एक तरफ देश आतंकवाद
के विष को झेल रहा है. दूसरी तरफ गुरदासपुर में फियादीन हमले और आतंकवादी याकूब
मेमन की फांसी से उठी आग पर वोटों की रोटियां सेकीं जा रहीं. इसके बीच बीजेपी और
कोंग्रेस के बीच तेरे और मेरे घोटाले का खेल चल रहा है. दोनों मानो एक दूसरे से कह
रहे हैं कि ‘तेरी कमीज़ मेरी कमीज़ से ज्यादा मैली है.’ संसद का मानसून सत्र तो अब
घोटाले के आरोपों के खेल में तकरीबन बेकार चला ही गया है. मगर लगता है कि देश की
ये दोनों पार्टियाँ यहीं रुकने वाली नहीं हैं और बस एक दूसरे के बाल की खाल
निकालने में ही व्यस्त हो गयीं हैं.
एक दूसरे पर तंज़,
तल्ख़ टिप्पड़ियां, अमर्यादित भाषा और अक्सर बेसिरपैर के आरोप पहले तो देश में सिर्फ
छुटभैये नेता ही लगाया करते थे मगर अब शीर्ष नेता भी ऐसा ही कर रहे है. कोंग्रेस
उपाध्यक्ष मंत्रियों को जेल भेजने जैसे बयान दे रहे हैं तो बीजेपी के नेता
विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की हिमायत कर रहे हैं. आम हिन्दुस्तानी हैरान और
परेशान है कि उसके नेता बुनियादी मुद्दों को छोड़कर अपने अहम् और वर्चस्व की लड़ाई
में ही उलझे हुए हैं. लगता है कि देश में लगातार टीवी के लिए एक राजनीतिक चकल्लस वाला रीयलिटी शो चल रहा है.
इस तूतू मैंमैं से
बाहर निकल कर संजीदगी से सोचने का वक़्त है. नेताओं से ये पूछने का वक़्त है कि संसद
क्यों नहीं चल रही? आक्रामक मुद्रा में आई कोंग्रेस का कहना है कि जब तक विदेश
मंत्री सुषमा स्वराज, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश के
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस्तीफ़ा नहीं देते तब तक संसद में इन मुद्दों पर
बहस तक भी नहीं होने दी जायेगी.
सुषमा पर आरोप है कि
उन्होंने ब्रिटेन से ये कहा कि अगर ब्रिटिश कानून के तहत आईपीएल के पूर्व कमिश्नर
ललित मोदी अपनी पत्नी के ओपरेशन के लिए पुर्तगाल जाना चाहते हैं तो भारत को कोई
आपत्ति नहीं है. अब विदेश मंत्री ने ऐसा कहकर कोई अनुचित, अनैतिक या गैर कानूनी
काम किया है तो बेशक संसद इसपर बहस कर सकती है. विपक्ष उनके खिलाफ प्रस्ताव ला
सकता है. राज्य सभा में तो कोंग्रेस केंद्र सरकार की अच्छी खासी किरकिरी कर सकती
है क्योंकि वहां बीजेपी के पास बहुमत भी नहीं है. ये सोचने की बात है कि क्या
विदेश मंत्री के खिलाफ आरोप इतना बड़ा है कि इसे लेकर उनका इस्तीफ़ा होने तक संसद
में कोई कामकाज होने ही नहीं दिया जाए?
शिवराज सिंह चौहान
पर व्यापम घोटाले और वसुंधरा पर ललित मोदी को मदद करने का आरोप है. उधर बीजेपी ने
भी कोंग्रेस के खिलाफ आरोपों की पोटरी खोल दी है. उसने हिमाचल के मुख्यमंत्री
वीरभद्र सिंह, गोवा के कोंग्रेस नेताओं और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी के थुंगन को
कटघरे में खड़ा किया है. बीजेपी ने भी हिमाचल के कोंग्रेस मुख्यमंत्री का इस्तीफ़ा
माँगा है.
सवाल है कि अगर
सिर्फ आरोप लगते ही इस्तीफे का चलन शुरू कर दिया जाए तो न जाने कितनों को इस्तीफ़ा
देना पड़ सकता है. देश में तकरीबन हर बड़े नेता, मुख्यमंत्री और मंत्री पर आरोप लगते है. वैसे ये एक शुचितापूर्ण बात होगी
कि जैसे ही आरोप लगे वो नेता पद से हटा दिया जाए या वह खुद हट जाए. पर क्या ऐसे
आदर्श हर पार्टी अपना सकती है? ज़रा आरोपों की कड़ी देखिये. हिमाचल के मुख्यमंत्री
वीरभद्र सिंह, पंजाब में बादल सरकार और उनका परिवार, प बंगाल की मुख्यमंत्री ममता
बनर्जी की सरकार, कर्नाटक के लोकायुक्त और यहाँ तक कि कोंग्रेस अध्यक्ष सोनिया
गांधी पर नेशनल हेराल्ड मामले में आरोप लगे हैं. इस लिस्ट को चाहे जितना लंबा किया
जा सकता है. बड़ा सवाल ये है कि क्या इन सबको उस समय तक सार्वजनिक पदों से हट जाना
चाहिए जब तक कि ये पाक साफ़ सिद्ध नहीं हो जाते? ऐसा है तो ये एक बड़ी आदर्श स्थिति
होगी. क्या कोंग्रेस समेत सब पार्टियाँ इस पर राजी होंगी?
मगर “आरोप सिद्ध
होने तक इस्तीफे का सिद्धांत” कुछ पर लागू हो और कुछ पर नहीं, ये तार्किक नहीं है.
इसमें न्यायोचित, तर्कसंगत और सही राजनीतिक मूल्यों को स्थापित करने वाला रास्ता
क्या है? और कौनसा रास्ता अराजकता, विश्वासहीनता और पूरी व्यवस्था में अनास्था
पैदा करने की और ले जाएगा - इन दोनों दलों के बड़े नेताओं को सोचना चाहिए. अन्यथा
अगर ‘तेरी कमीज़ नेरी कमीज़ से साफ़’ दिखाई दे रही है तो मैं उसे अपने पैन की स्याही
फेंककर गंदा कर दूंगा – ये खेल खतरनाक है. ये खेल पहले विपक्ष में रहकर बीजेपी ने
खेला और अब कोंग्रेस खेल रही है. मगर एक गलत से दूसरा गलत सही तो सिद्ध नहीं हो
जाता.
‘तेरे घोटाले और
मेरे घोटाले’ के बजाय ‘तेरा विकास और मेरा विकास’ – ये खेल भी तो खेला जा सकता है?
भारत के बेरोजगार युवा, किसान, मजदूर, कर्मचारी, मध्यम वर्ग और छोटे बड़े सभी
उद्यमी कोंग्रेस और बीजेपी के बीच विकास की ये प्रतियोगिता देखना चाहते है. कीचड़
फेंककर एक दूसरे के कपड़ों को गंदा करने की मौजूदा
प्रतियोगिता अब बंद होनी चाहिए.
उम्मीद है कोई तो
भारत की इस गुहार को सुनेगा !
उमेश उपाध्याय
3 अगस्त 2015
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