Tuesday, January 16, 2018

सुप्रीम कोर्ट विवाद: न्यायाधीशों ने ही उड़ाया न्याय व्यवस्था का मजाक


भारतीय न्याय प्रणाली की मूल व्यवस्था बहुस्तरीय है यानि न्याय पाने के लिए आप निचली अदालत, उच्च न्यायालय से होते हुए उच्चतम न्यायालय तक पहुंचते हैंकुछ मामलों में तो मामला भारत के राष्ट्रपति तक जाता है भारत के राष्ट्रपति ही  उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते है वे भारतीय संविधान के मुख्य संरक्षक और देश के सर्वोच्च सांवैधानिक अधिकारी भी है बहुस्तरीय न्यायिक व्यवस्था,  प्राकृतिक न्याय के सिद्वांत के अनुसार ही बनाई गई है यानि अगर आप को एक जगह से न्याय मिले  तो आप उससे ऊपर जाकर न्याय मांग सकते है यह व्यवस्था आज़ादी के बाद से ही देश में भली प्रकार से चल रही है और इसी कारण देश की सर्वोच्च अदालत यानि उच्चतम न्यायालय में लोगों की अगूढ़ आस्था और विश्वास है

सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों न्यायमूर्ति चमलेश्वर, न्यायमूर्ति गोगोई, न्यायमूर्ति मदन लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने जब शुक्रवार 12 जनवरी को अदालत में कामकाज के बंटवारे को लेकर प्रेस कांफ्रेंस की तो क्या उन्होंने इस स्थापित व्यवस्था का पालन किया? इन चारों न्यायमूर्तियों ने वो पत्र भी प्रेस को जारी किया जो दो महीने पहले उन्होंने उन्होंने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा को लिखा था प्रश्न है कि क्या प्रेस कांफ्रेंस में आने से पहले उन्होंने समस्या के समाधान के लिए वे सब विकल्प आजमाए जो संवैधानिक व्यवस्था, न्यायिक परंपरा और सहज और सामान्य विवेक से उन्हें सहज उपलब्ध थे?

न्यायाधीशों के लिखे पत्र में उच्चतम न्यायालय के कामकाज के बंटवारे को लेकर कुछ मुद्दों का जिक्र है अगर तर्क के तौर पर इन जजों की सारी शिकायतें सही भी है तो भी क्या उन्होंने उनके समाधान के सभी उपाय और विकल्प आजमाए ? आइये देखते हैं कि  ये सब विकल्प क्या थे? सबसे पहले तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट के अंदर ही ये मामला सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए थी वे बाकी न्यायाधीशों से बातचीत करके उच्चतम न्यायालय की पूर्णपीठ को बुलाकर इस पर चर्चा कर सकते थे ये अवसर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हर रोज मिलता है परंपरा के अनुसार हर दिन कोर्ट का कामकाज शुरू होने से पहले सारे जज एक साथ चाय पर मिलते हैं अगर मुख्य न्यायाधीश इन चारों जजों की बात नहीं सुन रहे थे, तो ये सवाल है ये कि ये मामला उन्होंने सबके सामने उठाकर सुलझाने की पहल क्यों नहीं की?

सुप्रीम कोर्ट सर्व शक्तिशाली है जनता, राजनीतिक दल, देश की अन्य संस्थाएं, सरकारें यानि हर कोई अपनी समस्याएँ और परेशानी लेकर उच्चतम न्यायालय के पास ही जाता है यानि विवाद सुलझाने की कूवत, योग्यता और क्षमता वहां के हर न्यायाधीश के पास है इसलिए ये अपेक्षा होना स्वाभाविक है कि उन्हें घर के मतभेद घर में ही निपटा लेने चाहिए थे मगर ऐसा नहीं हुआ

अगर ये चारों न्यायाधीश ये समझते थे कि अदालत कीपूर्णपीठ भी उनके साथ 'न्याय नहीं कर सकती तो उनके  पास भारत के राष्ट्रपति के पास जाने का विकल्प तो था ही ये सर्वोच्च न्यायालय के सम्मान और मर्यादा के अनुरूप ही होता कि वे औपचारिक अथवा अनौपचारिक रूप से राष्ट्रपति के सामने इस मामले को उठाते राष्ट्रपति अपने विवेक के अनुसार मुख्य न्यायाधीश से चर्चा कर सकते थे अथवा उन्हें पूर्णपीठ के गठन का सुझाव दे सकते थे मामला ऐसे सुलझता तो इससे सुप्रीम कोर्ट की गरिमा में वृद्धि ही होती चिन्ता की बात है कि इन चारो वरिष्ठ जजों ने ये रास्ता भी नहीं अपनाया

राजनीतिक दलों के नेताओं की तरह उन्होंने एक नाटकीय अंदाज में प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर अपनी बात कह कर आखिर क्या हासिल किया? देश के सभी विवेकशील नागरिक जिन्हें भारत की संवैधानिक व्यवस्था, सुप्रीम कोर्ट की गरिमा और न्यायिक संस्थाओं के  सम्मान की चिन्ता है - इस प्रकरण को इस तरह सरे बाज़ार उठाने से व्यथित ही हुए होंगे अपनी आतुरता दिखाते हुए इस प्रेस कांफ्रेंस में इन वरिष्ठ जजों  ने सुप्रीमकोर्ट की स्वायत्ता, यहाँ तक कि देश में लोकतंत्र के जिन्दा रहने पर ही सवालिया निशान उठा दिए ऐसा करके उन्होंने तो स्वंय का भला किया और नहीं सुप्रीम कोर्ट जैसी गरिमाशाली  संस्था का

इन चारों जजों को समझना चाहिए कि शीर्ष लोकतांत्रिक और सांवैधानिक संस्थाए विमर्श, आम सहमति, सामन्जस्य और परम्पराओं के सौहार्दपूर्ण निवर्हन से मजबूत होती हैं शीर्ष पदों पर बैठे लोगों से संयम, अनुशासन और मर्यादा की अपेक्षा होती है अपनी हताशा, मतभेद जनित कुण्ठा, निराशा, रोष और झल्लाहट को राजनितिक विपक्ष की तरह जनता के सामने लाने में उनकी जल्दबाजी ही  नजर आती हैजिन्होंने भी इन न्यायाधीशों  को प्रेस के सामने जाने की सलाह दी, वे निश्चय ही तो देश के शुभ चिन्तक है और ही उन चारों वरिष्ठ जजों के जिन्होंने भी ऐसा किया है उनके स्वार्थ बेहद सीमित ही हो सकते हैं बेहतर होता कि सम्मानित न्यायमूर्तियों ने न्यायिक विवेक से काम लिया होता
#SupremeCourt 

उमेश उपाध्याय

16 जनवरी 2018 

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