नाम: मोहम्मद जाकिर
उम्र: 25 साल
पेशा: टैक्सी चालक
निवासी: कानपुर, उत्तर प्रदेश
कानपुर देहात के रहने वाले मोहम्मद जाकिर काम की तलाश में एक साल पहले ही दिल्ली आए हैं । अब दिल्ली में ओला टैक्सी चलाते हैं। उनके परिवार में 20 सदस्य हैं जो अभी कानपुर में ही रहते हैं। आठ अक्टूबर की सुबह कोई साढ़े सात बजे मैं अपने घर से एयरपोर्ट जाने के लिए उनकी ओला टैक्सी में बैठा। थोड़ी देर बाद ही बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। अब जब दो यूपी वाले मिलें और राजनीति पर बात न हो ये कैसे हो सकता है! ज़ाकिर के साथ मेरी बातचीत देश के युवा वर्ग के दिल में क्या चल रहा है उसकी एक झलक पेश करती है। उसके कुछ अंश आपके लिए प्रस्तुत हैं:-
मैंने शुरूआत करते हुए पूछा कि ''यूपी की सरकार कैसी चल रही है?’’
जाकिर: '' ठीक ही है पर अगली बार तो अखिलेश की सरकार बनेगी।’’
मैंने कहा: ''पर अभी तो यूपी के चुनाव दूर है?’’
जाकिर: ''हाँ, पर अखिलेश ने अच्छा काम किया था। वो तो उनके चाचा (शिवपाल सिंह यादव) और आजम खान ने प्राब्लम खड़ी कर दी नहीं तो अखिलेश हारते नहीं।’’
जब मैंने कहा कि ''अभी यू पी के चुनाव तो बहुत दूर हैं। अब तो लोकसभा के चुनाव आनेवाले हैं।”
तो जाकिर ने तपाक से जबाब दिया ''प्रधानमंत्री के लिए तो मोदी ही जीतेगा, साहब ।”
''क्यों” का सवाल पुछने पर जाकिर का उत्तर था- ''मोदी देश के लिए काम करता है। देख लीजिए साहब, सारे काम देश की भलाई के लिए कर रहा है। ठीक आदमी है मोदी।”
मैंने जब कहा कि ''अभी तो तुम अखिलेश की तारिफ कर रहे थे?’’ तो जाकिर का जबाब था-'' अखिलेश
ने उत्तर प्रदेश के लिए बढिय़ा काम किए थे साहब। इसलिए वो सही था। पर देश के लिए तो मोदी ही बढिय़ा है। मोदी खुद तो अच्छा है। पर बीच वाले गड़बड़ कर देते हैं। पर प्रधानमंत्री तो मोदी ही ठीक है।”
मोहम्मद जाकिर ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है। उसने सिर्फ हाई स्कूल तक ही पढ़ाई की है। उसे तकलीफ है कि यूपी में काम न होने कि वजह से उसे दिल्ली आना पड़ा। यहां वह भाड़े पर ओला चलाता है। उसे अपनी कमाई से 20 प्रतिशत
कमीशन ओला को देना पड़ता है। फिर टैक्सी का भाड़ा मालिक को देना पड़ता है। जो बचता है उससे उसे गुजारा भी करना होता है और घर भी भेजना होता है। इसलिए मज़बूरन उसे लम्बी ड्यूटी देनी पड़ती है। हालांकि इससे उसे कोई खास परेशानी नहीं है क्योंकि उसका मानना है कि खाली होने से कहीं बेहतर ज़्यादा मेहनत- मजूरी करना है। जब मैं सुबह उसकी टैक्सी में बैठा तो वह नाइट शिफ्ट लगा चुका था। बदरपुर के अपने कमरे पर सोने के लिए जाने से पहले ज़ाकिर एक ट्रिप और मारना चाहता था।
रात भर जागने के कारण जाकिर की आंखो में नींद तो थी पर पालिटिक्स पर उसकी बातें खूब ताजा थी। राजनीति की उसकी समझ एक यूपी के युवा जैसी तेज़, पैनी और साफ थी। उसमें कोई भ्रम या संशय नहीं था। रात की उसकी शिफ्ट की बात करते करते मैंने अपना अगला प्रश्र दागा।
''लोग तो कहते हैं कि मोदी मुसलमानों के अच्छा नहीं है। इसलिए मुसलमान उसे वोट नहीं देंगे? मेरी बात को तकरीवन बीच में काटते हुए जाकिर ने कहा ''जो देश के लिए अच्छा है वो मुसलमानों के लिए अच्छा क्यों नहीं हैं? क्या हिन्दुस्तान मुसलमानों का नहीं है?’’ उसके इस तर्क ने मुझे लगभग निरूत्तर कर दिया। जाकिर ने अपनी बात इतने पर ही रोकी नहीं । उसने कहा कि ''ये हमारी मिट्टी है। इसके भले बुरे मेें हिन्दू-मुसलमान का सवाल आता ही नहीं है। देश के भले में ही सबका भला है।’’
वह आगे बोला कि हम हिन्दुस्तान की बात नहीं करेंगे तो क्या पाक्स्तिान कि बात करेंगे? मैंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ''तुम कह रहे हो, मोदी अच्छा है। पर उसने खुद तुम्हारे लिए क्या किया हैं ? तुम्हें
उससे क्या फायदा ?’’
