दिल्ली की राजनीति अब
नौटंकी और नुक्कड़ नाटकों जैसी लगती है जहाँ दिनबदिन नए मुद्दे इजाद किये जाते है और
फिर मीडिया में हो हल्ला मचा कर उन्हें यूँ ही छोड़ दिया जाता है. प्रधानमंत्री
मोदी की डिग्री असली है या नकली, यह मुद्दा भी राजनीति में आयी इस नयी रचनाशीलता
या कलाकारी का एक नमूना है. इसमें मुद्दा क्या था यह समझ ही नहीं आया? जहाँ लगा कि
दिल्ली में शासन कर रही आम आदमी पार्टी अपना सारा कामकाज छोड़ इसके पीछे लगी हुई थी
वहीं बीजेपी को भी न जाने क्या पडी कि वो भी इस अमुद्दे को इतना ऊपर ले गयी कि
पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इसके ऊपर प्रेस
कांफ्रेंस कर डाली. डिग्री सही है या गलत ये बताना तो दिल्ली विश्वविद्यालय के
रजिस्ट्रार का काम था जो उसने कर दिया.
वैसे मुद्दा क्या था? प्रधानमंत्री
बी ए/एम ए पास
हैं या नहीं? पूछना चाहिये कि अब नेताओं की डिग्री कबसे देखी जाने लगी है इस देश
में. क्या केजरीवाल साबित ये करना चाह रहे थे कि अगर मोदी ने विश्विद्यालय में
पढाई नहीं की है तो वे अच्छे प्रधानमंत्री नहीं हो सकते? या फिर वो ये कह रहे थे कि
सिर्फ पढ़े लिखों को ही नेता या मंत्री बनना चाहिये. अगर ऐसा था तो वे अपनी पार्टी
से ये सफाई चालू करते तो अच्छा होता. वैसे अभी तक ये साबित नहीं हुआ है कि कालेज
और युनिवर्सिटी में पढ़ने भर से ही कोई बुद्धिमान हो जाता है. अगर ऐसा होता तो कई
बड़े-बड़े नेता और उद्योगपति तो कुछ कर ही नहीं पाते.
अगर केजरीवाल और उनकी
पार्टी को लगता था कि मोदी ने गलत डिग्री अपने हलफनामे में बताई है तो वे सीधे
अदालत जाते और चुनाव याचिका दायर करते कि मोदी ने जो जानकारी दी है वो गलत है. अगर
‘आप’ की बातों में सचाई होती तो इस हल्ले और हंगामें की ज़रुरत क्या थी? केजरीवाल
ने तो वाराणसी में मोदी के खिलाफ चुनाव भी
लड़ा था. बड़ा सीधा सा मामला था. मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि सोशल मीडिया में एक
गुब्बारा फुलाया, मीडिया में बयानबाजी की और कुछ दिंनों के लिए इस अमुद्दे को
झूठमूठ की एक बहस का मुद्दा बना दिया.
पूछना चाहिए कि क्या देश
में यही एक मूल मुद्दा बचा है इस समय? देश का एक बड़ा हिस्सा अप्रत्याशित सूखे का
सामना कर रहा है. भारत के कई इलाके दो बूँद पानी को तरस रहे हैं. मवेशी मर रहें
हैं. किसान गाँव छोड़ रहे हैं, शहर दर शहर पीने के पानी की किल्लत है. मराठवाडा, बुंदेलखंड,
राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उडीसा, आंध्र,
तेलंगाना और कर्नाटक समेत करीब दो तिहाई भारत सूखे से जल रहा है और दिल्ली में फर्जी
मुद्दों को लेकर हंगामेबाज़ी का दौर चल रहा है. कसी बार ब्शुत अफ़सोस होता है ये
देखकर कि हम किधर जा रहे है. वैसे ये
जानना बड़ा दिलचस्प होगा कि ‘आप’ के विचारगुरु
अन्ना हजारे इस पर क्या कहेंगे. उन्होंने तो अपनी सार्वजनिक सेवा यात्रा रालेगांव
सिद्धि में पानी से ही शुरू की थी.
खाली सूखा ही क्यों, भ्रष्टाचार
का भी एक बड़ा मुद्दा आज देश में छाया हुआ है - वह है अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला. वैसे
बीजेपी का आरोप है कि इस मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए ही ‘आप’ ने मोदी की डिग्री
का मामला उछाला. चलिए, बीजेपी की ये बात ही मान ली जाए कि आम आदमी पार्टी
प्रधानमंत्री पर बेजा कीचड उछाल रही है तो फिर उसके नेताओं को क्यों इस कीचड में
अपने पैर गंदे करने की ज़रुरत थी? डिग्री तो दिल्ली युनिवर्सिटी की थी उसे ही ये
काम करने देते! बीजेपी भी ज़बरदस्ती इसमें क्यों कूदी? क्या वह इस मुद्दे से आतंकित
हो गयी थी?
सबसे ज्यादा मनोरंजक बात
थी पूरे दलबल के साथ ‘आप’ के नेताओं का युनिवर्सिटी पहुँचकर मांग करना कि ‘मोदी की
डिग्री दिखाओ’. यह भीडतंत्र शायद मीडिया की सुर्ख़ियों में एक दिन और बने रहने के
लिए था. मगर क्या अब यही चलन होने वाला है कि अगर किसी के मन की सी बात न हो तो वह
सौ पचास लोंगों को लेकर जहाँ चाहे पहुँच जाए और हल्ला हंगामा करने लगे? लोकतंत्र
के लिए यह शुभ संकेत नहीं है.
लेकिन अब मानना चाहिए कि
दिल्ली विश्वविद्यालय के स्पष्टीकरण के बाद ये मामला ठंडा हो जायगा. मगर हमारी
राजनीति की दिशा और दशा के लिए ये चिन्ता का दौर है. जिन लोगों को बड़ी उम्मीद के
साथ जनता ने अपनी समस्याओं के समाधान के लिए कुर्सी पर बैठाया है वे अपना असली काम
छोड़कर अगर इसीमें फंसे रहे तो जनता का क्या होगा?
उमेश उपाध्याय
11 मई 2016
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