Thursday, July 16, 2015

व्यापमं: एक नैतिक, सामाजिक और प्रशासनिक त्रासदी #VyapamScam

व्यापम मामले पर राजनैतिक तलवारें खिंची हुई हैं। इसका आपराधिक पक्ष एक दिल दहलाने वाली तस्वीर पेश करता है। मौतों की संख्या और उसकी ज़िम्मेदारी लोग राजनीतिक हिसाब से तय कर रहे हैं। सीबीआई के पास मामला जाने के बाद इसकी तहकीकात और ज़िम्मेदारी का मामला उसी के ऊपर छोड़ देना ठीक होगा। बस ये सुनिश्चित होना चाहिए कि ये जांच जल्दी और निष्पक्ष हो ताकि कोई अपराधी बच न पाए। मगर व्यापमं को महज एक राजनीतिक या फिर भ्रष्टाचार से जुड़ा एक आपराधिक मामला मात्र समझना बड़ी भूल होगी।

व्यापमं अपने आप में एक ‘नैतिक, सामाजिक और प्रशासनिक त्रासदी’ है। इसका राजनैतिक नफा नुकसान तो एकाध चुनाव तक सीमित रहेगा और इसकी चिंता बीजेपी और कांग्रेस कर लेगी। मगर समाज के तानेबाने, उसके नैतिक मूल्यों को जो चोट इस मामले से पहुंची है उसका असर आने वाले कई दशकों तक मध्य प्रदेश पर रहेगा। अगर आंकड़े देखे जाएं तो मध्य प्रदेश में कोई 6 लाख सरकारी कर्मचारी हैं। इनमें से अगर ऊंचे अधिकारियों और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को निकाल दिया जाए (जिनकी नियुक्ति में व्यापमं शामिल नहीं है), तो करीब 5 लाख की संख्या बचती है। मोटे मोटे तौर पर देखा जाए तो जब से यह घोटाला सामने आया कोई पौने दो लाख नियुक्तियां व्यापमं ने की हैं। यानि कुल कर्मचारियों की संख्या का एक तिहाई!

और ये कौन से कर्मचारी हैं? इनमें शामिल हैं अध्यापक, पुलिस कांस्टेबल से लेकर असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर, वन रक्षक, आरटीओ कर्मचारी, क्लर्क, एकाउंटेंट, इंजीनियर, डॉक्टर अदि आदि। इन सब की जिम्मेदारियां देखिए– शिक्षा, स्वास्थ्य, निर्माण, कानून व्यवस्था, पर्यावरण वगैरह। यानि आम जीवन से जुड़े तकरीवन हर पहलू से इन लोगों का वास्ता है। अब किस तरह से ये घोटाला मध्य प्रदेश को पीढ़ियों तक सताता रहेगा यह विचार करने की आज ज़रूरत है।

कोई भी समाज या उसकी व्यवस्था कुछ मूलभूत मूल्यों पर आधारित होते है। ये नैतिक मूल्य ही उसकी प्रगति का आधार होते हैं। उसमें एक मूलभूत बात है सही प्रतिभा का सम्मान और उसका यथोचित आदर। इसी कारण प्रतियोगिता परीक्षाएं होती हैं, ताकि योग्य लोग आगे आ सकें और उनके पास अपनी योग्यता के अनुसार पद और सम्पन्नता हो।

व्यापमं में ये तो मालूम नहीं कि किसने कितना घोटाला किया और कितना पैसा किसकी जेब में गया। लेकिन एक बात साफ़ है कि राज्य में होने वाली विभिन्न प्रतियोगिताओं में ढेर सारे मुन्ना भाई ऐसी जगहों पर बिठा दिया गए जिनके वो काबिल नहीं थे। इन्होंने जगह ली ऐसे प्रतियोगियों की जो काबिल और योग्य थे। लोग तो कहते हैं कि 90 फीसदी तक भर्तियां ऐसे ही हुईं। अगर इस आंकड़े को अतिरेक भी मान लिया जाए तो भी ये तो सही है कि पिछले कई सालों से बहुतायत भर्तियां ऐसे लोगों की हुईं जिनके पास रसूख, पैसा, ताकत या पैरवी थी।

सोचिए क्या असर होगा मध्य प्रदेश के भविष्य पर इसका? आगे आने वाले कई सालों तक तरक्की पा कर ये मुन्ना भाई राज्य के बड़े बड़े ओहदों पर होंगे। बड़े फैसले लेंगे। ऐसे अयोग्य लोग कैसे फैसले लेंगे ये अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। यानि राज्य की व्यवस्था का चौपट होना तय है। जहां मक्कारी और कपट से स्थान और ओहदा प्राप्त होता हो उस राज्य के भविष्य का तो भगवान ही मालिक है!

इसका एक और असर होगा। जो काबिल बच्चे अपना स्थान पाने से रह गए हैं क्योंकि वो किसी की जेब गरम नहीं कर पाए, उनकी मानसिकता क्या होगी? या तो वे पूरी तरह विक्षुब्ध होकर बेईमानी और अन्याय का रास्ता पकड़ेंगे और जब सामान्य जन बेईमान होता है तो फिर उसकी कोई सीमा नहीं रह जाती। इससे राज्य अन्याय और भ्रष्टाचार के एक गहरे चक्र में फंस सकता है जिसकी आज कल्पना करना मुश्किल है। जब युवा पीढ़ी सिर्फ ये देखे कि सिर्फ पैसे या रसूख से ही आगे बढ़ा जा सकता है तो कोई मेहनत क्यों करेगा? क्यों कोई पीएमटी के लिए सालों पढ़कर अपना वक्त बर्बाद करेगा? सोचिये कैसा ठगा महसूस कर रही होगी वहां की युवा पीढ़ी?

ये भी तो हो सकता है कि इनमें कई संवेदनशील और बुद्धिमान लोग इस अन्याय से त्रस्त होकर जंगल का रास्ता अख्तियार कर लें। वैसे भी राज्य के कई इलाकों में माओवाद अपनी जड़ें जमा चुका है। इसके बाद तो स्थिति और भयावह हो सकती है। पहले से ही नक्सली हिंसा से त्रस्त ये देश इसे कैसे झेलेगा?

यानि व्यापमं का घनचक्कर अगर ऐसा गंभीर है जैसा कि मीडिया में आज कहा जा रहा है तो फिर ये एक ऐसा दर्द पूरे समाज को दे चुका है जिसका इलाज आसान नहीं है। इसके घाव इतने गहरे हो सकते हैं जिनका अंदाजा लगाना भी शायद आज संभव नहीं है। इसलिए ये त्रासदी सिर्फ राजनीतिक या सामान्य भ्रष्टाचार की नहीं बल्कि सामाजिक, नैतिक और मानसिक है जिसके इलाज में बरसों बरस लगेंगे।



उमेश उपाध्याय
15 जुलाई ‘15

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