जाकिर का उत्तर मेरी आंखे खोलने वाला था। उसने कहा कि ''जब देश का भला होगा तो मेरा भी भला होगा न साहब। मैं कोई अलग थोड़े न हूँ।’’
मैं सोचने लगा कि हर रोज देश की नीतियों को सिर्फ अपने व्यक्तिगत हानि-लाभ के कांटे पर तोलने वाली खबरों से मीडिया भरा पड़ा रहता है। तथाकथित समझदार लोग सरकार के हर कदम को सिर्फ 'अपने फायदे’ के स्वार्थी चश्में से देखते हैं। वहीं एक नौजवान हिन्दुस्तानी जो अपने हाडमांस तोड़कर दिन रात मेहनत कर मुश्किल से अपनी जिंदगी सँवारने की कोशिस रहा है, उसकी दृष्टि कितनी साफ है।
''देश की भलाई में मेरी भी भलाई’’ ये भाव मेरे मन में तभी से लगातार गूँज रहे हैं।
जाकिर की टैक्सी में जब मैं घुसा था तब मेरा मन थोड़ा असहज हुआ था। ड्राइवर की आंखे बोझिल और दाढ़ी बढ़ी हुई थी । पीछे की सीट के पायदान पर मिट्टी जमी हुई थी सुबह-सुबह भला गंदी गाड़ी में बैठते हुए किसे अच्छा लगता है ! उसकी बातें दिलचस्प थीं। उनमें एक खास किस्म की बेफिक्री और बेबाकी थी। इसलिए मैंने पूछ ही लिया कि
"देश के बारे में खाली वही ऐसा सोचता है या फिर उसके घर वाले और यार दोस्त भी ऐसा ही सोचते हैं?" उसने कहा कि उसके नज़दीकी लोग भी ऐसा ही मानते हैं।
बातचीत की सहजता को देख मैंने उससे सीधा सवाल पूछा ''मोदी और राहुल (गांधी) में से तुम किसको चुनोगे?’’ जाकिर ने कहा ''मोदी। राहुल की बात मत करिये साहब। वो हिन्दुस्तान में रहता ही कितना है?’’ इसके बाद उसने राहुल गांधी को लेकर जो कहा उसे यहां लिखना मुनासिब नहीं होगा।
फिर मैंने उससे पूछा ''और मायावती।’’ जाकिर ने जवाब दिया कि वो ''प्रधानमंत्री (पद) के लिए थोड़ी लड़ेंगी? मैंने कहा मान लो ''अगर वो प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार हों तो ?’’ जाकिर ने कहा ''कुछ बनेगा नहीं क्योंकि उनकी तो फिजा ही खराब हैै।’’
यूपी के नौजवान मौहम्मद जाकिर से मेरी ये बातचीत, प्रदेश के उसकी तरह के सभी नौजवानों की राय का प्रतिनिधित्व करने का दावा नहीं कर सकती। पर मुझे लगा कि ये उस ''स्टीरियो
टाइप’’ को तोड़ती है जो आमतौर पर एक नैरेटिव के तौर पर मीडिया में चलाया जाता है। ये नैरेटिव लोगों को एक निर्धारित खांचे में बांधता है और फिर अपनी राय के मुताबिक राजनीतिक विश्लेषण का तानाबाना बुन देता है। ऐसा करना आजकल एक शगल सा हो गया है। 2019 का चुनाव आते-आते ये शोर और बढ़ता आएगा। ये ध्यान रखने वाली बात है कि अगामी आम चुनाव पूरे भारत के डिजिटली कनेक्ट होने बाद का पहला लोकसभा चुनाव होगा। जिस तरह एक टैक्सी ड्राइवर की राय सबकी नुमायन्दगी नहीं कर सकती। उसी तरह सोशल मीडिया का पहली बार उपयोग करने वाले डिजिटली कनेक्ट भारत के मतदाताओं को जाति, मजहव, क्षेत्र, भाषा, लिंग आदि के खांचो में बांटकर परिणाम के अनुमान की कोशिश भी इस बार गलत साबित होने वाली है। नोट करने की बात है कि पुराने चुनावी समीकरण इस बार धराशाही होने वाले है। जो होगा वह अप्रत्याशित होगा।
मैंने चलते-चलते जाकिर की फोटो भी ली थी और उसकी बातें छापने की अनुमति भी। जब मैं एयरपोर्ट पर उतरा तो जाकिर ने तत्परता से हाथ मिलाया। उसे अगला ट्रिप मिल गया था और मुझे एक हिन्दुस्तानी नौजवान की एक खुशनुमा और ताज़गी भरी कहानी मिल गयी थी।
एक मेहनतकश युवक की दास्ताँ जो कहती है - ''जो देश के लिए अच्छा, वह मेरे लिए भी अच्छा।"
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उमेश उपाध्याय,
9 अक्टूबर 2018
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