एक जनवरी 2018-यानि कैलेंडर का एक और पन्ना पलटना। कोई भी तारीख काल के चक्र में इससे ज्यादा और कुछ होती भी नहीं है। अंग्रेजी तिथि के अनुसार दिसम्बर के बाद जनवरी का आना बस एक सिलसिलेवार क्रम ही तो है। इससे अधिक कुछ भी नहीं। न तो ये दिन भारत में किसी मौसम चक्र परिवर्तन से जुड़ा है, न ही इससे देश काल का कोई घटनाक्रम जुड़ा है और ना ही यह जिंदगी के किसी अन्य जीवन्त पक्ष यानि नई फसल आने आदि से जुड़ा है। ना ही हमारी कोई विरासत या सामाजिक भौगोलिक परम्परा से ये निकला है।
जब कोई भी दिन आपकी विरासत अथवा जिंदगी के बड़े उपक्रम से जुड़ा नही होता तो फिर उसमें नयापन लाने के लिए कुछ जोडऩा पड़ता है। और सच तो ये है कि अब ये दिन जुड़ गया है हुड़दंग, पीनेपिलाने और मौजमस्ती के साथ। इस साल को देखें तो देश के कई शहरों से 31 दिसम्बर
की रात को शर्मसार कर देने वाले हुड़दंग की खबरे आईं। पुलिस को तकरीवन हर जगह खास मुस्तैदी बरतनी पड़ी। देश की राजधानी दिल्ली में अचानक एक जनवरी की शाम एक-डेढ़ लाख लोग इंडिया गेट के इलाके में पंहुच गये और सारे शहर में अफरातफरी मच गयी।सारा शहर कुछ घंटे के लिए तकरीबन रुक सा गया।
अब नये साल का अर्थ क्या यही है? क्या पीना पिलाना हुड़दंग मचाना और छेड़छाड़ - इसी का नाम नया साल हैं? जैसा मैंने कहा कि साल, महीने अथवा दिन का बदलना काल की अनवरत प्रक्रिया का एक हिस्सा है। मनुष्य ने इस काल खण्ड को अपनी सुविधा के लिए वर्ष, माह अथवा दिवस के टुकड़ों में बांटा है। यह बात हर समाज द्वारा बनाए गए कैलेंडर पर लागू होती है। दरअसल हर संस्कृति का अपना कैलेंडर उसकी माटी, स्थानीय मौसम, ऋतु चक्र और परम्पराओं पर आधारित होता हैं। उसी से उस समाज के तीज त्यौहार और उत्सव जुड़े होते हैं। इन्हीं उत्सवों से निकलतीं हैं समाज की परम्पराएं और कर्मकांड।
अंग्रेजी कैलेंडर हमें विदेशी शासन से विरासत में मिला है। इसलिए यह भारत की माटी, इसकी रवायतों और परम्पराओं से जुड़ा हुआ नहीं हैं। इसकी सारी रीति ठंडे देशों की जरूरतों के मुताबिक हैं। हमें कालखंड का ये वर्गीकरण इसलिए अपनाना पड़ा क्योंकि हमारे विदेशी शासकों ने इसे लागू किया था । परन्तु उत्सवप्रेमी भारत में भारत में इसके साथ समाज का कोई अन्तर्निहित सम्बन्ध स्थापित न होने से 'नये साल' की कोई स्वस्थ परम्परा विकसित नहीं हो पायी। क्योंकि देश की माटी से उसका तादात्म्य स्थापित नहीं हुआ इसलिए यहां की परम्पराओं और जनजीवन के साथ इसका कोई खास सामन्जस्य स्थापित नहीं हो पाया है। इसलिए नये साल के नाम पर हुड़दंग और मौजमस्ती की एक विकृत परम्परा ने जन्म ले लिया है।
अच्छा तो ये होगा कि हम अपनी समृध्द थाती की ओर लौंटें और देश के हर हिस्से में परम्परागत रूप से मनाये जाने वाले भारतीय नववर्ष को नया साल मानें। और जबतक ये संभव न हो तो एक जनवरी को मनाने की सोच और तौर तरीकों में बदलाव लाएं। नये साल में अब वास्तविक नयापन आना चाहिए। जरूरी है इसे एक नया अर्थ दिया जाए ताकि 'हैपी न्यू इयर' सचमुच में हैप्पी हो सके।
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उमेश उपाध्याय
2 जनवरी 2018
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