही तो उसका हक़ है कि विपदा की इस घड़ी में पूरा देश उसके साथ खड़ा हो।
 
ये उलाहनेबाज़ी न तो देश और ना ही कश्मीर के लिए ठीक है।
 
कश्मीर में विपरीत और बेहद कठिन हालात में सेवा करने के लिए भारतीय सेना का साधुवाद!

उमेश उपाध्याय

No comments:

Post a Comment