Friday, September 19, 2014

Birthday - एक पन्ने का पलटना

Birthday - एक पन्ने का पलटना

आज जीवन की किताब का एक पन्ना और पलट गया। वैसे पन्ने के पलटने का क्या मोल? किताबों के  पन्ने तो हवा से भी पलट जाया करते हैं। काम की बात तो यह है कि पन्ने पर आपने क्या लिखा? काली स्याही पोती या फिर कुछ ऐसा जिससे समाज जीवन में किसी के लिए कुछ उपयोगी हुए। कहीं कोई “Value Create” की।

वैसे कबीर की भाषा में कहें तो ये भी कम उपलब्धि नहीं कि आप पन्ने को कोरा ही रहने दें। “ज्यों की त्यों रखदीनी रे चदरिया” मगर शायद ऐसा तो बड़ा मुश्किल हैं। काजल की कोठरी में कागज कोरा कैसे रहे?

खैर, बीता साल काफी उथलपुथल और परिवर्तनों का रहा। कुछ घाव भी लगे जो जीवन भर नहीं भर पांएगें। ईश्वर शायद कुछ और सिखाना चाहता है। नहीं तो इतना शूल और दर्द क्यों देता। चलिए ये तो ईश्वर की लीला.....इसमें हम क्या कर सकते हैं? लेकिन धन्यवाद गुरूजी इसे सहने की सार्मथ्य देने के लिए।

धन्यवाद मिंटी, परिवर्तनों के इस अध्याय में चट्टान की तरह मेरा साथ दे के लिए । काश कभी तुम से यह पूछा होता कि “तुम इतना जो मुस्करा रहे हो, क्या गम है जिसको छुपा रहे हो”। ....... तुम तो उस मजबूत धागे की तरह हो जो पन्नों को किताब की शक्ल में बांधे रखता हैं। तुम्हारें बिना जीवन की किताब- किताब ना हो कर बस कुछ बिखरे पन्ने भर रह जाती।

इसी दौरान जाना कि शलभ अब बड़ा हो गया है और दीक्षा गम्भीर Love You Both and the way you are shaping……

लेकिन वो जिंदगी ही क्या जो बस खरामा खरामा चलती रहे। राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा था

“लक्ष्मण रेखा के दास, तटों तक होकर ही फिर आते हैं।
वर्जित समुद्र में नाव लिए, स्वाधीन वीर ही जाते हैं”।।

तो इस पलटते पन्ने के  साथ फिर एक नया दौर नयी चेतना, नए उत्साह और कुछ नया करने का निश्चय। अन्यथा पन्ना तो पन्ना है पलटना उसका धर्म हैं। कुछ करो या न करो पलटेगा ही.. सो आज  पलट गया।

1 comment:

  1. Can you please share other verses from Dinkar ji creation which contains the following verse ..

    “लक्ष्मण रेखा के दास, तटों तक होकर ही फिर आते हैं।
    वर्जित समुद्र में नाव लिए, स्वाधीन वीर ही जाते हैं”।।

    ReplyDelete