Friday, August 5, 2016

राजनाथ की पाकिस्तान को खरी खरी!


राजनाथ सिंह ने पकिस्तान जाकर बहुत अच्छा किया। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ये कह कर काम नहीं चलता कि आप सदा कुट्टी कर के बैठे रहेंगे और संबंधों की औपचारिकताएं भी नहीं निभाएंगे। और फिर ये तो दक्षेस देशों की बैठक थी। याद रखना चाहिए कि शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ और अमेरिका भी आपस में बात करते थे। इसलिए गृह मंत्री की उन आलोचनाओं पर कान नहीं धरने चाहिए जो कह रहे हैं कि उन्हें पाकिस्तान नहीं जाना चाहिए था। मूल बात यह है कि वहां जाकर उन्होंने क्या किया। क्या उन्होंने औपचारिकताओं में पड़ कर राजनयिकों की तरह घुमा फिराकर बात की या फिर मज़बूती के साथ भारत की बात रखी?
मुझे इन्टरनेट पर एक पाठक की ये टिप्पड़ी बहुत ही सार्थक लगी। उसने लिखा है "राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान के सबसे बड़े उद्योग पर कड़ा प्रहार किया। वह उद्योग जिसकी पकिस्तान की जीडीपी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी है।" यानि की आतंकवाद। भारत के गृह मंत्री को इस बात के लिए 100 में से 100 नंबर दिए जाने चाहिए कि वे बेकार के दिखावे में नहीं पड़े।न तो पाकिस्तान के गृहमंत्री निसार अली खान से मिलते हुए और ना ही अपनी बात कहते हुए। उन्होंने कहा कि एक देश का आतंकवादी दूसरे देश के लिए स्वतंत्रता सेनानी नहीं हो सकता। राजनाथ सिंह ने नाम तो नहीं लिया मगर इशारा साफ़ था। पाकिस्तान आतंकवाद से लड़ने के नाटक करे और फिर भारत के खिलाफ हथियार उठाने वाले आतंकवादी बुरहान वानी को स्वतंत्रता सेनानी बताये ये कैसे चलेगा ? उसके लिए पाकिस्तान मे बंद आयोजित किया जाए ये कैसा दोगलापन है?
ये सही है की पाकिस्तान ने आतंकवाद को अपनी विदेश नीति के औजार के तौर पर इस्तेमाल किया है और ये भी सही है कि अब खुद पाकिस्तान भी इस आतंकवाद का शिकार हो रहा है। पकिस्तान जब तक कश्मीर और भारत को लेकर अपनी नीति मे बुनियादी बदलाव नहीं लाएगा वह इस मुश्किल से बहार नहीं निकल सकता। आज तो वह दुनिया में आतंकवाद का सबसे बड़ा निर्यातक देश बन कर रह गया है।किसी वक़्त दुनिया उसके झांसे में आ भी जाती थी मगर आज तो उसके आतंक के व्यापारी सऊदी अरब तक जाकर ये खूनी खेल खेलने लगे हैं। अगर सऊदी भी पाकिस्तान से किनारा कर लेंगे तो फिर उसका क्या होगा?
यहाँ राजनाथ सिंह ने जो दूसरी नसीहत पाकिस्तांन को दी है अगर वह उस पर अमल करे तो वह खुद के बनाये इस खूनी जंजाल से बाहर निकल सकता है। राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में कहा कि आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी होता है। आप एक आतंकवादी को अच्छा कहकर गले नहीं लगा सकते और दूसरे को बुरा कह कर मार नहीं सकते। बात साफ़ है। पकिस्तान आतंकवाद को टुकड़ों में बाँट कर नहीं देख सकता। अगर कश्मीर में हथियार उठाने वालों को पाकिस्तान स्वतंत्रता सेनानी बोलेगा तो फिर पख्तूनों और बलूचियों के लिए लड़ने वाले भी तो यही तर्क ले सकते है? यानि आप हमेशा मीठा मीठा गप और कड़वा कड़वा थू नहीं कर सकते।
वैसे तो पकिस्तान ने राजनाथ सिंह के भाषण के बाद ही भारत और कश्मीर को लेकर अपनी घिसीपिटी बातें दोहरा दीं।ऐसा अपेक्षित ही था। और आप उम्मीद भी नहीं करते कि अचानक से एक देश अपनी वो भाषा बदल देगा जो वह 60 साल से बोलता आया है। मगर यह पकिस्तान के लिए ही बेहतर होगा कि गृहमंत्री राजनाथसिंह ने पूरे भारत की भावना को अभिव्यक्त किया है उसपर वह ठन्डे दिमाग से गौर करे और अपनी नीतियों में बदलाव लाये। नहीं तो पकिस्तान के लिए आने वाला अंतरराष्ट्रीय माहौल ठीक नहीं होगा। कश्मीर में वह भारत को जितना नुकसान पहुंचा सकता था पहुंचा चुका है। भारत में इससे निपटने की इच्छाशक्ति, ताकत, कौशल, साधन, धैर्य और हौसला है। मगर पाकिस्तान नहीं बदला तो शायद संभल नहीं पायेगा।

उमेश उपाध्याय
5 अगस्त 16

No comments:

Post a Comment